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आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा  

प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय हमारा आदर्श

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के दौरान प्रेरित चरित पर अपनी धर्मशिक्षा माला देते हुए येरुसलेम के प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय को ख्रीस्तियों का आदर्श निरूपित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 26 जून 2019 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को “प्रेरित चरित” पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाने के पूर्व संबोधित करते हुए कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

पेन्तेकोस्त के वरदान, जहाँ ईश्वर ने प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय को पवित्र आत्मा से सराबोर कर दिया जिसके फलस्वरुप बहुतों ने सुसमाचार की घोषणा के आनंद से अपने हृदय को बेधित होने का अनुभव किया। उन्होंने स्वतंत्रता में येसु ख्रीस्त में मिलने वाली मुक्ति से अपने को संयुक्त करते हुए उनके नाम में बपतिस्मा ग्रहण किया और वे पवित्र आत्मा के वरदानों के विभूषित किये गये। इस तरह करीबन तीन हजार लोग विश्वासियों के समुदाय में सम्मिलित हुए और यह हमें सुसमाचार के खमीर की बात बयां करती है। येसु ख्रीस्त में उन भाई-बहनों का विश्वास उनके जीवन को ईश्वरीय कार्य का केन्द्र-बिन्दु बनाता है जो प्रेरितों के चमत्कारों और चिन्हों द्वारा अभिव्यक्त होता है। असधारण अपने में सधारण बन जाता और प्रतिदिन का जीवन अपने में जीवित येसु ख्रीस्त की अभिव्यजंना बन जाती है।

प्रथम ख्रीस्तियों के चार मनोभाव

संत लूकस हमें बतलाते हैं कि येरुसलेम की कलीसिया भ्रातृत्व के संबंध में, जो अति मनमोहक है हम सभी ख्रीस्तीय समुदायों के लिए एक मापदण्ड है। प्रेरित चरित हमें प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय को ईश्वर के परिवार स्वरुप देखने में मदद करता है जहाँ हम ईश्वरीय प्रजा के रुप में, एक दूसरे के बीच सामुदायिक प्रेम को पाते हैं। हम उनके बीच में एक विशेष संबंध को देखते हैं, “नये विश्वासी प्रेरितों की शिक्षा के अनुरुप एकता में जीवनयापन करते और प्रभु-भोज और सामूहिक प्रार्थना में नियमित रुप से शामिल हुआ करते थे।” (प्रेरि. 2.42)। संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय सदैव प्रेरितों की शिक्षा के अनुसार अपने जीवन को संचालित करते हैं। वे दूसरों के साथ अपने व्यक्तिगत संबंध को लेकर एक बेहतर जीवनयापन करते हैं साथ ही आध्यात्मिक और भौतिक वस्तुओं के संबंध में भी वे अपने जीवन को एक-दूसरे के साथ साझा करते हैं। वे “रोटी तोड़ते” समय येसु ख्रीस्त की याद करते हैं अर्थात यूखारिस्तीय बलिदान में सहभागी होते हुए येसु ख्रीस्त के संग प्रार्थनामय वार्ता करते हैं। संत पापा फ्रांसिस ने प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय के चार मनोभावों पर जोर देते हुए कहा कि विश्वासी प्रेरितों की शिक्षा का अनुपालन करते हैं। दूसरा, वे अपने व्यक्तिगत और सामुदायिक जीवन में आध्यात्मिक और भौतिक वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं। तीसरा, वे पवित्र यूखारिस्तीय समारोह में सहभागी होते और चौथा वे प्रार्थना में ईश्वर से बातें करते हैं। ये चार बातें अच्छे ख्रीस्तीय के गुण हैं।

ख्रीस्तीय स्वार्थी नहीं हो सकता है

मानवीय समाज के विपरीत जहां हम केवल अपने ही स्वार्थ तक सीमित होकर रह जाते हैं जबकि विश्वासियों का समुदाय अपने में व्यक्तिवाद का परित्याग करता और सबों को अपने में सम्मिलित करते हुए सभी चीजों को एक साथ साझा करता है। संत पापा ने कहा कि एक ख्रीस्तीय के हृदय में स्वार्थ का निवास नहीं होता, यदि आप के हृदय में स्वार्थ है जो आप ख्रीस्तीय नहीं हैं, आप दुनियावी जीवन जीते हैं जो केवल अपनी ही वाह-वाही खोजता और अपने लाभ को देखता है। संत लूकस हमें बतलाते हैं विश्वासियों का मन और हृदय एक है अर्थात एकता और भ्रातृत्व विश्वासियों के जीवन का आधार है। हमें पड़ोसियों के रुप में एक-दूसरे की चिंता करने की जरुरत है न कि उनके विषय में गपशप करने की। हमें उनके निकट आते हुए उनकी मदद करने की जरुरत है।

हमारा बुलावा कैसा है

संत पापा ने कहा कि बपतिस्मा इस भांति येसु के साथ हमारे एक गहन आंतरिक संबंध को दिखलाता है जहाँ हम अपने जीवन को दूसरों के संग बांटने हेतु बुलाये जाते हैं। हम अपने को विशेषकर जो जरूरत की स्थिति में हैं उनकी आवश्यकता अनुसार अपने को बांटने हेतु निमंत्रित किये जाते हैं ( प्रेरि.2.45) अर्थात हम आहृवान उदारता में दान देने, दूसरों की चिंता करने, बीमारों की भेंट, जरुरतमंदों की सहायता और दुःखियों को सांत्वना देने हेतु किया जाता है।

हमारा यह भ्रातृत्व, जो अपने में सामुदायिकता की राह का चुनाव करता, जो जरुरतमंदों की ओर ध्यान देता है, हमारी कलीसियाई धर्मविधि को सच्चा और सजीव बनाता है। संत लूकस इसका जिक्र करते हुए कहते हैं, “वे सब मिलकर प्रतिदिन मंदिर जाया करते थे निजी घरों में प्रभु-भोज में सम्मिलित हो कर निष्कपट हृदय से आनन्दपूर्वक एक साथ भोजन करते थे। वे ईश्वर की स्तुति किया करते थे और सारी जनता उन्हें बहुत मानती थी।” (प्रेरि. 2.46-47)

विकास, ईश्वर से हमारा सानिध्य

प्रेरित चरित अंततः हमें यह बतलाता है कि प्रभु प्रतिदिन उनके समुदाय में ऐसे लोगों को मिला देता था जो मुक्ति प्राप्त करने वाले थे। (2.47) ईश्वर के सानिध्य में विश्वासियों का समुदाय विकासित हो रहा था। ईश्वर और भाइयों के साथ विश्वासियों की दृढ़ता एक आकर्षक शक्ति बन जाती है जो मोहित करती और विजयी होती है, (Evangelii gaudium 14) जिसके फलस्वरुप विश्वासी समुदाय सदा जीवित रहता है।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें कि वे हमारे समुदायों को एकता, सहचर्य और नये जीवन का स्वागत करने के योग्य बनायें, जहाँ हम धर्मविधि में ईश्वर से मुलाकात कर सकें जो हमें अपने भाई-बहनों के साथ अपने को संयुक्त करने में मदद करेगा और हम स्वर्ग राज्य के द्वार को अपने लिए खुला पायेंगे।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभों के संग मिलकर हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ किया और सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

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26 June 2019, 16:38