पुरोहितों के साथ संत पापा ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए पुरोहितों के साथ संत पापा ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए 

संत पापा ने पुरोहितों को लिखा, आपकी सेवाओं के लिए धन्यवाद

संत पापा फ्राँसिस ने आर्स के पुरोहित संत जॉन भियानी की 160वीं पुण्यतिथि पर एक पत्र प्रकाशित कर सभी पुरोहित को अपना समर्थन, सामीप्य एवं प्रोत्साहन प्रदान किया, जो अपने कठिन कार्यों एवं निराशा के बावजूद हर दिन संस्कारों का अनुष्ठान करते तथा ईश प्रजा का साथ देते हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 4 अगस्त 2019 (रेई) ˸ संत पापा फाँसिस ने विश्वभर के पल्ली पुरोहितों के संरक्षक आर्स के पुरोहित संत जॉन भियानी की 160वीं पुण्यतिथि पर एक पत्र भेजा है। पत्र में उन्होंने पुरोहितों को प्रोत्साहन दिया है एवं उनके प्रति अपना सामीप्य व्यक्त किया है, जो आवाज किये बिना, अपना सब कुछ छोड़कर, ख्रीस्तीय समुदाय के दैनिक जीवन में सहभागी होते हैं। वे कठिनाइयों के बीच काम करते हैं। ईश्वर की प्रजा की सेवा हेतु अपने प्रयासों में अनगिनत चुनौतियों का सामना करते हैं। संत पापा ने लिखा, "मैं आप सभी के लिए चंद शब्द कहना चाहता हूँ जो बिना धूम-धड़ाका किये और अपनी कीमत पर, घिसाव के बीच, दुर्बलता और दुःख के साथ ईश्वर और लोगों की सेवा के मिशन को आगे बढ़ाते हैं। यात्रा की कठिनाइयों के बावजूद, आप पुरोहित जीवन के बेहतरीन पन्नों को लिख रहे हैं।"  

पीड़ा

संत पापा अपने पत्र के आरम्भ में दुराचार के ठोकर का जिक्र करते हुए उन पुरोहितों की याद की है जो निष्ठावान हैं, "इन सालों में, हम उन कराहों के प्रति अधिक सचेत हो चुके हैं जो बहुधा मौन होते और दबा दिये जाते हैं। हमारे कई भाई बहनों को अभिषिक्त पुरोहितों के द्वारा सत्ता के दुरूपयोग, विवेक के दुरूपयोग और यौन दुराचार का शिकार होना पड़ता है किन्तु कुछ भाइयों के द्वारा की गई हानि को अस्वीकार किये बिना, यह अनुचित ही होगा कि हम उन पुरोहितों के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित न करें जो बड़ी निष्ठा एवं उदारतापूर्वक दूसरों की सेवा में जीवन बिताते हैं।" असंख्य पुरोहित अपने जीवन को दया के कार्यों में समर्पित कर देते हैं अथवा ऐसी परिस्थिति में डाल देते हैं जिसमें उन्हें विरोध, एकाकी, उपेक्षा और कई बार जान की जोखिम का भी सामना करना पड़ता है। संत पापा ने उनके साहस एवं आदर्श जीवन के लिए उन्हें धन्यवाद दिया है और कहा कि अशांति, लज्जा और दुःख के इस समय में आप दिखलाते हैं कि आपने अपने जीवन को सुसमाचार के खातिर सहर्ष अर्पित कर दिया है। उन्होंने उन्हें निरूत्साहित नहीं होने की सलाह दी क्योंकि "प्रभु अपनी दुल्हिन को शुद्ध करेंगे और हम सभी को बदल देंगे। वे हमें परीक्षा में पड़ने देते हैं ताकि हम यह महसूस कर सकें कि उनके बिना हम साधारण धूल मात्र हैं।"     

