खोज

सन्त पापा फ्राँसिस इटली के नेपल्स शहर में, 21 जून 2019 सन्त पापा फ्राँसिस इटली के नेपल्स शहर में, 21 जून 2019 

नेपल्स में ईशशास्त्रियों को सन्त पापा फ्राँसिस ने किया सम्बोधित

सन्त पापा फ्राँसिस ने, शुक्रवार को इटली के नेपल्स शहर में, "भूमध्यसागरीय संदर्भ में वेरितातिस गाओदियुम के बाद धर्मतत्व विज्ञान" विषय पर, परमधर्मपीठीय ईशशास्त्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मेलन में भाग लेनेवाले, धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, प्राध्यापकों एवं छात्रों को सम्बोधित किया।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 21 जून 2019 (रेई, वाटिकन रेडियो):  सन्त पापा फ्राँसिस ने, शुक्रवार को इटली के नेपल्स शहर में, "भूमध्यसागरीय संदर्भ में वेरितातिस गाओदियुम के बाद धर्मतत्व विज्ञान" विषय पर, परमधर्मपीठीय ईशशास्त्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मेलन में भाग लेनेवाले, धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, प्राध्यापकों एवं छात्रों को सम्बोधित किया।

वर्तमान जगत के अहं प्रश्न

सन्त पापा ने कहा, "भूमध्यसागर हमेशा से आदान-प्रदान और कभी-कभी संघर्षों का भी स्थल रहा है जो आज हमारे समक्ष कई अहं सवाल प्रस्तुत करता है। इन सवालों में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न हैं कि किस प्रकार लोगों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं सहिष्णुता को कायम किया जाये? हमसे भिन्न संस्कृति अथवा भिन्न धार्मिक परम्परा से आनेवाले लोगों का अपने बीच स्वागत कैसे किया जाये?"

शांति एवं भाईचारे से परिपूर्ण समाज हेतु ईशशास्त्र की भूमिका

इस सन्दर्भ में धर्मतत्वविज्ञान एवं ईशशास्त्र की भूमिका कैसी होनी चाहिये, उसपर आलोक प्रदान करते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा, "ईशशास्त्र का आह्वान किया जाता है कि वह आतिथ्य का ईशशास्त्र हो जो सामाजिक एवं नागरिक संस्थानों, विश्वविद्यालय और अनुसंधान केंद्रों, धार्मिक नेताओं तथा सभी शुभचिन्तक महिलाओं और पुरुषों के साथ, एक प्रामाणिक और ईमानदार संवाद विकसित करने में सक्षम हो, ताकि, शांति निर्माण एवं सृष्टि की सुरक्षा हेतु, एक समावेशी एवं भ्रातृत्वपूर्ण समाज की रचना सम्भव बन पड़े।"

सन्त पापा ने कहा कि प्रेरितिक उदबोधन "वेरितातिस गाओदियुम" के प्राक्कथन में स्पष्ट किया गया है कि विविध संस्कृतियों एवं धर्मों के साथ सम्वाद कर कलीसिया येसु का शुभ सन्देश सुनाती है तथा सुसमाचारी प्रेम का प्रसार करती है। उन्होंने कहा कि, विशेष रूप से, सम्वाद अन्यों को परखने एवं समझने की उत्तम विधि है। उन्होंने कहा, "सम्वाद द्वारा ही हम प्रेम रूपी ईश वचन को सब लोगों तक पहुँचा सकते हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति को सम्बोधित है।" 

अन्य धर्मों के साथ सम्वाद का महत्व

सन्त पापा ने कहा, "संवाद" कोई जादूई सूत्र नहीं है, लेकिन जब इसे गंभीरता से लिया जाता है तो, निश्चित रूप से, धर्मतत्व विज्ञान को इससे नवीकरण में मदद मिलती है।" उन्होंने कहा, "ईशशास्त्र के छात्रों को अन्य धर्मों और विशेष रूप से यहूदी और इस्लाम धर्मों के साथ संवाद करना सिखाया जाना चाहिये। इन धर्मों के साथ हमारी सामान्य जड़ों तथा हमारी अपनी अलग-अलग धार्मिक अस्मिताओं का उन्हें ज्ञान कराया जाना चाहिये, साथ ही, आपसी समझदारी तथा विविधता भरे समाज के महत्व से उन्हें अवगत कराया जाना चाहिये जो सम्मान, भाईचारे एवं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा दे।"  

धर्मग्रन्थों के पाठ को प्रोत्साहन देते हुए सन्त पापा ने कहा कि ईश्वर के वचन को समझने के लिये धर्मग्रन्थों को पढ़ना नितान्त आवश्यक है। उन्होंने कहा, "जब हम कोई पाठ पढ़ते हैं तब हम उसके साथ तथा विश्व के साथ सम्वाद करते हैं और यह सभी पवित्र धर्मग्रन्थ पर लागू होता है चाहे वह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल हो, यहूदियों का पवित्र ग्रन्थ तालमूद हो अथवा इस्लाम धर्मानुयायियों की कुरान पाक ही क्यों न हो।"

भूमध्यसागरीय क्षेत्र में शांति के लिये सन्त पापा प्राँसिस ने कहा कि यह यूरोप, अफ्रीका एवं एशिया की संस्कृतियों एवं लोगों का मिलन स्थल है जहाँ सम्वाद द्वारा लोगों के बीच ऐतिहासिक, भौगोलिक एवं मानवीय सेतुओं की रचना सम्भव है, जिसका हम सब को हर सम्भव प्रयास करना चाहिये।   

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

21 June 2019, 11:23