मोजांबिक येसु समाजियों से संत पापा फ्रांसिस मोजांबिक येसु समाजियों से संत पापा फ्रांसिस  

मोजांबिक-मडागास्कर के येसु समाजियों से पोप फ्रांसिस की भेंट

जेस्विट प्रकाशन “ला चीभीता कथोलिका” ने संत पापा की मोजांबिक और मडागास्कर की प्रेरितिक यात्रा के दौरान वहाँ के येसु समाजियों से हुए भेंटवार्ता को प्रकाशित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार 27 सितम्बर 2019 (रेई) संत पापा फ्रांसिस द्वारा दक्षिणी अफ्रीकी देशों की यात्रा के दौरान मोजांबिक और मडागास्कर के येसु समाजियों से मिलन को “ला चीभीता कथोलिका” ने “ईश्वरीय लोगों की संप्रभुता” शीर्षक से प्रकाशित किया है।

5 सितम्बर 2019 को मोजांबिक की अपनी यात्रा के दौरान संत पापा फ्रांसिस ने 24 येसु समाजी भाइयों से एक व्यक्तिगत मुलाकात की जिसमें 20 मोजांबिक, 3 जिम्बाब्बे और 01 पुर्तागाल के थे। यह मिलन प्रेरितिक राजदूत आवास में संत पापा के कार्यक्रमों की समाप्ति उपरांत शाम साढ़े छः बजे हुआ। जिम्बाब्वे-मोजांबिक येसु समाज प्रांत की स्थापना दिसम्बर महीना के अंत सन् 2014 में हुई थी। वर्तमान समय में इस प्रांत में येसु समाजियों की संख्या 163 है जिसमें 90 युवा स्कोलिटक्स प्रशिक्षण में हैं। संत पापा फ्रांसिस से करीबन एक घंटे की अपनी मुलाकात में उन्होंने उनसे कई सवाल पूछे।

पुरोहित पौल मायेरेसा, जो शिक्षण की प्रेरिताई में संलग्न हैं संत पापा से येसु समाज की प्रेरिताई कार्यों की प्राथमिकता पर सवाल पूछते हुए कहा कि हम उन्हें मोजांबिक में किस तरह जी सकते हैं।

संत पापा ने अपने उत्तर में कहा कि खंडित समाज का पुनर्निर्माण करना अपने में सहज नहीं है। आप उस देश में रहते हैं जहाँ युद्ध के कारण मोजांबिकवासी एक दूसरे से लड़ रहे हैं। उदाहरण के लिए संत पापा ने कहा कि मैं सोचता हुए आध्यात्मिक साधना इस संदर्भ में हमारी सहायता अधिक करेंगा। यह उन लोगों के लिए दिये जा सकते हैं जो समाज के विभिन्न विभागों में कार्यरत हैं जिससे वे अपने कार्यों में एकता और मेल-मिलाप को बढ़ावा दे सकें। आध्यात्मिक आत्म-परिक्षण के अनुभव उन्हें उनके कार्यों में मदद कर सकते हैं।

हमारे लिए यह उचित है कि हम सभी दलों का साथ दें विशेषकर जब हम इस बात को देखते हैं कि देश और समाज में एकता और मेल-मिलाप की आवश्यकता है। हम अपने में इस बात का अनुभव करते हैं कभी-कभी शुत्र भी अपने में अच्छा ही है, मेल-मिलाप की आवश्यकता पर हमें तीखी दवाइयों को भी निगलना पड़ता है। इस संदर्भ में आप को धैर्यवान बने रहने हेतु सीखने की जरुरत है। यह हमसे धैर्य में आत्म-परिक्षण की मांग करता है जिससे हम जरुरी चीजों को व्यवस्थित कर सकें और अनहोनी बातों को अपने से दूर रख सकें। कभी-कभी यह बहुत अधिक धैर्य की मांग करती है। हमारे लिए जरुरी है कि हम अपने ज्ञान को एक दूसरे के साथ साझा करें यह कलीसियाई सामाजिक धर्म सिद्धांत है। आप सवधान रहें, येसु समाजी अपने में विभाजित न हों। मोजांबिक के समाज को मेल-मिलाप, एकता की जरूरत है। आप धैर्य में बने रहें और प्रतीक्षा करें। आप विभाजन के कदम न लें। हम एक समुदाय के रुप में सम्पूर्ण हैं, आधे-आधे में नहीं।

