लूर्द की तीर्थयात्रा लूर्द की तीर्थयात्रा 

लूर्द जाने वाले तीर्थयात्रियों को संत पापा का संदेश

संत पापा फ्राँसिस ने लूर्द की राष्ट्रीय तीर्थयात्रा "यूनितालसी" के प्रतिभागियों को एक संदेश भेजा। यूनितालसी का संचालन स्वयंसेवकों द्वारा किया जाता है। तीर्थयात्री कठिन समय में शांति और आराम की तलाश में तीर्थयात्रा करते हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 26 सितम्बर 2019 (रेई)˸ सन् 1903 में एक पीड़ित व्यक्ति ने इस आशा से लूर्द की तीर्थयात्रा की थी कि वह अपनी पीड़ा से मुक्त हो सके, ताकि वह अपने जीवन की देखभाल खुद कर सके जिसके लिए वह असमर्थ था।

हालांकि, वह गठिया के रोग से शारीरिक चंगाई नहीं प्राप्त कर सका, उसने मानसिक एवं आध्यात्मिक चंगाई प्राप्त की। उसमें आशा जगी और वह प्रेम किया गया महसूस किया।

जोवन्नी बत्तिस्ता तोमास्सी नाम के एक-दूसरे व्यक्ति ने भी जीवन में बदलाव की चाह से लूर्द की तीर्थयात्रा की थी।

यूनितालसी

यूनितालसी की स्थापना चंगाई पाने की चाह रखने वालों के लिए की गयी है। यूनितालसी का अर्थ है लूर्द और अंतर्राष्ट्रीय तीर्थस्थलों में, बीमार लोगों के लिए इतावी राष्ट्रीय संघ की यातायात सुविधा। यह एक स्वयंसेवक संगठन है जो रोगियों, विकलांगों, बुजूरगों एवं जिन्हें लूर्द या अंतर्राष्ट्रीय तीर्थस्थलों में जाने हेतु मदद की आवश्यकता होती है उनके लिए व्यवस्था करता तथा उनका साथ देता है।

संत पापा के शब्द

लूर्द में अगले तीर्थयात्रा के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस की ओर से वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन ने एक तार संदेश में लिखा कि संत पापा जो आध्यात्मिक रूप से तीर्थयात्रियों और स्वयंसेवकों के साथ उनकी यात्रा में हैं, उम्मीद करते हैं कि प्रार्थना एवं भाईचारा की भावना का यह महत्वपूर्ण अनुभव हरेक व्यक्ति को मदद करे ताकि वे पीड़ित, महिमान्वित एवं हरेक व्यक्ति में उपस्थित येसु को पहचान सकें।  

वे यह भी आशा करते हैं कि तीर्थयात्री सांत्वना एवं आशा का अनुभव कर सकें जो विश्वास से आता है। उन्होंने संदेश के अंत में कहा कि वे उन्हें अपनी प्रार्थना का आश्वासन देते हैं।

जीवन का एक रास्ता

यूनितालसी के वेबसाईट में कहा गया है कि हमारे जीवन का रास्ता हमें तीर्थयात्रा के बाद भी एक साथ आगे ले चले, जिसके लिए 2001 से जरूरतमंद लोगों के जीवन को आसान बनाने हेतु उदार कार्य किया जा रहा है- जिससे युवाओं को मदद मिले, घरों में सहायता दी जा सके और अवकाश की व्यवस्था हो सके।   

स्वयं सेवक होने के साथ-साथ संगठन, नागरिक सेवा को भी बढ़ावा देता है। जिसका आयोजन करना धर्मबहनों, स्ट्रेचर वाहकों, परिवारों, स्वस्थकर्मियों, युवाओं, पुरोहितों, विकलांग लोगों एवं उपकारकों के बिना संभव नहीं है। ये सभी एक साथ मिलकर संगठन को सार्थक बनाते हैं।  

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26 September 2019, 15:58