बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा 

हमारे हाथ येसु के हाथ हैं

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में प्रेरित चरित के प्रथम चमत्कार पर धर्मशिक्षा देते हुए ईश्वर के ओर हाथ बढ़ाने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 07 अगस्त 2019 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद पुनः बुधवारीय आमदर्शन समारोह की शुरूआत की। उन्होंने इस अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को “प्रेरित चरित” पर अपनी धर्मशिक्षा माला देने के पूर्व संबोधित करते हुए कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

प्रेरित चरित, प्रेरितों द्वारा सुसमाचार की घोषणा केवल शब्दों में नहीं वरन उसे अपने कार्यों में भी सच्चे साक्ष्य स्वरुप प्रस्तुत करता है। ये “चमत्कार और निशानियाँ” प्रेरितों के कार्यों में प्रकट होते हैं तथा उनके द्वारा येसु ख्रीस्त के नाम में प्रदर्शित किये जाते हैं। प्रेरित येसु ख्रीस्त से निवेदन करते और येसु उनके माध्यम अपने कार्यों को विभिन्न निशानियों के रुप में पूरा करते हैं। प्रेरितों के द्वारा बहुत से चमत्कार और कार्य किये जाते हैं जो येसु ख्रीस्त की दिव्यता को अभिव्यक्त करता है।

प्रेरित चरित में प्रथम चमत्कार

आज हम प्रेरित चरित की पुस्तिका में प्रथम चमत्कार की चर्चा सुनते हैं। यह हमारे लिए स्पष्ट रुप से प्रेरितिक उद्देश्य को व्यक्त करता है जिसका लक्ष्य विश्वास को मजबूती प्रदान करना है। पेत्रुस और योहन मंदिर में प्रार्थना करने हेतु जा रहे होते हैं, जो कि प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय का एक अहम मनोभाव है। प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय येरुसलेम मंदिर में प्रार्थना करने हेतु जाते थे। संत लूकस यहाँ हमारे लिए समय का जिक्र करते हुए कहते हैं कि यह तीसरा पहर था, जब ईश्वर और मनुष्य के बीच संबंध की निशानी स्वरुप होम बलि अर्पित की जाती थी। यह वही समय था जब येसु ख्रीस्त स्वयं अपने को “सदा के लिए एक बार” बलि अर्पित किये। (इब्रा.9.12.10.10) मंदिर का प्रवेश द्वार “सुन्दर” कहलाता था। उस सुन्दर द्वार पर उन्होंने एक भिखारी को देखा जो जन्म से लँगड़ा था। वह व्यक्ति मंदिर की द्वार पर क्या कर रहा थाॽ क्योंकि मूसा कि संहिता (वि.वि.21.18) अनुसार शारीरिक रुप से असक्षम व्यक्ति को बलि चढ़ाने की मनाही थी क्योंकि वह अपने में एक पापी समझा जाता था। संत पापा ने धर्मग्रंथ के एक दूसरे उद्धरण की चर्चा करते हुए कहा कि हम जन्म से अंधे व्यक्ति की याद करें जिसके बारे में लोगों ने येसु से पूछा, “किसी ने पाप किया इस व्यक्ति ने या इसके माता-पिता ने जो यह जन्म से अंधा हैॽ” शारीरिक रुप से असक्षमता के बारे में सदैव एक गलत मानसिकता थी कि यह पाप का परिणाम है। इसके परिणाम स्वरुप उन्हें मंदिर में प्रवेश करने नहीं दिया जाता था। वह लंगड़ा व्यक्ति समाज में परित्यक्त बहुत सारे लोगों का एक उदाहरण था, जो प्रतिदिन भीख मांगा करता था। वह मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता था लेकिन वह प्रवेश द्वार पर पड़ा रहता था। पेत्रुस और योहन की नजर उस व्यक्ति पर पड़ती है जो उनसे कुछ पाने की चाह लिए हाथ फैलाता है। वे उसकी ओर टकटकी निगाहों से देखते हैं, प्रेरितों की निगाहें उस व्यक्ति को यह निमंत्रण देती हैं मानो वह एक अन्य उपहार की प्राप्ति हेतु उनकी ओर दृष्टि फेरे। लंगड़ा व्यक्ति उनकी ओर देखता है और पेत्रुस उससे कहता है, “मेरे पास न तो चांदी है और न सोना, बल्कि मेरे पास जो है, वही तुम्हें देता हूँ, ईसा मसीह नाजरी के नाम पर उठो और चलो।” (प्रेरि.3.6) संत पापा ने कहा कि प्रेरितों ने एक संबंध की स्थापना की क्योंकि ऐसा करने के द्वारा ईश्वर अपने प्रेम को प्रकट करते हैं। वे हमसे सदैव वार्ता करते, अपने को प्रकट करते और सदा हमारे हृदयों को प्रेरित करते हैं। इस भांति वे प्रेम में हम लोगों से संबंध स्थापित करते हैं।