आप शिक्षण की प्रेरिताई में युवाओं के साथ हैं जो महत्वपूर्ण और चुनौती भरा है। युवाओं में कार्य करने का जोश है लेकिन वे अपनी अधीरता में तुरंत ही धोखे का शिकार हो जाते हैं। हमें उनके निकट रहने की जरुरत है जिससे हम उन्होंने समय दें सकें जो उन्हें अपने हृदय में होने वाले हल-चल को जानने और पहचाने में मदद करेगा। प्रशिक्षण, विचारों और मनोभावों को एक साथ लेकर चलता है। उचित कार्य करने हेतु हमें सदा अपने विचारों और भावनाओं पर चिंतन करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए हमें छोटों को यह पहचानने में सहायता करने की जरुरत है कि वे क्यों और कब अपने में नकारात्मक और ठहराव की स्थिति में आ जाते हैं। हमें उन्हें यह पहचानने में मदद करने की जरुरत है कि वे कब स्वस्थ्य उत्तेजना की स्थिति में रहते हैं। संक्षेप में हमें आध्यात्मिक आत्म-परिक्षण की जरुरत है जिससे समाज का हित हो सके।

संत इनसियो लोयोला स्कूल के पुरोहित बेंदितो नोगोज़ो ने संत पापा से सवाल पूछते हुए कहा, “कुछ प्रोटेस्टन्ट पैसा का लालच दे कर धर्म परिवर्तन करते हैं। गरीब धनी होने की आशा में उन समुदायों के अंग बन जाते हैं। इस तरह वे कलीसिया का परित्याग करते हैं। आप हमें क्या सुझाव देना चाहेंगे जो हमारे सुसमाचार प्रचार को धर्म परिवर्तन नहीं बनायेगाॽ”

आप जो कहते हैं वह बहुत महत्वपूर्ण है। हमें उन “प्रोटेस्टन्ट” समुदायों की पहचान और परख अच्छी तरह से करने की जरुरत है। बहुत से हैं जिनके साथ हम अपने कार्यों को अच्छी तरह कर सकते हैं जो गंभीरता, खुले हृदय और सकारात्मक रुप में अंतरकलीसियाई वार्ता की बात करते हैं। वहीं दूसरे हैं जो सिर्फ धर्म परिवर्तन करने की कोशिश करते हुए समृद्धि के ईशशस्त्र की बात कहते है। इस संदर्भ में चीभीता कथोलिका ने दो लेख प्रकाशित किये हैं। मैं आप को उन्हें पढ़ने का निर्देश देता हूँ। वे पुरोहित स्पादारो और अर्जेटीना के धर्मप्रचारक मर्चेलो फिगुएरोवा द्वारा लिखे गये हैं। प्रथम लेख “अंतरकलीसियाई घृणा” की चर्चा करता है। दूसरा “समृद्धि के ईशशस्त्र” का उल्लेख करता है। ये लेख आप को इस बात का एहसास करायेंगे कि बहुत से संप्रदाय हैं जिन्हें हम ख्रीस्तीय की संज्ञा नहीं दे सकते हैं। वे ख्रीस्त का प्रचार करते हैं लेकिन उनका संदेश ख्रीस्तीय नहीं है। उनका ताल्लुकात लुथरन या किसी गंभीर ख्रीस्तीय धर्मप्रचार समुदाय से नहीं है। वे अपने में समृद्धि के “धर्मप्रचारक” कहलाते हैं। वे उस सुसमाचार को घोषित करते जो निर्धनता को नहीं जानता वरन केवल धर्म परिवर्तन पर जोर देता है। येसु अपने समय के फरीसियों में इसी बात का खंडन करते थे। मैंने कई बार इसके विषय में कहा है कि धर्मपरिवर्तनवाद ख्रीस्तीयता का अंग नहीं है।

आज युवाओं से मिलते हुए मुझे थोड़ा कटु अनुभव हुआ। एक महिला मेरे पास आई जिसके साथ एक नवयुवक और एक नवयुवती थी। मुझे बतलाया गया कि वे थोड़े कट्टरवाद अंदोलन से जुड़े हैं। उस महिला ने मुझे स्पानी भाषा में कहा, “अति मान्यवर स्वामी, मैं दक्षिण अफ्रीका से हूँ। यह लड़का एक हिन्दू है जो ख्रीस्तीयता को स्वीकार किया है, जबकि यह लड़की एक एगलिंकन है जो ख्रीस्तीय बनी है।” उसने मुझे इस बात को इस तरह बतलाया मानो वह मुझे विजयी ट्राफी दिखला रही हो। मैं थोड़ा असहज महसूस किया अतः मैंने कहा “मैडम, सुसमाचार प्रचार ठीक है लेकिन धर्म परिवर्तन नहीं।”  

