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क्रिस्मा मिस्सा में संत पापा क्रिस्मा मिस्सा में संत पापा  

हमारा अभिषेक दूसरों के विलेपन हेतु

संत पापा ने पवित्र बृहस्पतिवार को क्रिज्म मिस्सा के दौरान पुरोहिताई बुलाहट पर चिंतन किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, गुरूवार 18 अप्रैल 2019 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने संत पेत्रुस के महागिरजाघर में पवित्र गुरूवार को क्रिज्मा मिस्सा अर्पित करते हुए संस्कारीय पवित्र तेलों की आशीष की।

उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि सुसमाचार जिसे हमने सुना हमें उस क्षण के आनंद में सम्मिलित करता है जब येसु नबी इसायस की भविष्यवाणी को अपने जीवन के लिए उच्चरित करते हैं। नाजरेत का वह प्रार्थना स्थल येसु के संगे संबंधियों, परिचितों, पड़ोसियों और मित्रों से भरा हुआ था जिनकी आंखें उन पर टिकी हुई थीं। कलीसिया की आंखें येसु ख्रीस्त पर टिकी हुई रहती हैं जो ईश्वर के अभिषिक्त हैं जिसे पवित्र आत्मा ईश प्रजा का विलेपन करने हेतु भेजते हैं।

लोगों की चाह

धर्मग्रंथ हमें येसु के उस रुप को प्रस्तुत करता है जहाँ वे लोगों से घिरे हैं जो चंगाई प्राप्त करना चाहते, अपने को दुष्ट आत्माओं से मुक्त होने की आशा करते हैं। वे येसु की शिक्षा सुनते और उनका अनुसरण करते हैं। “मेरी भेड़ें मेरी आवाज सुनती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसारण करती हैं।”(यो.10.27-28)

संत पापा ने कहा कि येसु का संबंध लोगों से नहीं टूटता है। हम इसे उनके पूरे जीवन में पाते हैं। बालक के रुप में येसु की चमक चरावहों, राजाओं और बुजुर्ग सिमियोन और अन्ना को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहाँ तक कि क्रूस के काठ में भी वे अपने हृदय की ओर पूरी मानव जाति को आकर्षित करते हैं।(यो.12.32)

शब्द “भीड़” अपने में असंगत नहीं है। सुसमाचार जब हमारे लिए भीड़ की चर्चा करता है तो हम देखते हैं कि येसु उनके बीच में एक चरवाहे की तरह खड़े होते और भीड़ आश्चर्य में विचार-मंथन करते हुए उनका अनुसारण करने की चाह रखती है। येसु और भीड़ के संबंध को लेकर संत पापा ने तीन बातों पर अपने चिंतन प्रस्तुत किये।

अनुसरण करने की कृपा

सुसमाचार लेखक संत लूकस कहते हैं भीड़ “येसु को खोजती है” (4.42) और “उनके साथ चलती है” (14.25)। “वे उन पर गिरे पड़ते थे” और उन्हें घेरे रहते (8.42-45) वे उनकी बातों को “सुनने हेतु” जमा होते थे (5.15)। भीड़ का येसु को अनुसरण करना अपने में अकथनीय, शर्तहीन औऱ प्रेम से भरा था। उनके मनोभाव चेलों की छोटी सोच से भिन्न थे जो येसु से आग्रह करते हैं कि वे उन्हें विदा करें जिससे वे अपने लिए खाने का प्रबंध करें। संत पापा ने कहा कि यहाँ मैं याजकीयवाद की शुरूआत को देखता हूँ, जो लोगों की चिंता के बदले में भोजन और व्यक्तिगत सुविधा की चिंता का नजारा पेश करता है। येसु इस परीक्षा पर अपने शिष्यों से कहते हैं “तुम उन्हें खाने को कुछ दो” वे उनसे कहते हैं कि तुम लोगों की चिंता करो।

आश्चर्य की कृपा

येसु का अनुसरण करने में लोग अपने में आश्चर्यचकित होते हैं। वे उनके चमत्कारों और स्वयं येसु को देख कर विस्मित होते हैं। (लूका.11.14) लोग उनसे मिलने की चाह रखते और उनकी आशीष प्राप्त करना चाहते और उन्हें भी आशीष देना चाहते हैं जैसे कि हम नारियों को येसु की माता को धन्य कहते हुए सुनते हैं। येसु ख्रीस्त स्वयं भी लोगों के विश्वास को देख कर अचंम्भित हो जाते और इसके बारे में जिक्र करने से नहीं चूकते हैं।

आत्म-परीक्षण की कृपा

लोगों को आत्म-परीक्षण तीसरी कृपा के रुप में मिलती है। “भीड़ को पता चला की येसु कहाँ हैं अतः वे उनके पीछे हो लिये” (लूका. 9.11)। वे उनकी शिक्षा से आश्चर्यचकित थे क्योंकि वे अधिकार के साथ शिक्षा देते थे मती.7.28-29, लूका. 5.26) येसु ख्रीस्त लोगों में आत्म-परीक्षण के गुण को जागृत करते हैं। फरीसियों के साथ उनके वाद-विवाद में लोग येसु के अधिकार का आत्ममंथन करते हैं जो कि उनके हृदयों को स्पर्श करता है जिसे वास्तव में दुष्ट आत्माएं भी मानते हैं।

