बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा  

कलीसिया “खुली अस्पताल”

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के दौरान प्रेरित चरित में ईश्वर के कार्यों की चर्चा करते हुए कलीसिया को “खुले अस्पताल” की संज्ञा दी, जो सभों का स्वागत करती है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 28 अगस्त 2019 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजा घर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को प्रेरित चरित पर अपनी धर्मशिक्षा माला देने के पूर्व संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयों एवं बहनों, सुप्रभावत।

प्रेरित चरित में वर्णित कलीसिया ईश्वर के द्वारा संचित किये गये धन के कारण समृद्धि में जीवनयापन करती है, ईश्वर कितने उदार हैं। अपने ऊपर होने वाले बहुत से आक्रमणों के बावजूद वह कई रुपों में विकसित होती जाती है। इसका साक्ष्य प्रस्तुत करने हेतु संत लूकस प्रेरित चरित में हमारे लिए विशेष स्थानों का जिक्र करते हैं जैसे कि सुलेमान का मण्डप, जो विश्वासियों के लिए एक मिलन स्थल था। (प्रेरि.5.12) यह येरुसलेम मंदिर के पास था। मण्डप एक खुली जगह है जो एक शरण स्थल के समान होता है जहाँ लोग एक साथ एकत्रित होते और अपने जीवन का साक्ष्य देते हैं। वास्तव में, लूकस उन चिन्हों और चमत्कारों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं जो शिष्यों के वचनों के साथ पूरे हुए विशेषकर रोगियों की सेवा में जो उनके पास लाये गये।

कलीसिया “खुली अस्पताल”

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि प्रेरित चरित का अध्याय 5 हमारे लिए कलीसिया को “खुले अस्पताल” स्वरुप प्रस्तुत करता है, जहाँ अति कमजोर लोगों, बीमारों का स्वागत किया जाता है। लोगों के दुःख-दर्द शिष्यों को आकर्षित करते हैं जिनके पास “सोना और चांदी” नहीं हैं, (प्रेरि.3.9) जैसे कि पेत्रुस लंगडे व्यक्ति से कहते हैं लेकिन वे येसु ख्रीस्त के नाम में शक्ति से परिपूर्ण हैं। उनकी आंखों में, जैसे कि ख्रीस्तियों की नजरों में सदा होता है रोगग्रस्त ईश्वर के राज्य को अपने बीच में आनंदमय ढ़ंग से घोषित होता हुआ सुनते हैं। वे उन भाइयों में से हैं जिनमें विशेषरुप से येसु ख्रीस्त उपस्थित होते हैं।(मत्ती. 25.36-40) बीमार लोग कलीसिया के लिए खास हैं, जो पुरोहितों के हृदय और सारे विश्वासियों के मध्य निवास करते हैं। हम उनका परित्याग नहीं करते वरन उनकी देख-रेख और उनकी सेवा करते हैं। वे ख्रीस्तीय विश्वासियों के लिए सेवा कार्य की विषयवस्तु हैं।

प्रेरितों के मध्य यह पेत्रुस हैं जिन्हें मुख्य तौर पर पुनर्जीवित प्रभु येसु की प्रेरिताई का कार्यभार सौंपा गया है। (यो.21.15-17) वे पेन्तकोस्त के दिन सुसमाचार की घोषणा शुरू करते हैं। (प्रेरि.2.14-41) इस प्रेरितिक कार्य का निर्देशन वे येरूसलेम के सम्मेलन तक जारी रखते हैं। (प्रेरि.15, गला.2.10-10)।

प्रेरिताई ईश्वर के कार्य

पेत्रुस खाट पर पड़े बीमारों के पास जाते और उनके बीच से होकर गुजरते हैं, जैसे कि येसु ख्रीस्त ने किया। वे वैसा ही करते जैसे कि येसु ख्रीस्त ने किया था, उसने हमारी दुर्बलताओं को दूर कर दिया और हमारे रोगों को अपने ऊपर ले लिया, (मत्ती.8.15), येसु ने हमारे साथ ऐसी ही किया (इसा.53.4)। गलीलिया का मछुवारा, पेत्रुस बीमार लोगों के बीच से होकर गुजरते हैं और अपने द्वारा येसु ख्रीस्त को उनके लिए कार्य करने देते हैं। वे अपने वचनों और शारीरिक उपस्थिति के द्वारा पुनर्जीवित येसु ख्रीस्त, जो शरीरधरण कर दुनिया में आये, का साक्ष्य दिया।

