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पेंतेकोस्त महापर्व के अवसर पर ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा पेंतेकोस्त महापर्व के अवसर पर ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा 

पेंतेकोस्त महापर्व, संत पापा का उपदेश

संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 9 जून को पेंतेकोस्त महापर्व के उपलक्ष्य में संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में हजारों विश्वासियों के साथ ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

 

वाटिकन सिटी, सोमवार, 10 जून 2019 (रेई)˸ संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 9 जून को पेंतेकोस्त महापर्व के उपलक्ष्य में संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में हजारों विश्वासियों के साथ ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

पवित्र आत्मा के कार्य

इससे पहले, वे अपने जीवन की रक्षा हेतु चिंतित थे, पर अब उन्हें मरने के लिए कोई डर नहीं था। पहले वे ऊपरी कमरा में जमा थे, अब वे सभी राष्ट्रों में सुसमाचार प्रचार हेतु जाने लगे। येसु के स्वर्गारोहन के पहले वे अपने लिए ईश्वर के राज्य के आगमन का इंतजार कर रहे थे। (प्रेच.1.16) पर, अब वे अनजान जगहों में यात्रा करने के लिए उत्साहित थे। पहले उन्होंने सार्वजनिक रूप से कभी नहीं बोला था और जब बोलने की कोशिश की थी, तब कई गलतियाँ भी की थी, उदाहरण के लिए, पेत्रुस ने येसु को अस्वीकार कर दिया था किन्तु अब वे सभी के साथ बुद्धिमानी से बात करने लगे। जब पवित्र आत्मा को ग्रहण कर शिष्य पुनः ताजगी से भर गये तब उन्हें लगा कि वे अपनी यात्रा के अंतिम छोर पर पहुँच गये हैं। अनिश्चितता से अभिभूत, उन्होंने सोचा था कि अब सब कुछ समाप्त हो चुका है, किन्तु वे आनन्द से परिपूर्ण हो गये, जो उन्हें एक नया जीवन मिला किया। यह पवित्र आत्मा का कार्य था।

संत पापा ने कहा कि पवित्र आत्मा कोई अस्पष्ट सच्चाई नहीं है, वह एक व्यक्ति है जो बिलकुल स्पष्ट एवं हमारे करीब है और जो हमारे हृदय में परिवर्तन ला सकता है। वह किस तरह कार्य करता है? हम प्रेरितों पर गौर करें। पवित्र आत्मा ने उनके कार्यों को आसान नहीं बनाया, वे भव्य चमत्कार नहीं दिखाये, उसने उनकी कठिनाइयों एवं विरोधियों को दूर नहीं किया, बल्कि उनके जीवन में सामंजस्य लाया, जिसका शिष्यों के जीवन में अभाव था। यह ईश्वर का सामंजस्य था क्योंकि वे स्वयं सामंजस्यपूर्ण हैं।

मानव के बीच सामंजस्य लाना

संत पापा ने कहा कि हृदय के अंतःस्थल में शिष्यों को परिवर्तन की आवश्यकता थी। उनका वृतांत हमें सिखलाता है कि पुनर्जीवित प्रभु का दर्शन करना काफी नहीं है यदि हम अपने हृदय में उनका स्वागत न करें। उस ज्ञान का कोई मूल्य नहीं है कि पुनर्जीवित प्रभु जीवित हैं, जब तक कि हम भी अंदर से पुनर्जीवित व्यक्ति (नये व्यक्ति) की तरह न जीयें।" उन्होंने कहा, "पवित्र आत्मा हमारे अंदर येसु को जीने देता है। हमें अपने आप से ऊपर उठने की शक्ति देता है। यही कारण है कि जब येसु शिष्यों के बीच प्रकट हुए, उन्होंने कहा, "तुम्हें शांति मिले।" (यो. 20:19.21) और उन्हें पवित्र आत्मा प्रदान किया।