सुसमाचार के आधार पर येसु के कार्यो से लाभान्वित होने वाले लोगों को संत पापा फ्रांसिस ने चार दलों गरीब, अंधे, प्रताड़ित किये गये और बंदियों के रुप में विभाजित किया। येसु उन्हें एक सामान्य नाम से संबोधित करते हैं लेकिन अपने जीवन काल में येसु उन्हें एक असल नाम और पहचान प्रदान करते हैं। जब तेल का विलेपन हमारे शरीर के किसी एक भाग में किया जाता तो इसका लाभ और प्रभाव पूरे शरीर को होता है। उसी तरह नबी इसायस के ग्रंथ के वचनों द्वारा येसु “भीड़” के विभिन्न नामों को घोषित करते हैं जिनके लिए पवित्र आत्मा ने उन्हें अपने सामर्थ्य में भेजा है।  

गरीब जो अपने में झुके हैं जैसे कि भीखारी जो भिक्षा मांगते हैं। वह नारी भी अपने में गरीब थी जिसने अपनी जीविका में से दो अधेले दान कर दिये। उसके दान की ओर येसु के सिवाय किसी का ध्यान नहीं गया। उसके द्वारा येसु गरीबों के मध्य अपने सुसमाचार प्रचार के प्रेरिताई कार्य को पूरा कर सकते हैं। वह गरीब विधवा अपनी उदरता के कारण सुसमाचार का अंग बनती है जिसकी अनुभूति वह स्वयं नहीं कर पाती है। वह “हमारे पड़ोस” में रहने वाले संतों की भांति सुसमाचार के प्रचार में आनंदपूर्ण सहयोग करती है।

सुसमाचार में अंधे व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व बरथोलोमी करता है (मती.10.46-52)। वह अपनी आंखों की ज्योति प्राप्त करने के फलस्वरुप केवल येसु के पीछे चलने हेतु अपनी दृष्टि गड़ाता है। हमारी आंखों को येसु अपनी प्रेममय नजरों की ज्योति से भरते हैं जो कई बार दुनियावी चमक के कारण धूमिल हो जाती है।   

संत लूकस सुसमाचार में भले समारी के दृष्टांत द्वारा प्रताड़ित व्यक्ति के लिए भले कार्य की चर्चा करते हैं। यह हमारा ध्यान येसु के घायल शरीर के विलेपन की ओर कराता है जहाँ हम उन लोगों को देखते हैं जो कई रुपों में अपने को परित्यक्त पाते हैं।

वर्तमान परिस्थिति में हम अपने को वैचारिक निवेशों के गुलाम पाते हैं। हमें इस गुलामी से विलेपन की संस्कृति और सहन करने की कला मुक्ति दिलायेगी।

संत पापा ने कहा कि हम सुसमाचार प्रचार के अपने आदर्शों जो हमारे लिए “लोग”, “भीड़” हैं न भूलें, जिन्हें येसु अपने विलेपन के द्वारा उठाते और जीवित करते हैं। हमारा अभिषेक उन्हें विलेपन प्रदान करने हेतु हुआ है। ईश्वर ने हमें उनके बीच से चुन कर उनके लिए नियुक्त किया है। वे हमारी आत्मा औऱ कलीसिया की आत्मा की निशानी हैं।

संत पापा ने कहा कि पुरोहितों के रूप हमारा हृदय उस गरीब विधवा की तरह हो, हम गरीबों का स्पर्श करते हुए उनकी आंखों में देखें। हम बरथोलोमी के समान हैं जिन्हें प्रतिदिन उठकर ईश्वर के यह प्रार्थना करने की जरुरत है, “प्रभु मैं देख सकूं।” हम राह में लूटेरों के द्वारा घायल किये गये व्यक्ति की भांति हैं। हमें उस भले समारी की करूणा की जरुरत है जिससे हम अपने हाथों के द्वारा दूसरों को अपनी करूणा दिखा सकें।  

विलेपन हेतु हमारा बुलावा

संत पापा ने कहा कि दूसरों का विलेपन करने में हम अपने में नवीन होते हैं। उन्होंने कहा कि हम बोतल में तेल के वितरक नहीं हैं। हम अपने को देते हुए दूसरों का विलेपन करते हैं जहाँ हम अपनी बुलाहट और अपने हृदय को बांटते हैं। दूसरों का विलेपन करना हमें अपने विश्वास और लोगों के प्रेम में नवीन बनता है। विलेपन के द्वारा अन्यों के घावों का स्पर्श करते हुए हम अपने हाथों को गंदा करते हैं। हम लोगों का विलेपन करने के द्वारा अपने को उनके विश्वास, आशा और निष्ठा से सुंग्धित करते हैं। वे जो विलेपन करते हुए दूसरों को आशीष प्रदान करते हैं वे अपने में चंगाई को प्राप्त करते हैं।

संत पापा ने अपने प्रवचन के अंत में कहा कि येसु के संग हमें लोगों के बीच रखते हुए पिता हमें पवित्र करते हैं जिसके फलस्वरुप हम विश्व और लोगों की सेवा करते हैं जिनकी जिम्मेदारी हमें सौंपी गई है। इस भांति हम जनसामान्य लोगों को येसु ख्रीस्त की एक प्रजा के रुप में जमा करते हैं।

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18 April 2019, 15:24