कृतज्ञता

संत पापा का दूसरा शब्द है "कृतज्ञता"। संत पापा याद करते हैं कि बुलाहट हमारी पसंद के बढ़कर प्रभु के मुफ्त बुलावे का प्रत्युत्तर देना है। वे पुरोहितों का आह्वान करते हैं कि उन क्षणों की याद करें जब हमने उनकी सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित करने के बुलावे को महसूस किया। उस "हाँ" का स्मरण करें जो ख्रीस्तीय समुदाय के बीच पनपा और विकसित हुआ। कठिनाई, नाजुकता, कमजोरी के क्षणों में, सभी को प्रलोभन होता है कि हम परेशानियों पर ही चिंता करते रहें, किन्तु महत्वपूर्ण बात यह है कि हम हमारे जीवन में प्रभु की उपस्थिति एवं उनकी करूणा की याद को बनाये रखें। जिसने हमें अपने जीवन को प्रभु और उसके लोगों के लिए समर्पित करने हेतु प्रेरित किया। अतः कृतज्ञता हमेशा एक प्रभावशाली हथियार है।

जब हम उन सभी चीजों के लिए सच्ची कृतज्ञता महसूस कर पायेंगे जिनमें हमने ईश्वर के प्रेम, उदारता, एकजुटता और विश्वास के साथ-साथ उनकी क्षमा, धैर्य, संयम और करुणा का अनुभव किया है, तब हम अपनी आत्मा में ताजगी महसूस करेंगे और हम हमारे जीवन एवं मिशन को नवीनीकृत कर पायेंगे।

 संत पापा ने अपने पुरोहित भाइयों को उनकी निष्ठा एवं समर्पण के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह निश्चय ही उत्तम है कि एक अल्पकालिक समाज और संस्कृति में कुछ लोग ऐसे हैं जो जीवन देने के आनन्द को महसूस कर सकते हैं। प्रतिदिन पवित्र यूखरिस्त एवं मेल-मिलाप के संस्कारों का अनुष्ठान करते तथा कठोर या आलसी हुए बिना लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाते हैं। मेल-मिलाप के रास्ते पर लोगों का साथ देते हैं तथा सुसमाचार की घोषणा करते हैं। संत पापा ने पुरोहितों को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन क्षणों के लिए धन्यवाद, जब आप स्नेह से पापियों का आलिंगन करते एवं घावों को चंगा करते हैं। पीड़ित भाई बहनों के प्रति स्वीकृति, सामीप्य और तत्परता से बढ़कर कोई दूसरी चीज की आवश्यकता नहीं है।

एक गड़ेरिया अपने लोगों के साथ आध्यात्मिक रूप से जुड़ा रहता है और यह कभी नहीं भूलता है कि वह उन्हीं के बीच में से आया है। यह विचार सुविधाओं को इन्कार करते हुए, सुसमाचार के अनुरुप एक साधारण जीवनशैली अपनाने हेतु प्रेरित करेगा।  

संत पापा ने ईश्वर की प्रजा की पवित्रता के लिए उन्हें धन्यवाद दिया एवं पुरोहितों को निमंत्रण दिया है कि वे भी उन्हें धन्यवाद दें जो उन माता-पिताओं में व्यक्त होता है जो अगाध प्रेम से अपने बच्चों का लालन-पालन करते हैं, जो अपने परिवार के भरण पोषण के लिए कड़ी मेहनत करते एवं बीमार और वयोवृद्ध होने पर भी उनके चेहरे से मुस्कान कभी दूर नहीं होता।

प्रोत्साहन

तीसरा शब्द है "प्रोत्साहन"। संत पापा पुरोहितों को प्रोत्साहन देते हैं कि हम जिस मिशन के लिए बुलाये गये हैं यह हमें पीड़ा, दुःख और गलतफहमी से दूर नहीं करता बल्कि हमसे मांग करता है कि हम उसे स्वीकार करें ताकि प्रभु उन्हें बदल दें और हमें अपने अधिक नजदीक रखे।

