मोरिशस में संत पापा का मिस्सा मोरिशस में संत पापा का मिस्सा  

खुशी में युवा प्रेरितिक कलीसिया बनें

संत पापा फ्रांसिस ने मोरिशस की अपनी एक दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के दौरान पोट-लुईस में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए मोरिशियन कलीसिया को खुशी में युवा कलीसिया बनने का संदेश दिया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

मोरिशस, 09 सितम्बर 2019, (सोमवार) संत पापा फ्रांसिस ने मोरिशस की अपनी एक दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के दौरान शांति की रानी माता मरियम के स्मृति स्थल, पोट-लुईस में ख्रीस्तयाग अर्पित किया।  

माता मरियम की इस शांति वेदी, पहाड़ के ऊपर से हम शहर और समुद्र को देख सकते हैं जो हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जहाँ हम मोरिशस और हिन्द महासागर के अन्य द्वीपों से येसु के धन्य वचनों को सुनने हेतु आते हैं। येसु के वचनों में जैसे कि दो हजार वर्ष पहले ठंढ़े हृदयों को गर्म करने की ऊर्जा थी, हम उसी शक्ति और आग को अपने जीवन में अनुभव करते हैं। हम एक साथ ईश्वर को कह सकते हैं, हम विश्वास करते हैं और विश्वास की इस ज्योति और अपने हृदयों की धकड़न से हम नबी इसायस के शांति और मुक्ति के सत्य वचनों को जानते हैं कि हमारे ईश्वर राज करते हैं।

ईश धन्य वचन “हमारे पहचान पत्र”

संत पापा ने कहा कि ईश्वर के धन्य वचन हमारे लिए “एक पहचान पत्र” के समान है। यदि कोई हमसे यह पूछे कि “एक अच्छे ख्रीस्तीय होने हेतु हमें क्या करने की जरुरत हैॽ इसका उत्तर हमारे लिए स्पष्ट है कि हम येसु के पर्वत प्रवचन को अपने जीवन में अमल करने की कोशिश करें। ईश्वर के धन्य वचनों में हम स्वामी के प्रतिरुप को पाते हैं जिसे हमें रोज दिन के जीवन में चिंतन करने की जरुरत है। (गौऊदते एत एसुलताते 63) मोरिशस की एकता के प्रेरित धन्य जाक देसीरे लाभाल का जीवन ऐसा ही था जिन्हें हम इस धरती पर बहुत अधिक सम्मान देते हैं। येसु ख्रीस्त और गरीबों के प्रेम से प्रेरित होने के कारण “अलग और स्वच्छ” रहने के अपने विचार में वे टिक नहीं सके। उन्होंने इस बात को जाना कि सुसमाचार का प्रचार सभों के लिए सब कुछ बन जाना है। (1 कुरि.9.19-22) अतः उन्होंने गुलामों की स्थानीय भाषा सीखी और उन्हें साधारण भाषा में मुक्ति का शुभ संदेश सुनाया। उन्होंने विश्वासियों को जमा किया औऱ प्रेरिताई कार्य हेतु प्रशिक्षण देते हुए पड़ोस के शहरों और गाँवों में छोटे ख्रीस्तीय समुदाय की स्थापना की जो आज पल्लियों में तब्दील हो गया है। अपने प्रेरितिक कार्य द्वारा उन्होंने गरीबों और परित्यक्त लोगों का विश्वास जीता और उन्हें एक साथ जमा करते हुए उनके दुःखों के निदान हेतु उपाय सुझाये।