मेरा कहने का अर्थ है सुसमाचार प्रचार अपने में स्वतंत्रता है। वहीं धर्म परिवर्तन आपकी स्वतंत्रता को छीन लेता है। यह हमें धार्मिकता के स्वतंत्र मार्ग में बढ़ने नहीं देता है। यह लोगों को एक तरह से गुलाम की तरह देखता है। सुसमाचार प्रचार में ईश्वर की प्रधानता होती वहीं धर्म परिवर्तन में मैं प्रमुख हो जाता है।   

यह सत्य है कि धर्म परिवर्तन के कई रूप हैं। फुटबॉल प्रेमियों का दल और एक दल बनाना अपने में सही है। दूसरी ओर यह स्पष्ट है कि हम धर्म परिवर्तन को व्यापार और राजनीतिक दलों के रुप में देखते हैं। धर्म परिवर्तन का स्वरूप अपने में फैला हुआ है जिसे हम सभी जानते हैं। लेकिन यह हमारे साथ नहीं होना चाहिए। हम सुसमाचार का प्रचार करें जो धर्म परिवर्तन से एकदम भिन्न है।

आसीसी के संत फ्रांसिस ने अपने पुरोहितों से कहा, “दुनिया में सुसमाचार प्रचार हेतु जाओ। और, यदि जरुरत पड़ी, तो शब्दों का भी उपयोग करो।” सुसमाचार प्रचार अपने में खासकर साक्ष्य देना है। धर्म परिवर्तन अपने में विश्वसनीय है लेकिन यह केवल सदस्य बनाना है जो हमारी स्वतंत्रता का हनन करती है। मैं विश्वास करता हूँ यह अंतर आप के लिए सहायक होगा। संत पापा बेनेदिक्त 16वें ने अपारेचीदा में एक सुन्दर बात कही कि कलीसिया का विकास धर्म परिवर्तन से नहीं होता, इसका विकास आकर्षण से होता है जो साक्ष्य में निहित है। संप्रदाय वहीं दूसरी ओर लोगों को एक दूसरे से अलग करता है, उन्हें बहुत सारी चीजों का वादा कराता और उन्हें अपने में छोड़ देता है।

आप के बीच में निश्चित ही बुहत से लोग ईशशस्त्री, सामाजिक शास्त्री और दर्शनशस्त्री हैं मैं आप से आग्रह करता हूँ कि आप सुसमाचार प्रचार और धर्म परिवर्तन पर और अधिक अध्ययन करें जिससे आप इनके बीच अंतर स्पष्ट कर सकें। आप संत पापा पौल 6वें की “इवांजेली नुन्तयांदी” का अध्ययन अच्छी तरह से करें। वहाँ इस बात की चर्चा की गई है कि कलीसिया की बुलाहट सुसमाचार का प्रचार करना है। वास्तव में, कलीसिया की पहचान सुसमाचार प्रचार में हैं। खेद की बात यह है कि केवल दूसरे संप्रदाय में ही नहीं वरन काथलिक कलीसिया में भी कट्टरपंथी समुदाय हैं। वे सुसमाचार प्रचार की अपेक्षा धर्म परिवर्तन पर जोर देते हैं।

धर्म परिवर्तन की एक दूसरी बात यह है कि यह अंतरिक और बाह्य बातों पर अंतर स्पष्ट नहीं करती है। और यह पाप है जिस पर बहुत से धार्मिक सुमदाय अपने में गिर रहे हैं। यही कारण है कि मैं प्रेरितिक दण्डमोचन विभाग से अनुरोध करता हूँ कि वे आंतरिक मंच पर एक बयान तैयार करें जो अपने में बहुत अच्छा होता है।

सुसमाचार प्रचारक अंतःकरण को चोटिल नहीं करते, वरन उसके विकास में सहायता प्रदान करते हैं। वे जो धर्म परिवर्तन कराते हैं वे लोगों के अंतःकरण को घायल करते हैं, जो उन्हें स्वतंत्र नहीं, वरन गुलाम बना देता है। सुसमाचार आप को स्वंतत्र करता जहाँ आप विकास करते हैं। धर्म परिवर्तन अंतःकरण और सामाजिक स्तर पर हमें ग़ुलाम कर देता है। सुसमाचार की निर्भरता हमें ईश्वरीय कृपा की याद दिलाती है। धर्म परिवर्तन की निर्भरता हमें बच्चों वाली निर्भरता में नहीं रखती वरन गुलामों-सा निर्भर बना देती है जहां हम स्वयं अपने में नहीं जानते कि हमें क्या करना है जबतक कि कोई हमें दिशा-निर्देशित न करे। आप चीभीता कथोलिका का अध्ययन करें क्योंकि उसमें इसके बारे जिक्र किया गया है। मैंने आप को मुख्य बातें बतलाने की कोशिश की है।