किस तरह एक चरवाहे का हृदय प्राप्त किया जा सकता है इसके लिए हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि हम पीड़ितों के साथ किस तरह पेश आते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि हम भले समारी के दृष्टांत के लेवी अथवा पुरोहित के समान व्यवहार करने लगते हैं जिन्होंने जमीन पर घायल पड़े व्यक्ति को अनदेखा कर आगे बढ़ गये। कभी-कभी हम पीड़ा को मन से सोचते हैं और तुरन्त अपनी असमर्थता जताते हैं जिसके कारण भाग्यवाद को स्थान मिलता है। इसके अलावा, हम एक तरह की अलोचना के साथ उनके निकट आते हैं जो केवल अलगाव और बहिष्करण लाती है।  

संत पापा ने उदासीनता के खिलाफ चेतावनी दी और कहा कि यह कार्य को करते रहने, प्रार्थना में बने रहने के साहस को अपंग कर देता है, जो परिवर्तन लाने के सभी प्रयासों को निष्फल कर देता है, जिससे आक्रोश फैलता है।

संत पापा ने उन्हें पवित्र आत्मा से प्रार्थना करने का निमंत्रण दिया कि वह हमें जगा दे। हमारी अकर्मण्यता को झकझोर दे, हमारी आदतों को चुनौती दे और हमारे कार्यों का अवलोकन करने की कृपा दे। हमारे आँख, कान और हृदय को खोल दे, ताकि हम चीजें जैसी हैं उसी में संतुष्ट न रहें बल्कि पुनर्जीवित प्रभु के प्रभावशाली शब्द से सक्रिय हो जाएँ।

हमने अपने जीवन में अनुभव किया है कि आनन्द हमेशा येसु ख्रीस्त से आता है। यह एक ऐसा आनन्द है जो स्वैच्छिक या बौद्धिक प्रयासों से नहीं, बल्कि उस विश्वास से आता है कि पीटर के लिए येसु के शब्द अब भी क्रियाशील है।

संत पापा ने कहा, “जो हमें धन्य होने की अनुभूति प्रदान करता जो हमें इस बात की याद दिलाती है कि येसु के शिष्यों स्वरुप हमें उनकी सहायता की जरुरत है यह हमें केवल अपनी शक्ति और क्षमता पर भरोसा रखने से मुक्त करता है।” पुरोहितों की प्रार्थना विश्वसियों के हृदय को प्रभावित करती है। यह उनके घावों औऱ खुशियों को अपने में वहन करती है।

एक जिम्मेदारी के रुप में यह हमें ईश्वर के साथ संयुक्त करती और आशा में बनाये रखती है। अतः हम अपनी गलतियों का एहसास करते और अपने को येसु ख्रीस्त द्वारा परिवर्तित होने देते जो हमें अपने प्रेरिताई में निरंतर आगे बढ़ाते हैं।

संत पापा ने इस बात पर जोर दिया कि पुरोहितों का हृदय प्रोत्साहन भरा रहे इसके लिए दो बातें जरूरी हैं, पहला येसु के साथ संबंध - यह एक निमंत्रण है जहाँ हम एक मित्र के रुप में येसु के साथ आध्यात्मिक वार्ता करने हेतु बुलाये जाते हैं। हम उनके साथ बातें करें, विचार मंथन करें जो हमारे लिए उचित राह का चुनाव करने में सहायक होता है। दूसरा है लोगों से लगाव - “आप लोगों, विश्वासियों, समुदायों से दूर न रहें। आप बंद या छोटे समुदाय और अभिजात्य वर्गों में कम शरण लें। एक साहसी प्रेरित सदा अपने में गतिशील रहता है।