प्रेरिताई को पोषित करें

संत पापा ने कहा कि अपने प्रेरिताई के फलस्वरुप पुरोहित लाभाल ने मोरिशियन कलीसिया को युवा बनाते हुए एक जीवन प्रदान किया जिसे आज हमें आगे ले जाने की जरुरत है। हमें अपने प्रेरिताई कार्य को पोषित करने की जरुरत है क्योंकि दुनियावी मोह-माया और सुरक्षा के जाल में पड़ने के कारण हम धीरे-धीरे अपने में प्रेरितिक उत्साह और जोश को खोने की स्थिति में आ जाते हैं। प्रेरिताई कार्य अपने में सदा युवा और जोशीले चेहरे को प्रस्तुत करता है क्योंकि युवा अपने जीवन शक्ति और उदारता में ख्रीस्तीय समुदाय को चुनौती प्रदान करते हुए नई दिशा में आगे बढ़ने हेतु नवीनता प्रदान करते हैं।(ख्रीस्तुत भिभित 37)

संत पापा ने कहा कि ये हमेशा सहज नहीं है। इसका अर्थ हमें युवाओं की उपस्थिति को स्वीकारते हुए उन्हें अपने समुदायों और समाज में एक स्थान देने की  आवश्यकता है।

युवा प्रेरिताई को महत्व दें

उन्होंने कहा कि यह सुनने में अच्छा नहीं लगता कि यहाँ देश की अर्थव्यवस्था में विकास के बावजूद युवा अपने में बहुत अधिक तकलीफ का सामना कर रहे हैं। वे अपने में बेरोजगारी के शिकार हैं जो उन्हें न केवल अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित करता वरन वे अपने में यह भी संदेह करते हैं कि क्या देश के इतिहास में उनका कोई अस्तित्व है। यह स्थिति उन्हें अपने में बेबस कर देती है और वे अपने को 21वीं सदी की गुलामी में पाते हैं। संत पापा ने कहा कि युवाओं के प्रति हमारा प्रेरितिक कार्य सर्वप्रथम हो जहाँ हम उन्हें येसु में अपनी खुशी को पाने हेतु निमंत्रण दें। हम उनकी “भाषा सीखें”, उन्हें एक स्थान देते हुए उनकी कहानियों को सुनें, उनके साथ समय बितायें जिससे वे अपने में इस बात का एहसास करें कि वे भी ईश्वरीय कृपा के रुप हैं।

पुरोहित लाभाल युवाओं को नबी इसायस की बातों को घोषित करते हुए कहते हैं, “येरुसलेम के खँडहर आनन्दविभोर होकर जयजकार करें। प्रभु-ईश्वर अपनी प्रजा को सांत्वना देता और येरुसलेम का उद्धार करता है।” (इसा.52.9) यद्यपि हम अपने जीवन में बोझिल और कठिनाइयों में फँसे रहते हैं येसु में हमारी आशा हमें विजयी होने की दृढ़ता प्रदान करती है।

समाज की सच्चाई

सुसमाचार के संदेश पर हमारा विश्वास हमें यह नहीं कहता कि हमारे जीवन की सारी चीजें सर्वोत्म होगीं क्योंकि हम संसार को शक्ति की भूख औऱ दुनियादारी से भरा हुआ पाते हैं। संत पापा योहन पौल द्वितीय इसके संबंध में कहते हैं, “सामाजिक संगठन, उत्पादन और उपभोग यदि अपने को एक उपहार नहीं बनते और लोगों के बीच एकजुटता स्थापित नहीं करते तो एक समाज अलग-थलग हो जाता है” (चेन्तेसिमुस आन्नुस 41सी)। ऐसे समाज में ईश्वरीय धन्य वचनों को जीना कठिन हो जाता है और किसी के द्वारा उन्हें जीने हेतु किया गया प्रयास को एक नकारात्मक और संदेह के भाव से देखा जाता है, उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है। (गौदाते एत एसुलताते, 91) संत पापा ने कहा कि यहा सत्य है, लेकिन ऐसा परिस्थिति से हम अपने को निराश न होने दें।

सच्ची खुशी आत्म-त्याग में

इस पर्वत के नीचे आज हम अपने लिए ईश्वर के नये “धन्य” वचनों को पाते हैं। केवल खुशी में जीवन व्यतीत करने वाले ख्रीस्तीय दूसरों के लिए जीवन का मार्ग बनते हैं। संत पापा ने कहा कि “धन्य” का अर्थ “खुशी” है। यह हमारे “पवित्र” होने का पर्यायवाची शब्द है, क्योंकि ईश्वर के विश्वासी सेवक अपने को देने, अपने आत्म-त्याग में जीवन की सच्ची खुशी का एहसास करते हैं।

हम विचलित हों क्योंकि...

