संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

सच्चा आनन्द प्रभु के साथ रहने में, संत पापा

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 7 जुलाई को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

आज का सुसमाचार पाठ  (लूक. 10,1-12.17-20) येसु को 72 शिष्यों को मिशन हेतु भेजते हुए प्रस्तुत करता है, जिसमें 12 शिष्य भी शामिल थे। 72 की संख्या सभी देशों को इंगित करता है। वास्तव में, उत्पति ग्रंथ में 72 विभिन्न देशों का उल्लेख किया गया है। (उत्पति 10,1-32) अतः इस तरह भेजने का अर्थ है कि कलीसिया को सभी लोगों के बीच सुसमाचार का प्रचार करना है। उन शिष्यों से येसु कहते हैं, फसल तो बहुत है परन्तु मजदूर थोड़े हैं, इसलिए फसल के स्वामी से विन्ती करो कि वह फसल काटने के लिए मजदूरों को भेजे। (लूक.10. 2)

प्रार्थना का सार्वभौमिक आयाम

येसु का आग्रह उचित है। हमें फसल के स्वामी पिता ईश्वर से हमेशा प्रार्थना करना है जिससे कि वे संसार रूपी खेत में काम करने के लिए मजदूरों को भेजें। हम प्रत्येक को खुले हृदय और मिशनरी मनोभाव से प्रार्थना करना है। हमारी प्रार्थना को अपनी आवश्यकताओं तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। एक ख्रीस्तीय की प्रार्थना को सार्वभौमिक होनी चाहिए।

72 शिष्यों को भेजते हुए येसु उन्हें खास निर्देश देते हैं जिसमें मिशन की विशेषताएँ हैं। पहला- प्रार्थना करो, दूसरा- जाओ, अपने साथ थैली या झोली मत लो जाओ, जिस घर में प्रवेश करते हो, सबसे पहले यह कहो, इस घर को शांति। उसी घर में ठहरे रहो, घर पर घर बदलते न रहो, रोगियों को चंगा करो और उनसे कहो, ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। यदि कोई तुम्हारा स्वागत न करे तो वहाँ के बाजारों में जाकर कहो, अपने पैरों में लगी धूल भी हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं। (पद. 2-10)

मिशन का अर्थ घोषणा और साक्ष्य

ये बातें दिखलाते हैं कि मिशन प्रार्थना पर आधारित है, यह एक यात्रा है जो नहीं रूकती, आसक्त नहीं होती एवं गरीब रहने की मांग करती है। यह शांति एवं चंगाई लाती है, ईश्वर के राज्य के निकट होने का चिन्ह प्रकट करती, जो धर्मपरिवर्तन नहीं है बल्कि घोषणा एवं साक्ष्य है जो खुलापन एवं सुसमाचारी स्वतंत्रता की मांग करती है।

संत पापा ने कहा कि यदि इन बातों पर गौर किया जाए तो कलीसिया के मिशन को "आनन्द" कहा जा सकता है। मिशन का समापन कैसे होता है? सुसमाचार लेखक बतलाते हैं कि 72 शिष्य सानन्द लौटे। यह अल्पकालिक आनन्द नहीं है जो मिशन की सफलता से आती है इसके विपरीत यह आनन्द प्रतिज्ञा पर आधारित है। येसु कहते हैं, "तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे गये हैं। (पद. 20) ऐसा कहने के द्वारा वे आंतरिक एवं स्थायी आनन्द की ओर इंगित करते हैं, जो ईश्वर द्वारा उनके पुत्र का अनुसरण करने के लिए बुलाये जाने की चेतना से मिलती है। यह उनका शिष्य होने का आनन्द है। संत पापा ने बपतिस्मा की याद दिलाते हुए कहा कि आज, हम जितने लोग इस प्रांगण में हैं अपने बपतिस्मा के दिन की याद करें। उसी दिन हमारा नाम स्वर्ग में पिता ईश्वर के हृदय में लिखा गया। यही वरदान हमें आनंदित करता है, सभी शिष्यों को मिशनरी बनाता, जो येसु के साथ चलते, जो दूसरों के लिए स्वतंत्र रूप से अपना समय देते और जो अपनी ही चीजों में आसक्त नहीं होते।  

कुंवारी मरियम से प्रार्थना

संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना करने का आह्वान करते हुए कहा, "हम एक साथ धन्य कुँवारी मरियम के ममतामय स्नेह की याचना करें ताकि वे ख्रीस्त के शिष्यों के मिशन को हर जगह सहायता प्रदान करें, ईश्वर के प्रेम का प्रचार करने का मिशन जो हमारी मुक्ति चाहते हैं तथा हमें अपने राज्य का हिस्सा बनने का निमंत्रण देते हैं।"

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

08 July 2019, 14:27