शांति का अर्थ

शांति का अर्थ बाह्य समस्याओं से छुटकारा पाना नहीं है। ईश्वर ने शिष्यों को विपत्ति और अत्याचार से बचाये नहीं रखा। शांति का अर्थ है पवित्र आत्मा को ग्रहण करना। शांति, जो शिष्यों को प्रदान किया गया और जो समस्याओं से मुक्त नहीं करता, वहीं शांति हम प्रत्येक को प्रदान की गयी है। उनकी शांति से भरकर, हमारा हृदय गहरे सागर की तरह शांत हो जाता है जिसके कारण, सतह पर उठने वाली लहरें हमें विचलित नहीं करतीं। यह एक गहरा सामंजस्य है जो अत्याचार को आशीष में बदल देता है। फिर भी, हम बहुधा सतह पर बने रहना चाहते हैं और सोचते हैं कि उस समस्या के टलने पर सब कुछ ठीक हो जाएगा। जब कोई समस्या नहीं होगी तब चीजें बेहतर हो जायेंगी। संत पापा ने कहा कि ऐसा सोचना सतह पर सीमित रहना है क्योंकि जब एक समस्या जाती है तब दूसरी आ जाती है और हम फिर से परेशान एवं चिंतित हो जाते हैं। अपने समान नहीं सोचने वालों से बचना, हमें शांत नहीं रखता। क्षणिक समस्याओं के समाधान से शांति नहीं आती। जो अन्तर आता है वह येसु ख्रीस्त की शांति में है, जो पवित्र आत्मा के सामंजस्य से प्राप्त होती है।

हमारी चिंता के कारण  

आज के जीवन की उन्मादी गति में, सद्भाव एक तरफ बह गया है। हम हजार दिशाओं की ओर खिंचे होते और घबराहट के खतरे में रहते हैं जिसके कारण हम दूसरों के साथ बुरी तरह पेश आते हैं। हम शीघ्र सुधार की खोज करते हैं ताकि ठीक से बढ़ सकें, और उसके लिए एक के बाद एक गोली लेते रहते हैं। सजीव बने रहने के लिए एक मनोरंजन के बाद दूसरे मनोरंजन में भाग लेते हैं किन्तु सब कुछ से बढ़कर, हमें पवित्र आत्मा की आवश्यकता है, वे ही हमारे उन्मादों में व्यवस्था लाते हैं। आत्मा, बेचैनी के बीच शांति है, निरूत्साह के बीच साहस, उदासी में आनन्द, बुढ़ापा में जवानी तथा परीक्षा की घड़ी हिम्मत। जीवन के तुफानों के बीच वे आशा प्रदान करते हैं जैसा कि संत पौलुस आज हमें बतलाते हैं, पवित्र आत्मा हमें भय में गिरने से बचाते हैं क्योंकि वे हमें सचेत करते हैं कि हम उनके प्रिय संतान हैं। (रोम. 8:15) वे सांत्वना दाता हैं जो हमारे लिए ईश्वर के कोमल प्रेम को लाते हैं। उनके बिना हमारा ख्रीस्तीय जीवन बंद रहता है, जिसमें उस प्रेम की कमी होती है जो सभी को एक साथ लाया जा सकता है।

पवित्र आत्मा का प्रभाव

यदि पवित्र आत्मा नहीं होता तब येसु अतीत से एक व्यक्ति मात्र रह जाते, धर्मग्रंथ मृत शब्द मात्र रह जाता जबकि पवित्र आत्मा के साथ यह जीवन का वचन है। पवित्र आत्मा के बिना ख्रीस्तीयता एक आनन्दहीन नीतिवाद है जबकि उनके साथ यह जीवन है।  

पवित्र आत्मा केवल व्यक्ति के अंदर नहीं बल्कि लोगों के बीच भी सामंजस्य लाता है। वह हमें कलीसिया बनाता, विभिन्न भागों के बीच सामंजस्य कर एक सुन्दर परिवार का निर्माण करता है। संत पौलुस कलीसिया की सुन्दर व्याख्या करते हुए कहते हैं, "कृपादान तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु आत्मा एक ही है। सेवाएँ तो नाना प्रकार की होती हैं, किन्तु प्रभु एक ही हैं। प्रभावशाली कार्य तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु एक ही ईश्वर द्वारा सबों में सब कार्य सम्पन्न होते हैं।" (1 कोर. 12:4-6) हम अपने नाना प्रकार के गुणों एवं क्षमताओं के द्वारा अलग होते हैं। पवित्र आत्मा रचनात्मक रूप से हमें अलग-अलग क्षमता प्रदान करते हैं ताकि हम सभी समान न हों। हमारी विविधता के आधार पर वे हममें एकता लाते हैं। सृष्टि के शुरू से ही उन्होंने ऐसा कि है क्योंकि वे अव्यवस्था को व्यवस्थित करने और सामंजस्य लाने में निपूर्ण हैं।