“हमारी संख्या घट रही है” हम इस बात से विचलित न हो वरन पवित्र के मार्ग में कितने नर और नारियाँ हैं, जो खुशी का अनुभव करते हैं हम इस बात पर चिंतन करें। हम इस बात की चिंता करें कि आज कितने ही लोग हैं जो अपने हृदय में येसु ख्रीस्त के सुन्दर मुक्तिदायी संदेश की कमी का एहसास करते हैं। “यदि कोई बात हमारे अंतःकरण को विचलित और अशांत करे, तो वह यह सच्चाई कि कितने ही हमारे भाई-बहनें हैं जो येसु ख्रीस्त से मित्रता के अभाव में शक्ति, ज्योति और सांत्वना के बिना जीवनयापन करते हैं, उन्हें विश्वासी समुदाय का सहारा नहीं मिलता और वे लक्ष्यहीन जीवन जीते हैं।” (एभन्जेली गैदियुम, 49)

खुशी जीवन का जोश

युवा जब ख्रीस्तीय जीवन को खुशी में जीते हुए देखते तो उनमें खुशी, जोश और प्रेरणा का संचार होता है। इस तरह हम उन्हें यह कहते हुए सुनते हैं, “मैं भी धन्य वचनों के पर्वत में चढ़ना चाहता हूँ। मैं भी अपनी नजरों से येसु को देखना चाहता हूँ जिससे में उनसे सच्ची खुशी के मार्ग का ज्ञान हासिल कर सकूँ।”

पवित्र आत्मा से विनय करें

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम अपने समुदायों के लिए प्रार्थना करें जिससे हम ख्रीस्तीय जीवन की खुशी का साक्ष्य देते हुए पवित्र जीवन के विभिन्न रुपों को अपने में विकसित कर सकें जिसके लिए पवित्र आत्मा हमें प्रेरित करते हैं। हम इस धर्मप्रांत और यहाँ उपस्थित सभी लोगों के लिए उनसे निवेदन करें। धन्य पुरोहित लाभाल जिनकी स्मृति का आदर हम करते हैं उन्होंने भी ख्रीस्तीय समुदाय के संबंध में निराशा और कठिनाई का अनुभव किया लेकिन अतंतः ईश्वर उनके हृदय पर विजयी होते हैं क्योंकि उन्होंने ईश्वर की शक्ति पर भरोसा रखा। हम प्रार्थना करें कि वही शक्ति हमारे हृदयों को स्पर्श करे जिससे हम अपने समुदायों को नवीन बना सकें। हम यह न भूलें कि जो हमें बुलाते और कलीसिया का निर्माण करते वे पवित्र आत्मा हैं।

मरियम हमारी संरक्षिका

मरियम की मूर्ति जो हमारी रक्षा करती, हमारे साथ रहती और हमें यह याद दिलाती है कि वह स्वयं “धन्य” कहलायीं। हम उनसे निवेदन करें कि वे हमें पवित्र आत्मा के वरदानों हेतु खुल रखें। कुंवरी मरियम जिन्होंने अपने बेटे को क्रूस के काठ में मरते देख, एक घोर दुःख का अनुभव किया, वह हमारे लिए उस खुशी की कृपा लाये जो कभी धूमिल नहीं होती है। खुशी की वह अनुभूति जो हमें सदा यह कहने में मददगार सिद्ध होती है,“सर्वशक्तिमान ने मेरे लिए महान कार्य किये हैं धन्य है उसका नाम।”

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

09 September 2019, 16:31