संत पापा कहा कि आप दुःखियों के साथ रहें, विपत्ति में पड़े लोगों के साथ रहने हेतु शर्म का अनुभव न करें और इन सारी बातों को यूखारीस्त का अंग बनायें। आप संबंधों और समुदायों के निर्माता बनाते हुए, खुलेपन, विश्वास और आशा में नये जीवन की प्रतीक्षा करें जिसे ईश्वर अपने राज्य के रुप में रोज दिन स्थापित करते हैं। 

प्रशंसा

पुरोहितों के लिए संत पापा द्वारा लिखित पत्र का अंतिम भाग “प्रशंसा” है। वे कहते  हैं कि माता मरियम के जीवन में चिंतन किये बिना हमारे लिए कृतज्ञता और प्रोत्साहन के बारे में जिक्र करना असंभव है। “वह प्रशंसा भरी निगाहों से हमें भविष्य को देखने और वर्तमान में, आशा में बने रहने हेतु मदद करती है।” माता मरियम की ओर देखना हमें “करूणा और प्रेम की क्रांतिकारी शक्ति पर विश्वास करने को उत्प्रेरित करता है। हम माता मरियम के जीवन में नम्रता और कोमलता को कमजोरों के गुणों की भांति नहीं वरन शक्तिशालियों के गुणों की तरह पाते हैं। यही कारण है कि संत पापा अपने पत्र के अंत में कहते हैं, “यदि हम अपने में जीवन में परीक्षा की घड़ी में पड़ते, जब हमें अपने को, अपने आप तक ही सीमित रखने का मन करता, हमें रोज दिन के धूल-धूसरित मार्ग में चलने के बदले अपने कार्यों तक ही सुरक्षित रहने के प्रलोभन आते, हमें अपने चुनाव पर निराशा होती, हम कुड़कुड़ाने लगते, आलोचना और व्यंग्य हमारे जीवन में भारी पड़ने लगता, तो ऐसे समय में हम माता मरियम की ओर निगाहें फेरे जिससे वे हमें ऐसी “परिस्थितियों” से बाहर निकलने में मदद करें। उनकी मदद से हम येसु ख्रीस्त को लोगों के जीवन में देखने योग्य बनाते हैं। हम सभों की माता के रुप में, जो दुःख और अन्याय की पीड़ा से दबें हैं वे उनके लिए आशा की निशानी हैं...। एक सच्ची माता के रुप में वे हमारे साथ चलती हैं औऱ हमारी कठिनाइयों में हमारा साथ देती हैं। वे हमें येसु ख्रीस्त के प्रेम से सदैव भर देती हैं।

संत पापा ने पुनः पुरोहितों की निष्ठा और उनकी प्रेरिताई हेतु अपने दिल के उद्गार व्यक्त करते हुए कहा, “मैं आप सभों का निरंतर धन्यवाद अदा करता हूँ” (एफे. 1.16)। मुझे विश्वास है ईश्वर हमारे बीच से कठोरतम पत्थर को दूर करते हैं जो मृत्यु, पाप, भय, दुनियादारी के रुप में हमारी आशाओं और अपेक्षाओं को तोड़ती हैं। मानव इतिहास कब्र की पत्थर में समाप्त नहीं होता क्योंकि हमारे मध्य जीवित चट्टान येसु ख्रीस्त हैं (1 पेत्रु.2.4) हमारा निर्माण उनमें हुआ है, यद्यपि हम अपनी असफलताओं के कारण अपने जीवन में हताश और निराश होकर सभी चीजों के बारे अपना निर्णय देते, वे हमारे बीच सारी चीजों को नया बनाने आते हैं।

संत पापा ने कहा कि हम अपनी कृतज्ञता के भाव और जोश को अपने भाई-बहनों के लिए प्रेरितिक कार्य में, आशा के साथ नवीन बनायें। “हमारा जीवन येसु ख्रीस्त के प्रेम और करूणा का साक्ष्य बनें जिसे वे हमें प्रदान करते हैं।” 

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04 August 2019, 18:18