संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

येसु दीन और उदार बनने का निमंत्रण देते हैं, संत पापा

संत पापा ने देवदूत प्रार्थना के पूर्व कहा- इस आशा से दूसरों की मदद करते हैं ताकि बदले में हमें भी कुछ मिले। मानवीय आदान-प्रदान, वास्तव में, संबंधों को नष्ट करता तथा उसे व्यवसायी बना देता है। यह संबधों में अपनी व्यक्तिगत रूचि को प्रस्तुत करता है जबकि उसे उदार और मुक्त होना चाहिए। दूसरी ओर येसु हमें निमंत्रण देते हैं कि हम निःस्वार्थ रूप से उदार बनें तथा महान आनन्द के रास्तों के लिए खुले हों।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 2 सितम्बर 2019 (रेई)˸ वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 1 सितम्बर को, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

इस रविवार का सुसमाचार पाठ (लूक. 14.1,7-14) येसु को दिखलाता है कि वे एक प्रमुख फ़रीसी के यहाँ भोजन करने गये। येसु ने अतिथियों को मुख्य-मुख्य स्थान चुनते देखा। संत पापा ने कहा, "यह मनोभाव हमारे समय में भी आम है, न केवल भोज में निमंत्रण मिलने पर किन्तु अन्य अवसरों पर भी। आमतौर पर,  मुख्य स्थान द्वारा दूसरों से अपनी श्रेष्ठता की पुष्टि करने की कोशिश की जाती है।" वास्तव में अपने लिए मुख्य स्थान चुनना किसी समुदाय, समाज अथवा कलीसिया को हानि पहुँचाता है क्योंकि यह भाईचारा को नष्ट करता है। हम उन सभी लोगों  को जानते हैं जो लगातार ऊपर चढ़ते की कोशिश करते हैं वे भाईचारा की भावना को चोट पहुँचाते हैं और उसकी हानि करते हैं। इस पृष्टभूमि में येसु दो छोटे दृष्टांत बतलाते हैं। इनके द्वारा वे हमारे जीवन के दो मूल मनोभावों को प्रस्तुत करते हैं – विनम्रता एवं निःस्वार्थ उदारता।  

अपने लिए मुख्य स्थान न चुनें

पहला दृष्टांत उन लोगों के लिए है जो भोज के लिए बुलाये गये थे, उन से आह्वान किया गया है कि वे अपने लिए मुख्य स्थान न चुनें क्योंकि येसु कहते हैं कि "कहीं ऐसा न हो कि तुम से कोई अधिक प्रतिष्ठित अतिथि निमन्त्रित हो और जिसने तुम दोनों को निमन्त्रण दिया है, वह आ कर तुम से कहे, 'इन्हें अपनी जगह दीजिए' और तुम्हें लज्जित हो कर सब से पिछले स्थान पर बैठना पड़े।"(पद. 8-9) येसु इसके विपरीत मनोभाव धारण करने की शिक्षा देते हैं, "जब तुम्हें निमन्त्रण मिले, तो जा कर सब से पिछले स्थान पर बैठो, जिससे निमन्त्रण देने वाला आ कर तुम से यह कहे, 'बन्धु! आगे बढ़ कर बैठिए'। इस प्रकार सभी अतिथियों के सामने तुम्हारा सम्मान होगा।" (पद. 10)

अतः हम अपनी ओर से दूसरों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास न करें बल्कि दूसरों को अपनी ओर आकर्षित होने दें। येसु हमेशा विनम्रता का रास्ता दिखलाते हैं। हमें भी विनम्रता का रास्ता अपनाना चाहिए, क्योंकि यह सच्चा है तथा सच्चे रिश्तों को संभव बनाता है, यह नकली नहीं, सच्ची दीनता है।

किस तरह के अतिथियों को निमंत्रित करें

दूसरे दृष्टांत में येसु उन लोगों को सम्बोधित करते हैं जो निमंत्रण देते हैं कि वे किस तरह के अतिथियों को निमंत्रित करें। "जब तुम भोज दो, तो कंगालों, लूलों, लँगड़ों और अन्धों को बुलाओ। तुम धन्य होगे कि बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है,'' (पद. 13-14) यहाँ भी येसु बिल्कुल उल्टी दिशा में जाते हैं और पिता के मनोभाव को प्रकट करते हैं। यह उनके उपदेश की कुँजी है। क्या है कुँजी? यह एक प्रतिज्ञा है "क्योंकि धर्मियों के पुनरूत्थान के समय तुम्हारा बदला चुका दिया जायेगा।'' (पद. 14) इसका अर्थ है कि जो लोग इस पर विश्वास करेंगे वे अलौकिक पुरस्कार प्राप्त करेंगे जो हर प्रकार के मानवीय पुरस्कार से बढ़कर है।

सच्ची ख्रीस्तीयता

हम इस आशा से दूसरों की मदद करते हैं ताकि बदले में हमें भी कुछ मिले। संत पापा ने कहा कि यह ख्रीस्तीयता नहीं है। एक ख्रीस्तीय को विनम्र और उदार होना चाहिए। आप क्या उम्मीद करते हैं? मानवीय आदान-प्रदान, वास्तव में, संबंधों को नष्ट करता तथा उसे व्यवसायी बना देता है, संबधों में अपनी व्यक्तिगत रूचि को प्रस्तुत करता जबकि उसे उदार और मुक्त होना चाहिए। दूसरी ओर येसु हमें निमंत्रण देते हैं कि हम निःस्वार्थ रूप से उदार बनें तथा महान आनन्द के रास्तों के लिए खुले हों, ईश्वर के प्रेम के सहभागी होने का आनन्द, जो स्वर्ग के भोज में हम सभी का इंतजार कर रहे हैं।

पिछला स्थान को चुनने का अर्थ

संत पापा ने कहा, "आज के सुसमाचार की शिक्षा में येसु स्वर्ग के भोज एवं पृथ्वी के भोज को जोड़ते हैं जो अंततः हमें अनन्त जीवन में पिता के साथ मिलाता है। पिछला स्थान को चुनने का अर्थ है, इस बात के प्रति सचेत होना कि हमारी अयोग्यता के बावजूद वे हमसे कितना अधिक प्यार करते हैं। यह पूर्ण रूप से उनकी कृपा है। पिता ईश्वर ने हमें बुलाया है और वे सभी दानों एवं सम्मान के स्रोत हैं जो हमें अंतिम स्थान पर बैठने के लिए भेज सकते हैं। शब्द ने बड़ी विनम्रता के साथ शरीर धारण किया ताकि हम सभी को, पिता के अंतिम बेटे-बेटी को भी बचा सके।   

संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना करते हुए कहा, "धन्य कुँवारी मरियम, सभी सृष्ट जीवों में दीन एवं महान हैं, हमें अपनी वास्तविकता अर्थात् हमारी नग्णयता को पहचानने तथा पाने की आशा किये बिना देने के आनन्द का अनुभव करने में मदद दे।"

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

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02 September 2019, 13:47