संत पापा फ्राँसिस एक युवा पुरोहित के रूप में संत पापा फ्राँसिस एक युवा पुरोहित के रूप में 

ईश्वर व लोगों की सेवा में, पोप फ्राँसिस के अभिषेक के 50 साल

13 दिसम्बर को संत पापा फ्राँसिस अपने पुरोहिताभिषेक की 50वीँ सालगिरह मनायेंगे। वाटिकन न्यूज ने इस सालगिरह को मनाते हुए पुरोहित एवं पुरोहिताई पर संत पापा फ्राँसिस के चिंतन को प्रस्तुत किया है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 12 दिसम्बर 2019 (रेई)˸ 13 दिसम्बर को संत पापा फ्राँसिस अपने पुरोहिताभिषेक की 50वीँ सालगिरह मनायेंगे। वाटिकन न्यूज ने इस सालगिरह को मनाते हुए पुरोहित एवं पुरोहिताई पर संत पापा फ्राँसिस के चिंतन को प्रस्तुत किया है।  

अपने 33वें जन्म दिवस के ठीक 4 दिन पहले जोर्ज मारियो बेरगोलियो (संत पापा फ्राँसिस) का पुरोहिताभिषेक 13 दिसम्बर 1969 को हुआ था। उन्हें बुलाहट की कृपा 21 सितम्बर 1953 को सुसमाचार लेखक संत मती के पर्व के दिन मिली थी, जब उन्होंने पापस्वीकार संस्कार में ईश्वर की करूणा का गहराई से अनुभव किया था।

संत पापा फ्राँसिस एक युवा पुरोहित के रूप में
संत पापा फ्राँसिस एक युवा पुरोहित के रूप में

पुरोहित और करुणा

दिव्य करुणा उनके सम्पूर्ण पुरोहिताई जीवन की विशेषता रही है। संत पापा एक ऐसे पुरोहित की बात करते हैं जो चुपचाप सब कुछ छोड़कर समुदाय के दैनिक जीवन में भाग लेता है, जो दूसरों के लिए अपना जीवन अर्पित करता और येसु के समान दया से द्रवित होता है जब वह लोगों को निराश एवं बिना चरवाहे के भेड़ों के समान देखता है।  

6 मार्च 2014 को रोम के पुरोहितों को सम्बोधित करते हुए संत पापा ने कहा था कि "एक भले चरवाहे के समान, पुरोहित करुणा एवं सहानुभूति का व्यक्ति है, वह अपने लोगों के करीब रहता है और सभी का सेवक है...जीवन में यदि कोई किसी तरह से घायल है,  तो वह उनके ध्यान और सहानुभूति का पात्र बनता है। घाव का इलाज किये जाने की आवश्यकता होती है... पुरोहितों को लोगों के करीब होना चाहिए। करुणा का अर्थ है सबसे पहले घाव का इलाज किया जाना।"   

पुरोहित एवं यूखरिस्त

संत पापा फ्राँसिस ने पुरोहितों का जिक्र एक विकेंद्रीकृत व्यक्ति के रूप में किया है क्योंकि उसके जीवन के केंद्र में ख्रीस्त होते हैं। पुरोहितों की जयन्ती के अवसर पर 3 जून 2016 को दिये अपने उपदेश में संत पापा ने कहा था, "यूखरिस्त समारोह में हम प्रत्येक दिन अपनी पहचान एक चरवाहे के रूप में करते हैं। हरेक यूखरिस्त में हम ख्रीस्त के शब्दों को सचमुच अपना बना सकें, "यह मेरा शरीर है जो तुम्हारे लिया अर्पित किया गया है।" उन्होंने कहा था कि यही हमारे जीवन का अर्थ है। इन शब्दों द्वारा हमारे दैनिक जीवन में हम अपने पुरोहिताभिषेक की प्रतिज्ञा को नवीकृत करते हैं।

पुरोहित और पापस्वीकार संस्कार

पापस्वीकार संस्कार में पुरोहित, ईश्वर और उनके लोगों की सेवा में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, जहाँ हम ईश्वर की करुणा को महसूस कर सकते हैं। 6 मार्च 2014 को रोम के पुरोहितों को सम्बोधित करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने कहा था कि "यह स्वाभाविक है कि पाप मोचक पुरोहितों के तरीके अलग-अलग होते हैं किन्तु मूल बातों में पृथकता नहीं होनी चाहिए अर्थात् उनमें अच्छे नैतिक सिद्धांत एवं दया की भावना आवश्य होनी चाहिए। उन्हें न तो बिलकुल ढीला एवं न ही कठोर होना चाहिए क्योंकि ऐसा व्यक्ति येसु ख्रीस्त का साक्ष्य नहीं दे सकता है। कठोर व्यक्ति उनसे अपना हाथ धो लेता है बल्कि वह उस व्यक्ति को कानून की कील पर जकड़ देता है। दूसरी ओर, एक ढीला व्यक्ति भी उनसे अपना हाथ धो लेता है। वह केवल बाहरी सहानुभूति दिखाता, किन्तु अंदर से वह उस व्यक्ति के पाप को कम कर, उसके अंतःकरण की समस्या को गंभीरता से नहीं लेता। सच्ची करुणा व्यक्ति की चिंता करता, उसे ध्यान से सुनता, स्थिति का सामना सम्मान एवं सच्चाई से करता तथा मेल-मिलाप के रास्ते पर उसका साथ देता है।

