पवित्र बाईबिल पवित्र बाईबिल 

संत पापा ने ईशवचन के रविवार की स्थापना की

संत पापा फ्राँसिस ने, सोमवार, 30 सितम्बर को “मोतू प्रोप्रियो” अर्थात् स्वप्रेरणा से रचित पत्र "अपेरूइत इल्लीस" की घोषणा कर, सामान्य काल के तीसरे रविवार को ईशवचन को मनाने, उसका अध्ययन करने और प्रचार करने हेतु समर्पित करने का दिन ठहराया है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019 (रेई)˸ दस्तावेज को 30 सितम्बर को प्रकाशित किया गया, जिसका अपना महत्व है क्योंकि इसी दिन संत जेरोम का पर्व मनाया जाता है जिन्होंने बाईबिल का लैटिन में अनुवाद किया था और कहा था, "बाईबिल को नहीं जानना ख्रीस्त को नहीं जानना है।" यह साल उनकी मृत्यु का 1600वाँ साल है।   

दस्तावेज का शीर्षक "अपेरूइत इल्लीस" भी उसी तरह महत्वपूर्ण है। यह सुसमाचार लेखक संत लूकस के सुसमाचार के प्रथम वाक्य से लिया गया है जिसमें वे शिष्यों के बीच पुनर्जीवित ख्रीस्त के प्रकट होने का वर्णन करते हैं और बतलाते हैं कि किस तरह उन्होंने उनके हृदय को "सुसमाचार को समझने के लिए खोल दिया था"।  

आग्रह का जवाब

संत पापा फ्राँसिस ने कहा है कि द्वितीय वाटिकन महासभा द्वारा कलीसिया के जीवन के लिए, पवित्र धर्मग्रंथ की पुनः खोज को महत्व दिये जाने की याद करते हुए, उन्होंने यह पत्र लिखा है ताकि विश्वभर के विश्वासियों द्वारा ईशवचन के रविवार को मनाने हेतु उनके आग्रह का उत्तर दिया जा सके।  

ख्रीस्तीय एकतावर्धक महत्व

मोतु प्रोप्रियो में संत पापा ने घोषणा की है कि "सामान्य काल के तीसरे रविवार को ईशवचन को मनाने, अध्ययन करने और प्रसार करने हेतु समर्पित किया जाए।" उन्होंने कहा है कि यह लौकिक संयोग से बढ़कर है इसका ख्रीस्तीय एकतावर्धक महत्व है चूँकि सुसमाचार संकेत देता है कि जो लोग उसे सुनते हैं, वे सच्चे और दृढ़ एकता के रास्ते पर चलते हैं।"

एक समारोह

संत पापा स्थानीय समुदायों को निमंत्रण देते हैं कि इस रविवार को "एक समारोह के रूप में मनाया जाए।" इसके लिए उन्होंने सलाह दी है कि पवित्र धर्मग्रंथ को सामने स्थापित किया जाए, ताकि ईशवचन के महत्व की ओर सभा का ध्यान खींचा जा सके। प्रभु के वचन की घोषणा पर प्रकाश डालते हुए उपदेश में इसे उचित सम्मान दिये जाने पर जोर दिया जाए।   

उन्होंने कहा है कि चरवाहे अपनी रेवड़ के लिए पवित्र बाईबिल अथवा उसकी कोई पुस्तक प्रदान किये जाने की व्यवस्था करें, ताकि पूरी सभा को उसे पढ़ने, उसपर चिंतन करने एवं प्रतिदिन प्रार्थना करने के महत्व को दिखलाया किया जा सके।  

पवित्र बाईबिल सभी के लिए है

संत पापा ने कहा है कि बाईबिल कुछ चुने हुए लोगों के लिए नहीं है। यह उन सभी लोगों के लिए है जो इसके संदेश को सुनते और इसके वचनों में अपने को पहचानते हैं। बाईबिल पर एकाधिकार नहीं किया जा सकता और न ही इसे किसी दल विशेष के लिए सीमित रखा जा सकता है क्योंकि यह प्रभु की किताब है। जो लोग इसे सुनते हैं वे विभाजन को छोड़ एकता की ओर बढ़ते हैं।