आज विश्व की स्थिति

आज के विश्व में सामंजस्य की कमी ने विभाजन उत्पन्न किया है। यहाँ कुछ लोगों के पास बहुत अधिक है और कुछ लोगों के पास कुछ नहीं। कुछ लोग सौ साल जीना चाहते हैं और कुछ लोग जन्म भी नहीं ले पा रहे हैं। इस कम्प्यूटर युग में दूरिया बढ़ गयी हैं। हम जितना अधिक सामाजिक संचार माध्यमों का प्रयोग करते हैं उतना ही कम सामाजिक बन रहे हैं। अतः हमें पवित्र आत्मा की आवश्यकता है ताकि हम कलीसिया, ईश्वर की प्रजा एवं मानव परिवार के रूप में पुनः निर्मित किये जा सकें। यहाँ हमेशा एक घोंसला बनाने का प्रलोभन है ताकि हम अपने छोटे दल में चिपके रह सकें। हम हर प्रकार के मिश्रण से दूर रहना और उन चीजों एवं लोगों के करीब रहना हैं जिन्हें हम पसंद करते। किसी चीज़ के विरोध के द्वारा हम कितनी बार अपनी पहचान को परिभाषित करते हैं।

पवित्र आत्मा गलतियों से बढ़कर हमारी अच्छाई देखता

दूसरी ओर, पवित्र आत्मा उन चीजों को करीब लाता है जो दूर हैं, एकता में लाता है जो एक साथ नहीं थे, उन लोगों को घर लाता है जो घर से दूर चले गये थे। वह एक ही सामंजस्य में विभिन्न तानवाला मिश्रण करता है, क्योंकि वह सबसे बढ़कर अच्छाई देखता है। वह गलतियों की अपेक्षा व्यक्ति पर अधिक ध्यान देता है, कार्यों की अपेक्षा लोगों को देखता है। आत्मा ही कलीसिया एवं विश्व की रचना, पुत्र-पुत्रियों तथा भाई-बहनों के स्थान के रूप में करता है। ये संज्ञाएं किसी विशेषण से पहले आती हैं। आज कर विशेषण का प्रयोग फैशन बन गया है और दुःख की बात है कि इसका प्रयोग किसी का अपमान करने के लिए भी किया जाता है। बाद में हम महसूस करते हैं कि यह अपमानित होने वालों के लिए हानिकारक है किन्तु यह अपमान करने वालों के लिए भी हानिकारक है। बुराई का बदला बुराई से देना, जीवन का रास्ता नहीं है। जो लोग पवित्र आत्मा से संचालिक होकर जीते हैं, चाहे जो भी हो, जहाँ झगड़ा है वे वहाँ शांति लाते हैं और जहाँ संघर्ष है वहाँ समझौता। आध्यात्मिक व्यक्ति बुराई का बदला अच्छाई से देता है। वह अहंकार का जवाब विनम्रता से, नराजगी का जवाब अच्छाई से, शोर का जवाब मौन से, गपशप का जवाब प्रार्थना से, पराजित करने का जवाब प्रोत्साहन से देता है।  

आध्यात्मिक व्यक्ति

आध्यात्मिक व्यक्ति बनने एवं पवित्र आत्मा के सामंजस्य का आनन्द लेने हेतु, हमें चीजों को देखने के लिए पवित्र आत्मा के मनोभाव को अपनाने की जरूरत है। तब सब कुछ बदल जाएगा। पवित्र आत्मा के साथ कलीसिया ईश्वर की पवित्र प्रजा बन जाती है। मिशन का अर्थ है आनन्द का प्रचार करना। इसक द्वारा दूसरे लोग हमारे भाई -बहन बन जाते हैं एवं सभी लोग एक ही पिता संतान बन जाते हैं। पवित्र आत्मा के बिना कलीसिया एक संस्था बन कर रह जाती है, उसका मिशन एक प्रचार और उसके कार्य एक उद्योग मात्र। पवित्र आत्मा ही कलीसिया की प्रथम एवं अंतिम आवश्यकता है। वह उस स्थान पर आता है जहाँ उसे पसंद किया जाता है जहाँ उसे निमंत्रण दिया जता और जहाँ उसकी आशा की जाती है।

आइये, हम प्रतिदिन पवित्र आत्मा के वरदान की याचना करें। पवित्र आत्मा सामंजस्य की आत्मा, जो भय को भरोसा में और आत्मकेंद्रण को आत्मदान में बदल देता है हमारे बीच आइये। हमें पुरूत्थान का आनन्द प्रदान कीजिए एवं हमारे हृदय को सदा जवान बनाये रखिए। पवित्र आत्मा हमारे सौहार्द, कलीसिया एवं विश्व को शांति प्रदान कीजिए। हमें, सामीप्य के कारीगर, अच्छाई के पक्षधर और आशा के प्रेरित बनाईये।  

संत पापा फ्राँसिस ने ख्रीस्तयाग के उपरांत सभी विश्वासियों का अभिवादन किया तथा स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया।

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10 June 2019, 16:49