बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा  

ईश्वर सभों की मुक्ति चाहते हैं

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की अपनी धर्मशिक्षा माला में इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर सभों का मुक्ति चाहते हैं।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार 16 अक्टूबर 2019 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को प्रेरित चरित पर अपनी धर्मशिक्षा माला देने के पूर्व संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

विश्व में सुसमाचार प्रचार की यात्रा जिसकी चर्चा संत लूकस प्रेरित चरित में करते हैं अपने में ईश्वर के सर्वोत्तम सृजनात्मक कार्यों में अभिव्यक्त होता जो हमें अचम्भित करते हैं। ईश्वर अपनी संतानों से यही चाह रखते हैं कि वे हर तरह के विशेषतावाद पर विजय होते हुए अपने को सार्वभौमिकता मुक्ति हेतु खुला रखें। संत पापा ने कहा कि विशेषतावाद पर विजय होना और अपने को दुनिया की मुक्ति हेतु खुला रखने का तत्पर्य यही है कि ईश्वर सभों को बचाना चाहते हैं। वे जो जल और बपतिस्मा के द्वारा नये जीवन को प्राप्त किये हैं उन्हें अपने आप से बाहर निकलने की जरूरत है जिससे वे अपने जीवन को दूसरों के लिए भ्रातृत्व और एकता में जी सकें जो एक-दूसरे से हमारे व्यक्तिगत संबंध में भाईचारे की अनुभूति लाती है।

संत पेत्रुस को दर्शन

भ्रातृत्व के इस साक्ष्य को पवित्र आत्मा संत पेत्रुस के जीवन द्वारा प्रस्तुत करते हैं जो संत पौलुस के संग प्रेरित चरित के नायक हैं। संत पेत्रुस अपने जीवन में एक ऐसी घटना से होकर गुजरते हैं जो उसके जीवनकाल में एक निर्णायक दौर होता है। वह अपने में प्रार्थना कर रहा होता है जहाँ उसे एक दिव्य दर्शन मिलता है जो उसकी मानसिकता में परिवर्तन लाता है। उन्हें स्वर्ग से लम्बी-चौड़ी चादर जैसी कोई चीज उतरती दिखाई देती है, उस में सब प्रकार के चौपये पृथ्वी पर रेंगने वाले जीव-जन्तु और आकाश के पक्षी हैं। उसे एक वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ती है जो उन्हें मार कर, उनके मांस खाने का निमंत्रण देती है।  एक सच्चे यहूदी की रुप में वह यह कहते हुए इंकार करता है कि उसने कभी कोई अपवित्र अथवा अशुद्ध नहीं खाया है जैसे कि ईश्वर की संहिता में वर्णित है। (लेवी.11) इस पर ईश्वरीय वाणी पुनः जोर से सुनाई देती जो उसे कहती है, “ईश्वर ने जसे शुद्ध घोषित किया, तुम उसे अशुद्ध मत कहो।” (प्रेरि.10.15)

मानवीय अशुद्धता बाह्य नहीं

संत पापा ने कहा कि इस वास्तविकता के आधार पर ईश्वर संत पेत्रुस के यह चाहते हैं कि वह घटनाओं के अनुसार लोगों को शुद्ध और अशुद्ध घोषित न करे बल्कि वह इसके पारे जाते हुए व्यक्ति को और उसके हृदय के विचारों पर गौर करे। वास्तव में, मनुष्य को बाहर से आने वाली चीजें अशुद्ध नहीं करती वरन वे चीजें अशुद्ध करती हैं जो स्वयं उसके अंदर, हृदय से आती हैं। (मरकुस 7.21) येसु ने इसके बारे में स्पष्ट रुप से कहा है।

उस दर्शन उपरांत ईश्वर संत पेत्रुस को एक गैर-यहूदी करनेलियुस के घर भेजते हैं जो कैसरिया में इटालियन पलटन का शतपति था। वह और उसका समस्त परिवार धर्मपरायण तथा ईश भक्त था। वह यहूदियों को बहुत-सा भिक्षादान दिया करता और हर समय ईश्वर की प्रार्थना में लगा रहता था। (प्रेरि.10.1-2)

संत पेत्रुस उसके घर में क्रूस और पुनर्जीवित येसु ख्रीस्त के बारे में प्रवचन देते और उन पर विश्वास करने वाले के पाप क्षमा की बात कहते हैं। जब वे इन सारी बातों की व्याख्या कर रहे होते कि पवित्र आत्मा करनेलियुस और उसके परिवार पर उतरा है। संत पेत्रुस उन्हें येसु ख्रीस्त के नाम पर बपतिस्मा प्रदान करते हैं।(प्रेरि. 10.48)

दूसरों हेतु ईश्वरीय कृपा के स्रोत बनें

संत पापा ने कहा कि यह एक अभूतपूर्व घटना है जो पहली मर्तबा येरूसालेम में घटी जिसके बारे में लोग जानते हैं। यह घटना ख्रीस्तीय समुदाय के अन्य बंधुओं के लिए एक तरह से ठेस का कारण बनती और वे पेत्रुस के कार्यों की घोर आलोचना करते हैं। (प्रेरि.11. 1-3) पेत्रुस अपने स्वभाव के विपरीत कार्य करते हैं जो संहिता के नियमों के परे है और इसके लिए उन्हें गलियाँ सुननी पड़ी है। संत पापा ने कहा कि करनेलियुस से मिलने के बाद पेत्रुस अपने में अधिक स्वतंत्रता अनुभव करता है, साथ ही वह अपने को ईश्वर के संग तथा दूसरे के और अधिक निकट पाता है क्योंकि उन्होंने ईश्वर की योजना को पवित्र आत्मा के द्वारा पूरा होते देखा है। वह इस बात को भली-भांति समझता है कि इस्रराएल का चुनाव उसके भले कार्यो के कारण नहीं वरन ईश्वर के शर्तहीन प्रेम में इसलिए हुआ कि वे गैर-यहूदियों के लिए ईश्वरीय कृपा का स्रोत बनें।

अपने व्यवहार की परख करें

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि प्रेरितों में प्रधान द्वारा हम इस बात को जानते हैं कि सुसमाचार प्रचारक ईश्वरीय सृजनात्मक कार्यों का अवरोधक नहीं हो सकता है, जहाँ ईश्वर सारी मानव जाति को बचाने की चाह रखते हैं। (1 तिमथी.2.4) वह अपने हृदय में ईश्वर से मिलन की अनूभूति का एहसास करता है। हम अपने भाई-बहनों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं विशेषकर उसके साथ जो ख्रीस्त नहीं हैंॽ क्या ईश्वर से मिलन हेतु हम अपने में बाधा का अनुभव करते हैंॽ क्या हम उन्हें ईश्वर से मिलने में सहायता प्रदान करते या उनके लिए बाधा उत्पन्न करते हैंॽ  

हम आज ईश्वर से उस कृपा हेतु निवेदन करें कि वे हमें अपने आश्चर्य से विस्मित होने दें। हम उनके सकारात्मक कार्यों में बाधा उत्पन्न न करें बल्कि पुनर्जीवित येसु ख्रीस्त के कार्यों को पहचाने और उसे बढ़ावा दें जहाँ वे सारी दुनिया को पवित्र आत्मा से विभूषित करना चाहते हैं क्योंकि वे सभों के ईश्वर हैं। (प्रेरि.10.36)

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16 October 2019, 16:24