उपदेश का महत्व

संत पापा ने कहा है कि पुरोहित सबसे पहले पवित्र धर्मग्रंथ की व्याख्या करने और प्रत्येक विश्वासी को उसे समझने में मदद देने हेतु उत्तरदायी हैं। अतः उपदेश का महत्व संस्कार के समान है। संत पापा ने पुरोहितों को लम्बा उपदेश देने अथवा असंबंधित विषयों द्वारा भटकाने के विरूद्ध चेतावनी दी है। इसके विपरीत उन्होंने उन्हें सरल और उपयुक्त भाषा का प्रयोग करने की सलाह दी है क्योंकि कई विश्वासियों के लिए यही एकमात्र अवसर होता है जब वे ईश्वर के वचन की सुन्दरता को ग्रहण करते और उसे अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करते हैं।  

पवित्र बाईबिल और संस्कार

संत पापा ने एम्माउस के रास्ते पर शिष्यों को पुनर्जीवित ख्रीस्त के प्रकट होने के दृश्य को प्रस्तुत किया है जिसको उन्होंने पवित्र धर्मग्रंथ एवं यूखरिस्त के बीच अटूट संबंध कहा है। सुसमाचार में हर जगह ख्रीस्त के बारे बतलाया गया है जो हमें यह विश्वास करने में मदद देता है कि उनकी मृत्यु और उनका पुनरूत्थान कोई काल्पनिक कथा नहीं है बल्कि इतिहास है और उनके शिष्यों के विश्वास का केंद्र है।  

जब संस्कारों का परिचय दिया जाता और उसे ईशवचन द्वारा प्रकाशित किया जाता है तब यह अधिक स्पष्ट होता है जिसमें प्रभु अपनी मुक्ति कार्य के लिए हमारे मन और हृदय को खोलते हैं।

पवित्र आत्मा का कार्य

धर्मग्रंथ में पवित्र आत्मा की भूमिका अहम है। पवित्र आत्मा के कार्य के बिना हमेशा एक खतरा होता है कि हम उसके लिखे शब्दों तक ही सीमित हो जाए, जो एक चरमपंथी पाठक के रास्ते को खोलता है। हमें उससे बचना चाहिए क्योंकि इसके द्वारा हम पवित्र धर्मग्रंथ के प्रेरित गतिशीलता एवं आध्यात्मिक विशिष्ठता के साथ धोखा करते हैं। पवित्र आत्मा ही है जो पवित्र धर्मग्रंथ को ईश्वर का जीवित वचन बनाता है जो अनुभव किया गया एवं विश्वास में उनकी पवित्र प्रजा को हस्तांतरित किया गया है।  

संत पापा ने निमंत्रण दिया है कि हम ईश वचन को कभी भी हल्के रूप में न लें बल्कि इसके द्वारा हम अपने आपको पोषित होने दें। ताकि हम उनके साथ एवं हमारे भाई बहनों के साथ, संबंधों को स्वीकार कर सकें एवं उसे पूर्ण रूप से जी सकें।

करुणा का अभ्यास

संत पापा ने मोतु प्रोप्रिया के अंत में कहा है कि हमारे जीवन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, सुसमाचार को सुनना और करुणा का अभ्यास करना। ईश वचन में हमारी आँखों को खोलने और दम घोंटने वाले, बंजर व्यक्तिवाद का त्याग करने की शक्ति है। उसके विपरीत इसमें बांटने एवं एकात्मता के नये रास्ते पर ले चलने का सामर्थ्य है।

पत्र का समापन माता मरियम के आदर्श को प्रस्तुत करते हुए किया गया है जो ईश वचन का स्वागत करने में हमारा साथ देतीं, उसे आनन्द से सुनने एवं अपने मन में रखने सिखलाती हैं।  

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01 October 2019, 16:37