फा. लियोनर्डो अलेक्सद्रया सिमाओ के संत पापा ने पूछा कि किसी तरह ईश्वरीय अनुभूति उनके जीवन को परिणत कर दिया है विशेषकर जब से वे कलीसिया के अगुवे नियुक्त किये गये हैं।

संत पापा ने कहा कि वास्तव में, मैं इसके बारे में नहीं कह सकता हूँ। मेरे कहने का अर्थ है कि ईश्वर के बारे में मेरे अनुभव कोई खास रुप से परिवर्तित नहीं हुए हैं। मैं वैसे ही हूँ जैसी कि पहले था। हाँ, मैं अपने में एक बड़े उत्तरदायित्व का अनुभव करता हूँ इसमें कोई संदेह नहीं है। मेरे प्रार्थना के निवेदन पहले के अधिक विस्तृत हो गये हैं। लेकिन इसके पहले भी मैंने निवेदन प्रार्थना का अनुभव किया और प्रेरितिक कार्यो के प्रति अपने उत्तरदायित्व का एहसास किया। मैं प्रार्थना की राह में सदा चलता रहा हूँ परन्तु मैंने इसमें कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं देखे हैं। मैं ईश्वर से पहले की तरह ही बातें करता हूँ। मैं इस बात का अनुभव करता हूँ कि ईश्वर मुझे वर्तमान की जरूरतों के लिए अपनी कृपाओं से विभूषित करते हैं। ईश्वर ने मुझे अपनी कृपाओं से पहले भी भर दिया है। मैं पहले की तरह ही पापों में गिर जाता हूँ। संत पापा के रुप में मेरी नियुक्ति अचानक मुझ में परिवर्तन नहीं लाई है जो मुझे कम पापी बनाये। मैं पापी हूँ, और पापी बना रहता हूँ। यही कारण है कि मैं हर दूसरे सप्ताह में पापस्वीकार करता हूँ।

मुझे यह सवाल पहले कभी नहीं पूछा गया। मैं आपका धन्यवाद अदा करता हूँ क्योंकि आपका यह सवाल मुझे अपनी आध्यत्मिकता के बारे में चिंतन करने में मदद करता है। जैसा कि मैंने आप सबों से कहा, मैं समझता हूँ मेरे उत्तरदायित्व के बृहृद आभास के अलावे, ईश्वर से मेरे संबंध में कोई परिवर्तन नहीं आया है, केवल प्रार्थना की विचवाई में विस्तार हुआ है। मैं अपने में उन्हीं परीक्षाओं और पापों का अनुभव करता हूँ। मेरे लिए सच्चाई यही है कि यह सफेद परिधान मुझे आज किसी भी रुप में पहले से अधिक पापी या अधिक पवित्र नहीं बनाता है।

मेरे लिए सांत्वना की बात यही है कि पेत्रुस अपने अंतिम समय तक अपने में असुरक्षित अनुभव करता था जैसा कि हम सुसमाचार के अंतिम भाग में देखते हैं। गलीलिया झील के किनारे येसु ने उससे यही पूछा कि क्या वह बाकी दूसरों की अपेक्षा उन्हें अधिक प्रेम करता है, इस तरह उसे कलीसिया की देख-रेख की जिम्मेदारी मिली और येसु ने उन्हें सुदृढ़ किया। लेकिन पेत्रुस वैसा ही रह जाता है जैसा कि वह पहले था अपने में हट्ठी और जोशीला। पौलुस को पेत्रुस के हट्ठीपन का सामना करना पड़ा विशेषकर गैर-ख्रीस्तीय द्वारा ख्रीस्तीयता को स्वीकार करने पर। शुरू में पेत्रुस अंताखिया में गैर-खीस्तियों के बीच रहता था और उन सारी चीजों का सेवन चुपचाप कर लेता था जो यहूदी खान-पाना के बाहर थे। लेकिन जब दूसरे येरुसलेम आये तो पेत्रुस भय के कारण गैर-ख्रीस्तियों की मेज से अपने को अलग करते हुए खतना किये गये व्यक्तियों के साथ भोजन ग्रहण करता था। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि स्वतंत्रता से वह पुनः गुलामी में प्रवेश करता है। यहां हम पेत्रुस को आडम्बरी पाते हैं वह चीजों से तोल-मोल करने वाला व्यक्ति है। पेत्रुस के बारे में पढ़ना मुझे बहुत अधिक सुकून देता और साथ ही सचेत रहने को सहायता प्रदान करता है। इससे भी बढ़कर यह मुझे इस बात को समझने में मददगार सिद्ध होता है कि संत पापा के चुनाव में कोई जादू नहीं होता है। कनक्लेभ अपने में कोई जादुई कार्य नहीं है।