पुरोहित एवं प्रार्थना  

संत पापा ने हमेशा कहा है कि एक पुरोहित को सबसे बढ़कर चाहिए कि वह प्रार्थना का व्यक्ति बने। ईश्वर के साथ संयुक्त रहे ताकि बुराई के हर प्रकार के प्रलोभन पर जीत पा सके। आर्स के संत जॉन मेरी वियन्नी की 160वीं पुण्य तिथि मनाने वाले पुरोहितों को प्रेषित पत्र में संत पापा फ्राँसिस ने प्रत्येक दिन रोजरी माला विन्ती करने की सलाह दी थी। उन्होंने उन्हें कुँवारी मरियम पर चिंतन करने की भी सलाह दी थी ताकि प्रेम एवं कोमलता के स्वभाव पर पुनः विश्वास किया जा सके। उनमें हम दीनता एवं कोमलता देखते हैं जो दुर्बलों के नहीं बल्कि बलवानों के सद्गुण हैं, जिन्हें अपने आपमें महत्वपूर्ण महसूस करने के लिए कमजोर लोगों पर भय दिखाने की आवश्यकता नहीं है।

पुरोहित एवं गरीब

संत पापा फ्राँसिस के अनुसार एक पुरोहित आध्यात्मिक रूप से रोजमर्रा की जिंदगी की वास्तविकता में सन्निहित है। वह शोषित लोगों के लिए नबी की आवाज है। प्रेरितिक प्रबोधन एवंनजेली गौदियुम में वे लिखते हैं कि कलीसिया किस तरह न्याय के लिए संघर्ष कर रहे लोगों का साथ देती एवं उनका साथ दिये बिना नहीं रह सकती है। ईश्वर का राज्य इसी धरती पर शुरू होता है और यह येसु के द्वारा आ चुका है। हमारा अंतिम न्याय गरीबों, बीमारों, परदेशियों और कैदियों के लिए ख्रीस्त के नाम पर किये गये कार्य द्वारा किया जाएगा। इस बात के द्वारा हमारा न्याय किया जाएगा कि हमने किस तरह प्रेम किया है। किन्तु जैसा कि संत जॉन पौल द्वितीय कहते हैं न्याय के बिना प्रेम असंभव है।

संत पापा फ्राँसिस एक युवा पुरोहित
संत पापा फ्राँसिस एक युवा पुरोहित

पुरोहित अपना जीवन जोखिम में डालते हैं  

संत जॉन मेरी वियन्नी की पुण्यतिथि की 160वीं वर्षगाँठ मनाने वाले उन पुरोहितों को संत पापा ने धन्यवाद दिया था "जो अपना जीवन दुर्गम इलाकों अथवा परित्यक्त क्षेत्रों में दया के कार्यों में समर्पित करते हैं।" उन्होंने उनके साहस एवं आदर्श जीवन के लिए उन्हें धन्यवाद दिया था तथा उन्हें निराश नहीं होने का प्रोत्साहन दिया था क्योंकि प्रभु अपनी दुल्हिन (कलीसिया) को परिशुद्ध कर रहे हैं, हम सभी को परिवर्तित कर रहे हैं।"  

उसी पत्र में संत पापा ने यौन दुराचार के संबंध में लिखा था और उसके शिकार लोगों के प्रति सहानुभूति प्रकट की थी। उन्होंने उन पुरोहितों के प्रति आभार प्रकट किया था जो निष्ठा एवं उदारता पूर्वक दूसरों की सेवा में अपना जीवन समर्पित करते हैं।

पुरोहित एवं थकान

सन् 2015 में पुण्य बृहस्पतिवार के दिन संत पेत्रुस महागिरजाघर में क्रिस्मा मिस्सा के दौरान, संत पापा ने पुरोहितों की थकान पर खुले रूप से कहा था कि वे बहुधा इसपर चिंतन किया करते हैं एवं उनके लिए प्रार्थना करते हैं, खासकर, जब वे स्वयं थकान महसूस करते हैं। "मैं आप सभी के लिए प्रार्थना करता हूँ जब आपमें से कई ईश्वर की प्रजा की सेवा, एकाकी और जोखिम भरे क्षेत्रों में करते हैं। हमारा श्रम एक सुगंधित धूप के समान है जो सीधे स्वर्ग की ओर उठता है। हमारा परिश्रम सीधे पिता के हृदय तक पहुँचता है।

संत पापा फ्राँसिस
संत पापा फ्राँसिस

पुरोहित एवं विनोद

संत पापा पुरोहितों को अक्सर याद दिलाते हैं कि संत गण आनन्द और विनोद के भाव के साथ जीते हैं। यह आनन्द येसु के साथ संयुक्ति से आता है। उन्होंने बतलाया था कि वे स्वयं विनोदी बने रहने के लिए प्रार्थना करते हैं। यह एक अत्यन्त मानवीय है किन्तु यह ईश्वर की कृपा के अति करीब है।

संत पापा पुरोहितों को सहयोग देने की अपील करते हैं  

संत पापा फ्राँसिस पुरोहितों को सलाह देते हैं कि वे हमेशा लोगों के करीब रहें, किन्तु साथ ही वे विश्वासियों से भी अपील करते हैं कि वे पुरोहितों को सहयोग दें। 28 मार्च 2013 के क्रिस्मा मिस्सा के उपदेश में उन्होंने कहा था, "प्यारे विश्वासियों स्नेह एवं प्रार्थना द्वारा अपने पुरोहितों के करीब रहें ताकि वे ईश्वर की इच्छा अनुसार सदा आपके चरवाहे बने रह सकें।"  

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12 December 2019, 16:32