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अंगों के दान हेतु बनी इतालवी संगठन के साथ संत पापा फ्राँसिस अंगों के दान हेतु बनी इतालवी संगठन के साथ संत पापा फ्राँसिस 

अंग दान की अभिव्यक्ति एकजुटता के लिए, व्यावसाय नहीं, संत पापा

संत पापा ने मानव शरीर के अंगों और उत्तकों के दान हेतु बनी इतालवी संगठन के सदस्यों के साथ मुलाकात कर बताया कि, “दान का मतलब है...किसी की व्यक्तिगत जरूरतों से परे और खुद को उदारता में व्यापक रूप से खोलना।” उन्होंने शरीर के किसी भी हिस्से के व्यावसायीकरण के खिलाफ भी चेतावनी दी थी।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार 13 अप्रैल 2019 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार को वाटिकन के क्लेमेंटीन सभागार में मानव शरीर के अंगों और उत्तकों के दान हेतु बनी इतालवी संगठन के करीब 400 सदस्यों से मुलाकात की।

संत पापा ने संगठन के अध्यक्ष डाक्टर फ्लविया पेट्रिन को उनके परिचय भाषण के लिए धन्यवाद देते हुए वाटिकन में उनका तहे दिल से स्वागत किया। संत पापा ने उनके उदार कार्यों की प्रशंसा की जो बदले में कुछ पाने की आशा किये बिना दूसरों की सेवा में समर्पित हैं।

अंग दान भाईचारे की अभिव्यक्ति

संत पापा ने कहा कि चिकित्सा में मानव शरीर के प्रत्यारोपण विकास ने मानव जीवन को बचाने के लिए मृत्यु के बाद अंगों को दान करना संभव बना दिया है, और कुछ मामलों में (जैसे गुर्दे), कई बीमार लोगों के स्वास्थ्य को बनाए रखने और ठीक करने के लिए जिनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है, तो जीवित लोग अपने अंग का दान करते हैं। अंग दान एक सामाजिक आवश्यकता को पूरा करता है, क्योंकि कई चिकित्सा उपचारों के विकास के बावजूद, अभी भी अंगों के प्रत्यारोपण की मांग बहुत ज्यादा है। हालांकि, दानकर्ता के लिए दान का अर्थ, प्राप्तकर्ता द्वारा इसकी "उपयोगिता" में समाप्त नहीं करता है, बल्कि यह प्यार और परोपकारिता से भरा एक गहरा मानवीय अनुभव है। दान का अर्थ है, स्वयं की आवश्यकताओं से परे दूसरे की भलाई के लिए स्वेच्छा से एक कदम आगे बढ़ना है। इस परिप्रेक्ष्य में, अंग दान न केवल सामाजिक जिम्मेदारी को दर्शाता है, बल्कि सार्वभौमिक भाईचारे की अभिव्यक्ति को प्रकट करता है जो सभी पुरुषों और महिलाओं को एक साथ बांधता है।

संत पापा ने कहा कि  इस संबंध में, काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा सिखलाती है कि "मृत्यु के बाद अंग दान एक महान और उदार कार्य है और इसे एकजुटता की अभिव्यक्ति के रूप में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए" (न. 2296) हम मनुष्य आंतरिक रुप से स्वतः एक दूसरे के प्रति संवेदनशील हैं और दूसरों की भलाई और उन्हें खुशी देखते हुए हम खुद भी खुश होते हैं। दूसरों की भलाई के लिए की गई हमारी प्रतिबद्धता पूरे समाज को प्रभावित करतीहै।

धर्म और नैतिकता का सम्मान

संत पापा फ्राँसिस ने संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के प्रेरितिक पत्र “एवांजेलियुम विताए” को उद्धरित करते हुए कहा, “जीवन के एक प्रामाणिक संस्कृति को पोषित करने में योगदान देने के संदर्भ में "नैतिक रूप से स्वीकार्य किए गए अंगों का दान एक विशेष प्रशंसा का हकदार है - इसे रेखांकित किया जाना चाहिए -  कि बीमार लोगों के लिए स्वास्थ्य और यहां तक कि उन लोगों के जीवन की उम्मीद है जो कभी-कभी बिना आशा के होते हैं ”(न. 86)। यही कारण है कि अंग दान को अवैतनिक मुक्त अधिनियम के रूप में रखना महत्वपूर्ण है। वास्तव में, शरीर का या उसका कुछ हिस्से में संशोधन मानव गरिमा के विपरीत है। शरीर के रक्त दान या कोई अंग देने में, नैतिक और धार्मिक दृष्टिकोण का सम्मान करना आवश्यक है।

अंग दान, प्रभु को अर्पण

संत पापा ने कहा कि जिन लोगों में धार्मिक आस्था नहीं है, वे अपने जरूरतमंद भाइयों को देखते हुए मानवीय एकता के आदर्श के आधार पर अंग दान करने के लिए प्रेरित होते हैं। हम ख्रीस्तीय बीमारों, सड़क दुर्घटनाओं या काम पर दुर्घटनाओं के कारण पीड़ित लोगों में येसु को देखते हैं और उनकी पीड़ा को कम करने का प्रयास करते हैं। संत मत्ती का सुसमाचार कहता है, “तुमने मेरे इन भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह मेरे लिए ही किया।” (25:40)  येसु के शिष्यों के रुप में हमें कानून और नैतिकता की शर्तों को मानते हुए, अपने अंगों को दान करना अच्छा है, क्योंकि यह पीड़ित प्रभु को दिया गया एक उपहार है।

संत पापा ने उन्हें दान की संस्कृति को बढ़ावा देने, लोगों में सही जानकारी, जागरूकता लाने के प्रयासों की सराहना करते हुए अपने नेक इरादों को बनाये रखने और सेवा को जारी रखने हेतु प्रोत्साहित किया। संत पापा ने कहा, “मैं आपको अंग दान के अद्भुत माध्यमों से जीवन की रक्षा और बढ़ावा देने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ।”

अंत में संत पापा ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया।  

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13 April 2019, 15:31