प्रांतीय अधिकारी के सहायक पुरोहित जावकिम बिरियाते ने पूछा, “पुरोहिताई प्रशिक्षण काल के दौरान हम कैसे याजकीयवाद में गिरने से अपने को बचा सकते हैंॽ”  

याजकीयवाद कलीसिया की एक बड़ी बुराई है। चरवाहे में वह शक्ति है कि वह झुण्ड के आगे जा कर उन्हें राह दिखाये, भेड़ों के बीच में घुसकर देखे की बीच में क्या हो रहा है, साथ ही पीछे जा कर यह निश्चित करे कि कहीं कोई छूट तो नहीं जा रहा है। य़ाजकीयवाद दूसरी ओर हमें चरवाहों के रुप में सदैव आगे रखता जहाँ हम चीजें को व्यवस्थित करते और पीछे छूटने वालों को सजा देते हैं। संक्षेप में, यह येसु के कार्य करने के ठीक विपरीत है। याजकीयवाद दोषारोपण करता, पृथक करता, मारता और लोगों से घृणा करता है।

उत्तरी अर्जेटीना के एक तीर्थ में, मैं पापस्वीकार करने गया हुआ था। मिस्सा उपरांत मैं एक पुरोहित के साथ हो लिया। एक महिला उस पुरोहित के पास कुछ तस्वीरें और रोजरी मालाओं के साथ आई और उन्हें आशीष देने हेतु निवेदन किया। मेरे मित्र ने उसे समझाते हुए कहा, “आप मिस्सा बलिदान में सहभागी हुई और मिस्सा के अंत में आशीष दी गई अतः इन सारी चीजों की आशीष हो गई है।” लेकिन उस महिला ने आशीष हेतु बार-बार आग्रह किया। इतने में उस पुरोहित ने ईशशस्त्रीय तर्ज पर उस महिला को व्याख्यान दिये। “क्या मिस्सा बलिदान येसु ख्रीस्त का बदिलान हैॽ”, उस महिला ने कहा, “जी हाँ।”  क्या मिस्सा बलिदान ईश्वर के शरीर और रक्त का बलिदान हैॽ”, उसने कहा, “जी हाँ।”  क्या आप विश्वास करते हैं कि येसु के शरीर और रक्त ने हमें मुक्त किया हैॽ”, उसके कहा, “जी हाँ।” उसी समय उस पुरोहित का कोई मित्र दिखाई दिया और वह वहाँ से अलग दिशा में चल गया। इतने में वह महिला मेरी ओर मुड़ी और कहा, “फादर क्या आप इन चीजों को आशीष दे सकते हैंॽ” बेचारे लोगों को ईश्वीय आशीष हेतु इस भांति भीख मांगना न पड़े। याजकीयवाद ईशप्रजा की चिंता नहीं करता है। लातीनी अमेरिका में लोकधार्मियों की भक्ति बहुत प्रचलित है। इसकी एक व्याख्या यह दी जाती है कि यह इसलिए हुए क्योंकि पुरोहित इस कार्य में इच्छुक नहीं थे। लोकधार्मियों की भक्ति को याजकीयवाद से प्रभावित हुए बिना कहीं-कहीं सुधार करने की जरुरत है क्योंकि यह ईश्वर की पवित्र प्रजा का कार्य है। याजकीयवाद में हम पुरोहितों की सेवा और पुरोहितों की शक्ति को लेकर दुविधा में पड़ जाते हैं। इसमें बढ़ोतरी और विकास हुआ है। इतालवी में इसे “चढ़ान” की संज्ञा दी गई है।

