यूरोपीय फूड बैंक के सदस्यों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस यूरोपीय फूड बैंक के सदस्यों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस 

फूड बैंक द्वारा भूख और बर्बादी का सामना

संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार, 18 मई को यूरोपीय फूड बैंक के स्वयंसेवकों से मुलाकात की जिन्होंने इटली में फूड बैंक की स्थापना की 13वीं वर्षगाँठ पर रोम में आयोजित एक सभा में भाग लिया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संत पापा ने कहा, "आप जो काम कर रहे हैं उसके लिए धन्यवाद, आप भूखों के लिए भोजन की आपूर्ति कर रहे हैं। इसका अर्थ केवल उनका भला करना नहीं बल्कि मुक्ति की राह पर उनका साथ देने का एक ठोस संकेत है।"

संत पापा ने इस कार्य से जुड़े सभी लोगों के प्रति अपना आभार प्रकट करते हुए कहा, "जब मैं आपको देखता हूँ तो कई लोगों के समर्पण को देख सकता हूँ जो इनाम के बिना चुपचाप बहुत अधिक सहायता प्रदान कर रहे हैं।" उन्होंने गौर किया कि दूसरों के बारे बातचीत करना आसान है किन्तु दूसरों की मदद करना कठिन, फिर भी, यही अधिक महत्वपूर्ण है। संत पापा ने सदस्यों से कहा कि वे बातों तक सीमित नहीं रहते बल्कि वास्तविक जीवन से जुड़े हैं क्योंकि वे भोजन को नष्ट होने से बचाते हैं। उन्होंने उनके कार्यों की तुलना पेड़ों से की जो प्रदूषित वायु को सांस लेते और ऑक्सीजन को छोड़ते हैं।

बर्बाद करने की मानसिकता

भूख से संघर्ष करने हेतु खाद्य सामग्री नष्ट करने से रोकने पर बल देते हुए संत पापा ने कहा कि भूख के भयानक संकट के खिलाफ लड़ाई का मतलब है बर्बादी से बचाना। नष्ट करने की मानसिकता से चीजों एवं अभावग्रस्त लोगों के प्रति उदासीनता उत्पन्न होती है। भीड़ के बीच रोटी बाटें जाने के बाद येसु ने अपने शिष्यों को बाकी रोटी बटोर लेने को कहा था। (यो. 6:12)

संत पापा ने कहा, "बटोरना ताकि पुनः बांटा जा सके, इसके द्वारा नष्ट होने से बचाया जा सकता है। भोजन फेंकने का अर्थ है लोगों को फेंकना। यह आज के लिए बड़ा ठोकर है कि भोजन के मूल्य को नहीं आंका जाता और अंत में यह बेकार हो जाता है।"

संत पापा ने नष्ट करने से बचने की सलाह देते हुए कहा, "जो अच्छा है उसे नष्ट करना गंदी आदत है यहाँ तक कि उदार कार्यों में भी। कई बार भले उद्देश्यों से शुरू किये गये अच्छे काम भी, बाद में, विस्तृत नौकरशाही, अत्यधिक प्रशासनिक लागत अथवा सच्चे विकास की ओर अग्रसर नहीं होने वाले कल्याणकारी कार्यों के कारण विफल हो जाते हैं।" आज की इस जटिल दुनिया में यह महत्वपूर्ण है कि भले कार्यों को भी अच्छी तरह किया जाए जिसके लिए विवेक, योजना बनाने की क्षमता एवं निरंतरता की आवश्यकता है। इसके लिए दल के सभी लोगों को एक साथ होने की जरूरत है क्योंकि जब एक-दूसरे की चिंता नहीं की जाती है तो भलाई का कार्य करना भी कठिन हो जाता है। उन्होंने कहा कि भाषा, आस्था, परम्परा एवं एक साथ आने के विभिन्न माध्यमों पर ध्यान देना आवश्यक है किन्तु सबसे बढ़कर है एक-दूसरे का आदर करना।

वैश्विक स्तर पर एकात्मकता की आवश्यकता

आज बहुत सारे लोग बिना नौकरी, प्रतिष्ठा अथवा उम्मीद के जी रहे हैं और अभी भी उत्पादन की मांगों के लिए अमानवीय रूप से प्रताड़ित किये जाते हैं जो मानव संबंधों को रिक्त करता और परिवार एवं व्यक्तिगत जीवन, दोनों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। "घर की देखभाल" करने के लिए स्थापित अर्थव्यवस्था, अमानवीय हो जाती है। मानवता की सेवा करने के बजाय यह हमें गुलाम बनाते, मौद्रिक तंत्र के जाल में फंसाते जो वास्तविक जीवन से दूर है एवं जिसको नियंत्रण में रखना कठिन है। संत पापा ने प्रश्न किया कि हम किस तरह चैन से रह सकते हैं जब व्यक्ति को संख्या तक सीमित कर दिया जाता, जब आंकड़े मानव चेहरे की जगह लेते और जीवन शेयर बाजारों पर निर्भर करते हैं?

मानव प्रतिष्ठा पर आधारित विकास को प्रोत्साहन

हम क्या कर सकते हैं? बीमार आर्थिक स्थिति का सामना करते हुए हम गलत शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते और न ही मौत का कारण बन सकते हैं। फिर भी हमें कुछ उपाय खोजना है, अस्थिरता उत्पन्न करते हुए अथवा अतीत की कल्पना करते हुए नहीं बल्कि अच्छाई का समर्थन करते हुए। दूसरों के साथ एकात्मता एवं परिपूर्णता का रास्ता अपनाते हुए। हमें उन लोगों को समर्थन देना है जो बेहतर के लिए बदलाव लाना चाहते हैं। हमें परिवारों, युवाओं के भविष्य तथा पर्यावरण के प्रति सम्मान में सामाजिक समानता एवं मानव प्रतिष्ठा पर आधारित विकास को प्रोत्साहन देना है। कुछ धनी लोगों के मरणोपरांत किये गये दान से बर्बादी समाप्त नहीं हो सकती, यदि अधिकांश लोग इसपर चुप रहें।      

संत पापा ने सभी स्वयंसेवकों को प्रोत्साहन दिया कि वे अपने इस कार्य में आगे बढ़ें एवं अधिक लोगों को इस कार्य में शामिल करने का प्रयास करें, खासकर, युवाओं को ताकि सभी लोगों की भलाई के लिए अच्छे कार्यों को प्रोत्साहन दिया जा सके।

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18 May 2019, 16:08