संत पापा बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बुधवारीय आमदर्शन समारोह में 

ईश्वर हमारे जीवन में बुराई नहीं करते

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में “परन्तु बराई से बचा” सातवें निवेदन पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार 15 मई 2019 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए विश्वासियों और तीर्थयात्रियों “हे पिता हमारे” प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा माला के पूर्व अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

अंततः हम “हे पिता हमारे” प्रार्थना के सातवें निवेदन पर पहुँचते हैं, “परन्तु बराई से बचा”।(मती.6.13)

विनय की प्रार्थना

इस निवेदन के द्वारा प्रार्थना करने वाला केवल परीक्षा में न छोड़े जाने हेतु विनय करता वरन वह अपने को बुराई से बचाये रखने की भी अर्जी करता है। असल ग्रीस भाषा में इस क्रिया का अर्थ अपने में बहुत व्यापक और ठोस है जहाँ हम ईश्वर से अपने को बचाये रखने हेतु निवेदन करते हैं। संत पेत्रुस भी हमें कहते हैं कि बुराई, शैतान हिंसक सिंह के समान है जो दहाड़ते हुए हमें फाड़ खाने को ढूंढ़ता रहता है। (1.पेत्रुस 5.8)  “हमारा परित्याग न कर” और “हमें बुराई से बचा” इन दो निवेदनों को हम ख्रीस्तीय प्रार्थना में अनिवार्य विशेषता के रुप में उभरता हुआ पाते हैं। येसु अपने शिष्यों को सारी चीजों के लिए अपने पिता के पास प्रार्थना करने हेतु कहते हैं और विशेषकर उस परिस्थिति में जब वे बुराई की उपस्थिति से अपने जीवन को भयभीत होता हुआ पाते हैं। संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय प्रार्थना जीवन के प्रति अपने आंखों को बंद नहीं करना है। यह बचकनी प्रार्थना नहीं वरन संतानों की प्रार्थना है। यह ईश्वर के पितृतुल्य उपस्थिति से सम्मोहित नहीं है जो इस बात को भूल जाये की मानव का जीवन कठिनाइयों से भरा है। यदि ऐसा नहीं होता तो “हे पिता हमारे” के अंतिम पदों को पापी, दुःखित, निराश और मृत्यु की स्थिति में पड़े लोग कैसे अपने लिए उच्चरित करतेॽ अंतिम निवेदन हमारे लिए वह विनय प्रार्थना है जिसे हम सदैव अपने जीवन की तकलीफ भरी स्थितियों में करते हैं।

बुराई ईश्वर का कार्य नहीं  

हम सबों के जीवन में एक बुराई है जो निर्विवाद रुप से उपस्थित है। इतिहास की किताबें इस बात का विवरण देती हैं कि इस दुनिया में हमारा अस्तित्व कितनी बार असफल रहा है। हमारे जीवन में एक रहस्यमयी बुराई है, जो निश्चित रूप से ईश्वर का काम नहीं है। संत पापा ने इस बात पर जोर देते हुए कहा, “हाँ, यह भगवान का काम नहीं है” लेकिन यह इतिहास की परतों में चुपचाप समाता जाता है। यह उस सांप की भांति होता जो अपने में चुपचाप विष को धारण किये रहता है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि बुराई की उपस्थिति ईश्वर की करूणा से भी तीव्र हो गई है यह हमारे जीवन के निराशा भरे क्षणों में और भी तीक्ष्ण लगती है।

बुराई हम सभों में

प्रार्थना करने वाला व्यक्ति अंधा नहीं है वह बुराई को देखता है जो कि जीवन को बोझिल बना देने वाली होती है, वह इस बुराई को ईश्वरीय नजरों से देखता है। वह उसे प्रकृति, इतिहास, स्वयं अपने हृदय में व्याप्त पाता है। हममें से कोई भी ऐसा नहीं जो अपने में यह कह सकता है कि वह बुराई से अछूता है या परीक्षा में नहीं पड़ता। हम सभी जानते हैं कि बुराई क्या है हम यह जानते हैं कि परीक्षा में पड़ने का अर्थ क्या है। हम से प्रत्येक ने अपने शरीर में पाप की परीक्षा का अनुभव किया है। शैतान हमारे लिए इस परीक्षा को लेकर आता है।