प्रेरिताई को आज हम सेवा के रुप में नहीं वरन बेदी की ओर बढ़ावा स्वरुप देखते हैं जो एक याजकीय मानसिकता है। उपयाजक का अर्थ सेवक है। सेवक जब इस बात को भूल जाते तो वे अपने को बेदी के करीब ले आते हैं। याजकीयवाद में हम सीधे तौर में एक कठोरता को पाते हैं। क्या आप ने युवा पुरोहितों को देखा है जो अपने में काला चोंगा और अपने सिर पर ग्रहनुमा टोपी पहने रहते हैंॽ याजकीयवाद की कठोरता के पीछे गम्भीर समस्याएँ हैं। वर्तमान समय में मुझे तीन धर्मप्रांतों में हस्तक्षेप करना पड़ा क्योंकि वे अपनी कठोरता के कारण नौतिकता की समस्या को छुपाने की कोशिश में थे जो एक असंतुलित स्थिति उत्पन्न कर रही थी।

याजकीयवाद का एक जटिल आयाम नौतिकता के संबंध में मुख्य रूप से छटवीं आज्ञा को लेकर होती है। एक बार एक नामी जेस्विट पुरोहित ने मुझे कहा कि पापों की क्षमा देने में सवधानी बरतने की आवश्यकता है क्योंकि अति गम्भीर पापों में घंमड, हठधर्मी, बड़ाप्पन है वहीं कम गम्भीरता के पापों में लोभ और वासना हैं। हम बहुत बार शारीरिक मेल पर अधिक ध्यान देते और सामाजिक अन्याय, धोखा, गपशप और झूठ को नगण्य कर देते हैं। आज कलीसिया को इस संबंध में एक बड़ा परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। वहीं बड़े चरवाहे लोगों को अधिक स्वतंत्रता देते हैं। अच्छे चरवाहे नियमों को थोपे बिना, जो लोगों को मृतप्राय बना देते, अपनी भेड़ों का दिशा निर्देशन करना जानते हैं। याजकीयवाद समर्पित जीवन में भी ढ़ोगीपन को जन्म देता है।

येसु समाज के प्रशिक्षण काल में एक येसु समाजी की कहानी का जिक्र मैं बार-बार करता हूँ। उसकी मां गम्भीर रुप से बीमार थी और वह जानता था कि वह अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहेगी। वह किसी दूसरे शहर में रहता था अतः उसने अपने परमाधिकारी से बात करते हुए अपनी माता के निकट रहने का आग्रह किया जिससे वह अपनी माँ के साथ अधिक समय बीता सके। अधिकारी ने उससे कहा कि वह ईश्वर के सामने इस बात पर विचार करे और कल सुबह उनके जाने से पहले खबर करे। युवा येसु समाजी सारी रात गिरजाघर में बैठ कर विन्ती करता रहा जिससे ईश्वर उसे सही आत्म-परिक्षण की कृपा दे। लेकिन प्रांतीय अधिकारी को सुबह जल्दी जाना था अतः उन्होंने सभों के निवेदनों को लिखित रुप में फादर मिनिस्टर को दे दिये जिससे वह उन्हें समुदाय के लोगों को वितरित कर सकें। मिनिस्टर ने यह सोच कर की बहुत रात हो चुकी है और सब सो चुके हैं, उन्होंने सभों के पत्र को दरवाजे पर रख दिया। देर रात प्रार्थना से लौटने पर युवा परमाधिकारी की चिट्टी अपने दरवाजे पर पाता है। उसे खोलने पर वह लिखित पता है, “ईश्वर के सम्मुख चिंतन, प्रार्थना, मिस्सा और तद्पश्चात आत्म-परिक्षण करने के बाद, मैं सोचता हूँ आप वही पर रहें।” यह अपने में याजकीयवाद है जो पाखंड़ता को दिखलाती है। वह युवा अपनी बुलाहट तो नहीं खोया लेकिन वह इस पाखंडता को कभी भूल नहीं पाया।

पुरोहित अफोन्सो मुकाने द्वारा संत पापा के प्रेरिताई निवेदन प्रार्थना, जिसकी  175वीं साल गिराह मनाई जा रही है पर पूछे गये सवाल के उत्तर में संत पापा के कहा-