संत पापा ने कहा कि पेत्रुस यहां अपने स्वामी के कार्य को करते हैं (यो.14.12) और विश्वास की आंखों से उन्हें देखना स्वयं येसु ख्रीस्त को देखना है। ईश्वर के आत्मा से परिपूर्ण पेत्रुस लोगों के बीच से होकर पार होते और उनकी छाया लोगों के लिए “करूणा”, चंगाई, स्वास्थ्य लाभ का कारण बनती है। पुनर्जीवित येसु ख्रीस्त पेत्रुस के माध्यम रोगी को जीवन का नया दान, मुक्ति प्रदान करते हैं। इस तरह ईश्वर अपनी निकटता कमजोर लोगों के बीच प्रकट करते हैं- वे “कोमलता का धार्मिक स्थल” बनते हैं। (संत मार्था, 14 दिसम्बर 2017) उन्होंने कहा कि बीमारों के दुःख तकलीफ जो जीवन में आगे बढ़ने हेतु रोड़ा उत्पन्न करते, ऐसी परिस्थितियों में भी येसु उनके बीच में उपस्थित रहते हैं। हमारे जीवन के दुःख-दर्द स्वयं येसु के घाव हैं। यही कारण है कि वे हमें उनकी देख-रेख करने, उन्हें सहारा देने और उनकी उनकी चंगाई में मदद करने हेतु बुलाते हैं।

ईश्वरीय कार्य में जोखिम है

पेत्रुस द्वारा की चंगाई सदूकियों हेतु आंखों की किरकिरी बन जाती और वे ईर्ष्या के कारण प्रेरितों को कैदखाने में डाल देते हैं, वे उनके रहस्यमयी मुक्ति कार्यो पर पाबंदी लगा देते हैं। संत पापा ने कहा कि उन्होंने देखा कि शिष्यों के चमत्कार जादुई रुप में नहीं हुए हैं बल्कि उन्होंने येसु के नाम पर उन्हें किया है जिसे वे स्वीकार नहीं कर पाते और शिष्यों को इसका खमियाजा भुगताना पड़ता है, उन्हें मार खानी पड़ती है। प्रेरित चमात्कारिक ढ़ग से बंदीगृह से मुक्त होते हैं लेकिन सदूकियों का हृदय अपने में कठोर है, जिन बातों को उन्होंने देखा वे उन पर विश्वास करना नहीं चाहते हैं। पेत्रुस येसु ख्रीस्त में अपने विश्वास का साक्ष्य देते हुए कहते हैं,“मनुष्यों की अपेक्षा ईश्वर की आज्ञा का पालन करना कहीं अधिक उचित है।” (प्रेरि. 5.29) क्योंकि सदूकियों ने उनसे कहा, “तुम्हें इन कार्यों को नहीं करना चाहिए, चंगाई नहीं कहना चाहिए।” संत पापा ने कहा, “क्या मनुष्य के सामने मैं ईश्वर की आज्ञा मानता हूँ।” यह एक बड़ा ख्रीस्तीय प्रतिउत्तर है। इसका अर्थ हमारे लिए यही है कि हम बिना किसी संदेह के, बिना टालमटोल किये, बिना हिसाब-किताब किये ईश्वर को सुनें, ईश्वर से अपने को संयुक्त करें जिससे हम उसके विधान के योग्य बन सकें जिनसे हम अपने जीवन की राह में मिलते हैं।

हम न डरें

हम पवित्र आत्मा से अपने लिए शक्ति की याचना करें जिससे हमें उनसे न डरें जो हमें चुप रहने की आज्ञा देते हैं जो हमारी हानि करते और हमें जीवन की धमकी देते हैं। संत पापा ने कहा कि हम भयभीत न हों। हम ईश्वर ने निवेदन करें कि वे हमें आतंरिक रुप से मजबूत बनायें जिससे हम उनके प्रेम और सांत्वना की उपस्थिति को अपने जीवन के हर क्षण में अनुभव कर सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ किया तथा सभों का अभिवादन करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

28 August 2019, 16:42