पूर्वी कलीसियाओं के सहायतार्थ बनी संगठन के सदस्यों के साथ संत पापा फ्राँसिस पूर्वी कलीसियाओं के सहायतार्थ बनी संगठन के सदस्यों के साथ संत पापा फ्राँसिस 

संत पापा ने इराक की यात्रा करने की इच्छा जाहिर की

संत पापा फ्राँसिस ने पूर्वी कलीसियाओं के सहायतार्थ बनी संगठन की 92वीं आम सभा के करीब 100 सदस्यों को संबोधित किया। संत पापा फ्राँसिस ने आने वाले वर्ष में इराक की यात्रा करने की इच्छा का खुलासा किया।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार,10 जून 2019 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने सोमवार 10 जून को वाटिकन के कार्डिनल मंडल भवन में पूर्वी कलीसियाओं के सहायतार्थ बनी संगठन (आरओएसीओ) की आम सभा के करीब 100 सदस्यों से मुलाकात की।

इराक की यात्रा

जैसा कि संगठन ने सीरिया, यूक्रेन और येरुसलेम, सीरिया सहित उन देशों को सूचीबद्ध किया है जो संगठन की पहुंच के भीतर हैं और जहां के विश्वासी पीड़ित हैं, संत पापा ने अपना ध्यान इराक पर केंद्रित किया। संत पापा ने कहा कि वे इराक के बारे हमेशा सोचते हैं वे वहाँ यात्रा करना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि क्षेत्रीय संघर्षों की भयावह उलझनों से घबराए बिना धार्मिक एवं समाज के अन्य तत्वों की साझा भागीदारी के आधार पर एक शांतिपूर्ण भविष्य का निर्माण करना संभव है

कई सौ हज़ार वर्षों की इराक की छोटी ख्रीस्तीय आबादी को उत्पीड़न और कठिनाई का सामना करना पड़ा, जब तथाकथित इस्लामिक स्टेट ने देश के बड़े भाग पर नियंत्रण कर लिया, लेकिन जिहादियों को बाहर धकेलने के बाद उन्हें आज़ादी मिली। देश काथलिक और ऑर्थोडोक्स दोनों के कई अलग-अलग संस्कारों के पूर्वी कलीसियाओं का घर है। इस देश में परमाध्यक्ष की पहली प्रेरितिक यात्रा होगी।

इराक, सीरिया, यूक्रेन, पवित्र भूमि

कुछ देशों और क्षेत्रों के आरओएसीओ में विशेष स्थितियों पर संक्षेप में विचार करते हुए, संत पापा ने "सीरिया की दयनीय स्थिति और अभी तक अस्थिर क्षेत्रों में असुरक्षा के काले बादलों के लिए दुख व्यक्त किया, जहां मानवीय संकट सबसे गंभीर समस्या बनी हुई है। ”

उन्होंने कहा कि वे उक्रेन को भी नहीं भूल सकते हैं। वहाँ लोग शांति की आश लगाये हुए बैठे हैं।  तब उन्होंने पवित्र भूमि येरुसलेम के एक पहल पर भरोसा जताया, जिसमें स्थानीय ख्रीस्तीय समुदाय और अंतर्राष्ट्रीय नेताओं के सहयोग से साथ-साथ काम कर रहे हैं।"

प्रवासी और शरणार्थी

संत पापा फ्राँसिस ने प्रवासियों और शरणार्थियों की दुर्दशा पर भी प्रकाश डाला।  उन्होंने कहा, "हम विमान में व्यक्तियों की दलीलें सुनते हैं, आशा की तलाश में नावों पर भीड़ के भीड़ लोग अपना देश छोड़ते हैं। उन्हें यही चिंता लगी रहती है कि कौन सा देश उनके स्वागत के लिए अपना बंदरगाह खोलेगा। यूरोप अपने बंदरगाहों को उन जहाजों के लिए खोलता है जो महंगे हथियार विनाश के ऐसे रूपों का निर्माण करने और लोड करने में सक्षम हैं जो बच्चों को भी नहीं बख्शते।”

आशा और सांत्वना

संत पापा ने आशा और सांत्वना के स्वरों को रेखांकित करते हुए उनके अथक प्रयास के लिए उन्हें और उनके एजेंसियों के सभी सदस्यों की सराहना की। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए आशा का पोषण करते हुए, हम युवाओं को "मानवता में बढ़ने के लिए, वैचारिक उपनिवेश के रूपों से मुक्त और खुले दिल और दिमाग के साथ" मदद करते हैं।

उन्होंने कहा कि इस वर्ष, इथियोपिया और इरित्रिया के युवा लोग दोनों देशों के बीच वांछित शांति के बाद - अपने हथियारों को त्याग दिया और सद्भाव में जी रहे हैं।

अपने संदेश के अंत में संत पापा ने उपस्थित प्रतिनिधियों से अबु धाबी दस्तावेज़ में निहित भाईचारे के संदेश को फैलाने में मदद करने को कहा। वे उन वास्तविकताओं को संरक्षित करना जारी रखें जो कई वर्षों से इसके संदेश का अभ्यास कर रहे हैं।

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10 June 2019, 16:40