रोम के सन्त जॉन लातेरान महागिरजाघर में रोम के सन्त जॉन लातेरान महागिरजाघर में 

लोगों की पुकार सुनें, रोम धर्मप्रान्त से सन्त पापा फ्राँसिस

सन्त पापा फ्राँसिस ने, गुरुवार को रोम स्थित सन्त जॉन लातेरान महागिरजाघर की भेंट कर रोम धर्मप्रान्त के लोगों से आग्रह किया कि वे ज़रूरतमन्दों की पुकार पर कान दें।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

रोम, शुक्रवार, 10 मई 2019 (रेई,वाटिकन रेडियो): सन्त पापा फ्राँसिस ने, गुरुवार को रोम स्थित सन्त जॉन लातेरान महागिरजाघर की भेंट कर रोम धर्मप्रान्त के लोगों से आग्रह किया कि वे ज़रूरतमन्दों की पुकार पर कान दें। उन्होंने कहा कि वे पवित्र आत्मा की आवाज़ का अनुसरण करें तथा विनम्रतापूर्वक रोम शहर को सुव्यवस्थित करने के लिये प्रभु येसु के आशीर्वचनों पर मनन-चिन्तन करें।  

साक्ष्य

गुरुवार सन्ध्या रोम धर्मप्रान्त की विभिन्न पल्लियों के प्रतिनिधि पुरोहितों एवं विश्वासियों ने विगत वर्षों में अपनी-अपनी पल्लियों में सम्पन्न प्रेरितिक कार्यों की रिपोर्ट प्रस्तुत कर सन्त पापा फ्राँसिस ने समक्ष साक्ष्य प्रदान किये। इनमें युवा प्रतिनिधि, वृद्धाश्रमों एवं कारितास केन्द्रों में सेवारत स्वयंसेवक तथा लोकोपकारी कार्यों में संलग्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपने साक्ष्य प्रदान किये।  

लोगों की सुनें

साक्ष्यों को सुनने के उपरान्त सन्त पापा ने कहा, "हमने असंतुलन के बारे में सुना है, किन्तु असंतुलन से हमें डरना नहीं चाहिये। उन्होंने कहा कि प्रभु येसु ख्रीस्त का सुसमाचार भी असन्तुलन से परिपूर्ण है और इसका उदाहरण है उनके आशीर्वचन जिनके द्वारा प्रभु हमें दीन-हीन बनने के लिये आमंत्रित करते हैं।" उन्होंने कहा, "जब प्रेरितों ने सूर्यास्त के समय येसु को पर्वत पर आशीर्वचन बोलते सुना तब वे घबरा गये क्योंकि उन्हें भोजन की परवाह थी, अपनी दिनचर्या की और सांसारिक चीज़ों की फ्रिक्र लगी हुई थी, जबकि येसु हमें दीन-हीन बनने के लिये आमंत्रित करते हैं ताकि हम सहायता के लिये लगाई जा रही लोगों की पुकार को सुन सकें।"  

सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि यह जानना ज़रूरी है कि लोग हमसे क्या अपेक्षा रखते हैं। उन्होंने कहा, प्रायः हम सुनते नहीं हैं या सुनने में असमर्थ रहते हैं और यह इसलिये कि हमने अपने हृदय से सुनना बन्द कर दिया है और लोगों की पुकार के प्रति हम बहरे हो गये हैं।  

विनम्रता की आवश्यकता

सन्त पापा ने कहा कि जब प्रभु अपनी कलीसिया का मनपरिवर्तन चाहते हैं तब वे सबसे छोटे और दीन-हीन का चुनाव करते हैं और हम सबसे छोटे और दीन-हीन बनने का आग्रह करते हैं। उन्होंने कहा, "कलीसिया में किसी भी प्रकार का सुधार विन्रमता से शुरु होता है इसलिये जो व्यक्ति विनम्र बनकर येसु का अनुसरण करता है वही ईशराज्य में योगदान देने योग्य है। इसके विपरीत, जो व्यक्ति ख़ुद अपनी प्रतिभा को खोजता है वह कभी भी छोटों में या निर्धनों में येसु को नहीं पहचान पायेगा। वह केवल अपने स्वार्थ की चिन्ता करेगा तथा अन्यों की विपदाओं के प्रति उदासीन रहेगा।"  

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10 May 2019, 11:12