चमत्कार येसु के पुनरूत्थान का प्रतीक

संत पापा ने कहा कि मंदिर आध्यात्मिक केन्द्र होने के साथ-साथ आर्थिक और वित्तीय लेन-देन का स्थल था, जिसके विरूद्ध नबियों और स्वयं येसु ख्रीस्त ने कई बार आवाज उठाई थी।(लूका. 19.45-46) उन्होंने कहा, “मैं कितनी बार इस विषय पर सोचना हूँ, जब मैं कुछ पल्लियों के देखता हूँ जहां संस्कारों के बदले पैसे को अधिक महत्व दिया जाता है। कृपया हम इस बात पर ध्यान दें कि कलीसिया अपने में गरीब है।”  वह भिखारी, प्रेरितों से नजरें मिलाते हुए, पैसे नहीं बल्कि येसु नासरी को प्राप्त करता है जिसके नाम में हमें चंगाई प्राप्त होती है। पेत्रुस येसु का नाम लेते और उस लंगड़े व्यक्ति को खड़ा होने का आदेश देते हैं। लोगों की उपस्थिति में वह उस व्यक्ति का स्पर्श करते हुए उसे खड़ा होने हेतु सहायता करते हैं, यह संत योहन ख्रीस्तोतम के अनुसार एक निशानी है जो येसु के पुनरूत्थान का प्रतीक है। यहां हम कलीसिया को देखते हैं जो कठिनाई में पड़े लोगों की ओर निगाहें फेरती है, उन्हें अनदेखा नहीं करती है। वह मानवता की ओर नजरें फेरना जानती है, वह एक महत्वपूर्ण संबंध स्थापित करती, मित्रता रुपी सेतुओं और दीवारों के बदले एकता स्थापित करती है। “एक कलीसिया को हम माता के चेहरे की तरह पाते हैं” (एवेन्जेली गौदियुम 210) जो हाथ पकड़ कर हमें उठाती- हम पर दोषारोपण नहीं करती है। संत पापा ने कहा कि उसी तरह येसु सदैव हमारी ओर अपनी हाथों को बढ़ाते हैं, हमें उठाने की कोशिश करते हैं, वे हमें चंगाई, खुशी प्रदान करते और ईश्वर से मिलाते हैं। यह “सहचर्य की कला” है जिसकी विशेषता कोमलता है जिसके माध्यम हम “दूसरों की पवित्र भूमि” में प्रवेश करते हैं, साथ यात्रा करते “एक दूसरे की निकटता का एहसास करते, सम्मान और करूणा में स्वतंत्र और प्रोत्साहन देते हुए हम ख्रीस्तीय जीवन की परिपक्वता को प्राप्त करते हैं।” दो प्रेरित लंगड़े व्यक्ति के साथ ऐसा ही करते हैं। वे उसकी ओर देखते हैं, वे उससे कहते हैं “हमारी ओर देखो”, वह उनकी ओर हाथ बढ़ता और वे उसे खड़ा करते हुए चंगाई प्रदान करते हैं। संत पापा ने कहा कि येसु हम सभों के साथ भी ऐसा ही करते हैं। “इसके बारे में हम उस समय विचार करें जब हम अपने को बुरे समय में पाते हैं, पापों और दुःख की घड़ी में देखते हैं। हम अपनी हाथों को येसु की ओर बढायें और अपने को उन्हें उठाने दें।”

पुनर्जीवित येसु हमारा सच्चा धन

पेत्रुस और योहन हमें साधनों पर विश्वास करने हेतु नहीं कहते जो हमारे लिए उपयोगी हैं, लेकिन वे हमें सच्चे धन पुनर्जीवित येसु के साथ अपना संबंध स्थापित करने को कहते हैं। हम, सचमुच जैसे की संत पौलुस कहते हैं, “हम दुःखी हैं फिर भी हम हर समय आनंदित हैं। हम दरिद्र हैं, फिर भी हम बहुतों को सम्पन्न बनाते हैं।” (2 कुरि. 6.10) सुसमाचार हमारा सब कुछ है जो हमारे लिए येसु के नाम में निहित शक्ति को अभिव्यक्त करता जो हमारे लिए चमत्कार करते हैं।

संत पापा ने कहा कि हम अपने में क्या धारणा करते हैंॽ हमारा धन क्या हैॽ हम किन चीजों से दूसरों को समृद्ध बना सकते हैंॽ हम ईश्वर से अपने लिए कृतज्ञतापूर्ण हृदय से स्मृति की याचना करें जिससे हम अपने जीवन के प्रेममय उपहारों की याद कर सकें, जिनके द्वारा हम ईश्वरीय महिमा और आभार का साक्ष्य दूसरों को दे सकें। हम यह न भूलें, कि हमारे हाथ जो दूसरों की मदद हेतु आगे बढ़ते हैं, येसु के हाथ हैं जिनके द्वारा दूसरे खड़ा होने हेतु सहायता किये जाते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभों के संग मिलकर हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ किया और सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

07 August 2019, 16:10