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रोम, भेलेत्री के कारागार में 12 कैदियों के पैर धोते संत पापा रोम, भेलेत्री के कारागार में 12 कैदियों के पैर धोते संत पापा 

मानवीय जीवन का सार

संत पापा फ्रांसिस ने अपने पवित्र बृहस्पतिवार की धर्मविधि के दौरान रोम के भेलेत्री बंदीगृह में कैदियों को प्रेम का मर्म समझाते हुए सेवा का उदाहरण दिया।

वाटिकन सिटी शुक्रवार 19 अप्रैल 2019 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने रोम शहर के बाहर भेलेत्री के कारागार में 12 कैदियों के पैर धोये और पवित्र बृहस्पतिवार, अंतिम व्यारी भोज की धर्मविधि समापन की।

धर्मविधि के दौरान अपने प्रवचन में संत पापा ने कैदियों का धन्यवाद किया जिन्होंने कुछ दिनों पहले उन्हें अपने हृदय की भावनाओं को सुन्दर पत्रों के रुप में व्यक्त किया था।

सेवक के मनोभाव

उन्होंने कहा कि हमने सुनना कि येसु ने अपने चेलों के साथ क्या किया। यह अपने में अति सुन्दर है। सुसमाचार हमें बतलाता है,“यह जानते हुए कि पिता ने सारी चीजों को मेरे हाथों में दे दिया है” अर्थात येसु में सब कुछ करने की शक्ति थी। वे उठकर अपने शिष्यों के पैर धोने लगे। येसु के समय इस कार्य को गुलाम किया करते थे क्योंकि इस समय राह पर डामर नहीं था अतः घर पहुँचते-पहुँचते लोगों के पैर धूल-धूसरित हो जाते थे। येसु अपने चेलों के पैर धोते हुए सेवक का कार्य करते हैं। वे जिनमें सारी चीजों को करने की शक्ति है, वे, जो ईश्वर हैं अपने में दास का कार्य करते हैं। संत पापा ने कहा कि इस तरह वे हम सभों को सलाह देते हैं, “तुम इस कार्य को एक दूसरे के लिए करो”। दूसरे शब्दों में तुम एक दूसरे की सेवा करो, तुम महत्वकांक्षी नहीं बनों जो दूसरों पर शासन करते हैं लेकिन सेवा के माध्यम एक दूसरे के लिए भाई बने रहो। “तुम्हें किसी चीज की जरुरत है, सेवा की आवश्यकता है, मैं तुम्हारे लिए वह कर सकता हूँ”। संत पापा ने कहा कि यह भ्रातृत्व की भावना है जो अपने में सदैव नम्र बना रहता है, जो दूसरों की सेवा हेतु तैयार रहता है।

बालक का हृदय

कलीसिया चाहती है कि धर्माध्यक्ष अपने में इस सेवक के कार्य को साल में एक बार पवित्र बृहस्वपतिवार के दिन करे। इस तरह येसु चाहते हैं कि हम उनके उदाहरण का अनुसरण करें क्योंकि धर्मध्यक्ष अपने में अति महत्वपूर्ण नहीं होता वरन उसके सेवकाई कार्य महत्वपूर्ण होते हैं। हममें से प्रत्येक को एक दूसरे का सेवक होने की जरुरत है। यह येसु ख्रीस्त औऱ सुसमाचार का नियम है, सेवा का नियम दूसरों पर रोब जमाना नहीं, दूसरों की बुराई या अपमान करना नहीं है।  संत पापा ने कहा कि जब शिष्यों के मध्य का विवाद छिड़ गया था कि उनके बीच में “कौन सबसे बड़ा है”, तो येसु ख्रीस्त ने एक छोटे बच्चे को उनके बीच में खड़ा करते हुए कहा कि एक बालक। यदि हमारा हृदय एक छोटे बालक की भांति न हो तो हम येसु के शिष्य नहीं बन पायेंगे। एक बालक का हृदय सरल और सेवक-सा नम्र है। संत पापा ने कहा कि येसु हमें सावधान करते हैं, “राष्ट्र के नेता एक दूसरे पर शासन करते हैं लेकिन तुम्हारे साथ ऐसी बात न हो। जो सबसे बड़ा है वह सबकी सेवा करें, जो अपने को बड़ा समझता है वह सब का सेवक बने।” हमें सेवक बनने की जरुरत है। यह सत्य है कि जीवन में कई तरह की समस्याएं हैं..., हमारे बीच युद्ध की स्थिति है लेकिन यह हमारे बीच में खत्म हो क्योंकि हम प्रेम में एक दूसरे की सेवा करने हेतु बलाये गये हैं।

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19 April 2019, 11:53