मैं सोचता हूँ कि हमें लोगों को निवेदन प्रार्थना सिखलाने की जरुरत है जो कि अपने में साहस की प्रार्थना है। हम आब्रहम के बारे में विचार करें जो सोदोम और गोमोरा के लिए ईश्वर से निवेदन करते हैं। हम मूसा की प्रार्थना की याद करें जिसे वह अपने लोगों के लिए करते हैं। हमें लोगों को निवेदन प्रार्थना करने हेतु और अधिक मदद करने की जरुरत है। हमें भी इसे करने की जरुरत है। संत पापा की मासिक प्रार्थना मनोरथ जिसका कार्यभर पुरोहित फोरनोस के संचालन में है, अपने में फलहित हो रहा है। यह जरूरी है कि लोग संत पापा और उनके मनोरथ हेतु प्रार्थना करें। संत पापा अपने में परीक्षाओं से घिरे और अपने में बंधे हैं, लोगों की प्रार्थना ही उन्हें स्वतंत्र कर सकती है जैसे कि हम प्रेरित चरित में सुनते हैं। जब पेत्रुस बंदीगृह में बंद था तब लोगों ने उनके लिए निरंतर प्रार्थना की। यदि कलीसिया संत पापा के लिए प्रार्थना करती है तो यह एक वरदान है। मुझे सदा इस बात की अनुभूति होती है कि मैं हमेशा लोगों से प्रार्थना का अनुरोध करूँ। यह मुझे जीवन में आगे बढ़ने हेतु बल देता है।

स्कोलस्टिक एरमानो लुकस द्वारा जेनोफोबिया पर पूछे गये सवाल के उत्तर में संत पापा ने कहा-

ज़ेनोफ़ोबिया और एरोफ़ोबिया (बहरी व्यक्ति का भय़ और गरीबों से भय़) आज लोगों की मानसिकता के अंग बन गये हैं जो हमें ईश्वरीय संतान होने नहीं देते। जेनोफोबिया लोगों की एकता को नष्ट करती है यहाँ तक की ईशप्रजा की भी। हम सभी इस देश के लोग हैं चाहे हमारा जन्म किसी भी स्थान पर क्यों न हुआ हो और चाहें हम दूसरे जाति और वंश के क्यों न हों। आज हम निष्फल समाजशस्त्र के शिकार हो रहे हैं जहाँ हम अपने देश को शल्य कक्ष समझते हैं, जहाँ शुद्धता, मेरी जाति, मेरा परिवार, मेरी संस्कृति ... पर अधिक ध्यान देते मानो यह अपने में दूषित, गंदा और मैला हो रहा हो। बहुत से लोग हैं जो इस जीवनदायी महत्वपूर्ण कारक को रोकने की कोशिश करते हैं। एक दूसरे से मिलना हमें विकास के मार्ग में ले चलता है, यह हमें नया जीवन प्रदान करता है। यह जाति के मिलन, परिवर्तन और वास्तविकता का विकास करता है। लातीनी अमेरिका में हम इस मिलन की पहचान को अपने में अनुभव करते हैं। वहां हम सभी तरह के लोगों को पाते हैं, स्पानी, भारतीय, प्रेरित, विजेता, मिश्रित लोग। दीवार का निर्मण करना अपने को मौत की सजा देना है। हम शल्य कक्ष के समान अपने में पूर्ण शुद्ध और बिना दूषित हुए एक संस्कति के रुप में नहीं रह सकते हैं।

 

वहीं 8 सितम्बर को मडागास्कर की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान संत पापा फ्रांसिस ने संत मिकेल महाविद्यालय के गिरजाघर में मलागसी प्रांत के 200 येसु समाजियों से मुलाकात की। संत पापा की यह मुलाकात 40 मिनटों की रही। अपने इस मिलन में उन्होंने कहा कि मैं कोई संबोधन करना नहीं चाहता और न ही किसी को सुनना चहता हूँ बल्कि हम स्वाभाविक तौर से “भाइयों की तरह” सवाल-जवाब करें।

पुरोहित योसेफ एम्मनुएल जो आध्यात्मिक साधना की प्ररिताई से जुडे हुए हैं संत पापा से प्रश्न करते हुए कहा, “मडागास्कर के बारे में आप की क्या राय हैॽ आप को क्या सबसे अधिक प्रभावित करता हैॽ”