“हे पिता” प्रार्थना की अंतिम पुकार में हम मनुष्यों के विलाप, निर्दोष दर्द, दासता, दूसरे का शोषण, मासूम बच्चों के रोने की अनुभूतियों को पाते हैं। ये सभी घटनाएँ मनुष्य के दिल में विरोध को व्यक्त करती और येसु की प्रार्थना के अंतिम शब्द बनती हैं।

बुराई का शिकार, ईश पुत्र भी

येसु के दुःखभोग में हम “हे पिता” की पुकार को सुनते हैं, “हे पिता, यदि हो सके तो यह प्याल मुझसे टल जाये, सारी चीजों आप के द्वारा संभव हैं, लेकिन मेरी इच्छा नहीं बल्कि तेरी इच्छा पूरी हो।” (मरकुस 14.36) येसु अपने जीवन में बुराई की कटु स्थिति का अनुभव करते हैं। केवल मृत्यु ही नहीं वरन क्रूस की मृत्यु। अकेलापन केवल नहीं अपितु घृणा और तिस्कार भी। न केवल द्वेष, बल्कि उसके प्रति क्रूरता, एक घोर क्रूरता। वे मानव की भलाई हेतु अपने जीवन को समर्पित करते लेकिन उन्हें बुराई और निराश का शिकार होना पड़ता है।

संत पापा ने कहा, "हे पिता" की प्रार्थना एक सिम्फनी जैसी है जिसे हम सभी अपने में पूरा करने हेतु बुलाये जाते हैं। ख्रीस्तीय के रुप में हम सभी बुराई की शक्ति को जानते हैं, येसु ख्रीस्त ने स्वयं इसका अनुभव किया लेकिन वे इसके आगे नतमस्तक नहीं हुए, वे जीवन के बुरे क्षणों में हमारे साथ रहते और हमारी सहायता करते हैं।

येसु की प्रार्थना अनमोल निधि

अतः येसु की प्रार्थना हमारे लिए वह अनमोल निधि है जहाँ ईश पुत्र ने हमें बुराइयों के निजात दिलाया है। अपने जीवन की अंतिम लड़ाई से क्षण में वे पेत्रुस को अपनी तलवार म्यान में रखने को कहते हैं, पश्चतापी डाकू को वे स्वर्ग राज्य प्रदान करते और अपने विरूद्ध पाप करने वालों के लिए वे पिता से निवेदन करते हुए कहते हैं, “हे पिता तू उन्हें क्षमा कर दे क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। (लूका. 23.34)

संत पापा ने कहा कि येसु की क्षमाशीलता के कारण हम अपने जीवन में सच्ची शांति का अनुभव करते हैं।  पुनर्जीवित येसु हमें अपनी शांति का उपहार प्रदान करते हैं। हम येसु के उन वचनों को याद करें जहाँ वे अपने चेलों से कहते हैं, “तुम्हें शांति मिले”। वे हमें शांति और क्षमा प्रदान करते हैं लेकिन हम उनसे निवेदन करें कि वे हमें “बुराइयों से बचायें” जिससे हम उनमें न पड़ें। यह हमारी आशा, हमारी शक्ति है जिसे पुनर्जीवित येसु हमें देते हैं जो हमारे बीच में उपस्थित हैं। वे हमारे साथ रहते और हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करते हुए हमें बुराइयों से बचाने की प्रतिज्ञा करते हैं।

इतना कहने के बाद पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सबों के संग “हे पिता हमारे”  प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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15 May 2019, 17:03