संत पापा ने अपने जवाब में कहा कि मुझे मडागास्कर के लोग सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। मैंने यहाँ उन लोगों को देखा जो गरीबी, तकलीफों और शोषण का सहन करते हुए भी अपने जीवन में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित हैं। मैं यहाँ की खुशी को देख कर प्रभावित हुआ जो कमियों के बावजूद लोगों में बनी रहती है। यह एक सच्ची कृपा है। यह हमारे समर्पित जीवन को देखने हेतु प्रेरित करता है जहाँ हम कई बार अपने जीवन में विशिष्ट चीजों की खोज करते हैं जो हमें समाज में उच्च-कोटि, समृद्ध जन होने का एहसास दिलाती है। मैंने उन लोगों को देखा जो केवल उन चीजों की खोज करते जो जीवन के लिए जरुरी है। हम अपनी इन जड़ों को न खोयें जो कष्टों के बावजूद हमारे लोगों को खुशमयी बनाये रखती है। जब आप अपने में कटु और असंतोष का अनुभव करते हैं तो आप अपने लोगों के उत्साह और उसके परिणाम पर चिंतन करें।

फादर नोएल सिप्रियन, सामाजिक कार्य और प्रर्यावरण की प्रेरिताई के संचालक ने संत पापा से पूछा, “आप लातीनी अमेरीकी हैं। आज आप मडागास्कर में हैं। क्या आप इन दो अलग-अलग संस्कृति के लोगों में कोई समानता देखते हैंॽ”

संत पापा ने कहा कि मैं कहना चाहूँगा कि आप उपनिवेशक आर्दश में गिरने से बचे रहें क्योंकि यह आप की सांस्कृतिक पहचान को छीन लेती है। हमारे लोगों में अब भी लोकलुभावनवाद से प्रभावित हुए बिना अपने को अपनी विभिन्न संस्कृतियों में अभिव्यक्त करने की क्षमता है। हमारे लिए जरूरी है कि हम अपनी पहचान को बनाये रखें हमारी पहचान हमारे स्वाभाविक गुणों की अभिव्यक्ति में झलती है। हम अपने को आदर्शवादी पहचान से बचाये रखें। लोगों के अनुभव आदर्शों से परे जाते हैं जो अपने में अमूर्त और संग्रहालय या प्रयोगशाला में संचित करने योग्य हैं। आदर्श के द्वारा हम अपनी पहचान को खो देते हैं। लोगों की पहचान संकल्पनाओं में नहीं वरन कहानियों में व्यक्त होते हैं। लोग कला, संस्कृति और ज्ञान की अभिव्यक्ति में हमारी सर्वश्रेष्ठता है। संत इग्नासियुस ने इस बात को समझा। यदि आप याद करेंगे हमारे संविधान में एक तरह का निर्देश है जो हमें संदर्भ की वास्तविकता “स्थल, समय और लोगों” को अपने लिए चुनने की मांग करता है।

कार्य करने के तरीके अपने में अमूर्त नहीं हैं लेकिन यह हमें एक निश्चित समय, स्थान और लोगों की ओर इंगित कराता है। हमारी आंतरिक दृष्टि की पहचान के क्रम में हम इतिहास के हाथों में अपने को नहीं थोपते वरन सच्चाई से वार्ता करते हुए समय के साथ इतिहास का अंग बनते हैं। यह हमारे लिए यही सुनिश्चित कराता है कि आत्मा-मंथन संस्कृतियों और लोगों का सम्मान करती है।

यही कारण है कि येसु समाज में हम संत फ्रांसिस जेवियर, मात्तेयो रिच्ची, डी नोब्ली और भालिगानो जैसे संतों को देखते हैं। दक्षिणी अमेरीका में लोकधर्मियों के साथ हमारे प्रेरितिक कार्य अपने में सृजनात्मक हैं जो सैद्धांतिक योजना मात्र नहीं है। प्रेरितिक कार्य का संदर्भ हमारे लिए लोगों का जीवन, समय की मांग और स्थान है। यही आत्म-मंथन की नियमावली है।

फादर जोसेफ रबीनेरिना के सवाल, “मैंने अपने माता-पिता और दादा-दादी से सुना कि फ्रांसीसी प्रेरित पापों की क्षमा हेतु वृक्षारोपण का दण्डमोचन देते थे। इसके बारे में आप क्या सोचते हैंॽ

यह अपने में एक सजीव प्रेरिताई की पहल लगती है। आप जिस बात की चर्चा करते हैं वह अपने में सामाजिक और प्रर्यावरण दण्डमोचन था जो समाज के निर्माण हेतु मददगार था। मैंने “मैत्री के शहर” की भेंट की जहाँ फादर पेद्रो ने मुझे कुछ पाईन के वृक्षों को दिखलाया जिन्हें उन्होंने आज से 20 साल पहले रोपा था। यह अपने में कितना अच्छा है।

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27 September 2019, 16:41