आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा 

हम ईश्वर के ऋणी हैं

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के दौरान “हे पिता हमारे” प्रार्थना पर धर्मशिक्षा देते हुए घमंड पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार 10 अप्रैल 2019 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

ईश्वर से अपने लिए प्रतिदिन की रोटी मांगने के बाद हम “हे पिता हमारे” की प्रार्थना में दूसरों के साथ अपने संबंध में प्रवेश करते हैं। येसु हमें अपने पिता से “अपने पापों हेतु क्षमा मांगने की शिक्षा देते हैं “जैसे हम अपने अपराधियों को क्षमा करते हैं।”(मत्ती.6.12) संत पापा ने कहा कि जैसे हमें अपने लिए प्रतिदिन रोटी की जरुरत होती है उसी भांति हमें रोजदिन अपने पापों के लिए क्षमा याचना करने की आवश्यकता है।

घमंड सबसे खतरनाक

एक ख्रीस्तीय जो अपने जीवन में प्रार्थना करता है सबसे पहले अपने पापों के लिए ईश्वर से क्षमा की याचना करता है। यह हर एक प्रार्थना की पहली सच्चाई है। संत पापा ने कहा कि हम अपने में पूर्ण होने की बात सोच सकते हैं, अपने जीवन के अच्छे मार्ग से अपने को कभी नहीं भटका नहीं सोच सकते हैं, इस तरह ईश्वरीय संतान के रुप में हम अपने जीवन की सारी बातों को उनके हाथों में सुपुर्द करते हैं। ख्रीस्तीय जीवन का सबसे खतरनाक मनोभाव अपने में घमंड करना है। यह अपने को ईश्वर के सामने इस रुप में प्रस्तुत करना है मानो हमारे जीवन में सारी चीजें सदा अच्छी तरह चल रही हों। उस फरीसी के समान जो ईश्वर के मंदिर में आकर अपने में यह सोचता है कि वह प्रार्थना कर रहा है लेकिन वह वास्तव में ईश्वर के सामने अपनी बढ़ाई कर रहा होता है। “हे प्रभु में तेरा धन्यवाद करता हूँ क्योंकि मैं दूसरों की तरह नहीं हूँ।” संत पापा ने कहा कि जो लोग अपने को पूर्ण समझते हैं, जो दूसरो की निंदा करते वे अपने में घमंडी हैं। हममें से कोई भी अपने में पूर्ण नहीं है, कोई नहीं। इसके विपरीत वह नाकेदार जो सभों के द्वारा तिरस्कृत है ईश मंदिर के द्वार पर खड़ा रहता क्योंकि वह अपने को अंदर प्रवेश करने के योग्य नहीं समझता है, वह अपने को ईश्वर की करुणामयी हाथों में समर्पित करता है। येसु कहते हैं, “वह नाकेदार ईश्वर का कृपापात्र बनता और अपने पापों से मुक्त होकर अपने घर लौटा है।” (लूका, 18.14) क्योंॽ क्योंकि वह अपने में घमंड नहीं करता वरन वह अपनी कमजोरियों और अपने पापों से अवगत है।

पाप विभाजन का कारण

संत पापा ने कहा कि हमारे जीवन में कुछ पाप हैं जो दिखाई देते और कुछ पाप हैं जो दिखाई नहीं देते, वे अपने में छुपे रहते हैं। वे चकाचौंध करने वाले पाप हैं जो अपने में शोर मचाते हैं, वहीं हमारे कुछ कुटिल पाप हैं जो हमारे हृदयों में दुबके रहते जिसका हमें आभास भी नहीं होता है। इनमें सबसे बुरा हमारे लिए घमंड का पाप है जो उन लोगों के भी अपना शिकार बना सकता है जो अपने में गहरी धार्मिकता वाले व्यक्ति हैं। संत पापा ने कहा कि जेनसेनिज्म के समय 1600-1700 सदी में धर्मबहनों का एक मठ हुआ करता था, ऐसा कहा जाता है कि वे अपने में स्वर्गदूतों की भांति शुद्ध हुआ करती थीं लेकिन उनमें शैतानों की तरह घमंड था। यह अपने में बहुत खराब है। पाप मानवता को विभाजित कर देती है। अपने पापमय स्वभाव के कारण हम अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं अपने घमंड के कारण हम अपने को ईश्वर के बराबर समझते हैं।

ईश्वर के सामने हम सभी पापी हैं और अपने पापों के कारण हम अपनी छाती पीटने हेतु बुलाये जाते हैं जैसा कि उस नाकेदार ने मंदिर में किया। संत योहन अपने पहले पत्र में कहते हैं, “यदि हम अपने को पापरहित कहते तो हम अपने को धोखा देते हैं और हममें सच्चाई नहीं है।(1 यो.1.8) यदि आप अपने को धोखा देना चाहते हैं तो आप अपने में यह कह सकते हैं कि आप ने पाप नहीं किया है।

हम ईश्वर के ऋणी हैं

संत पापा ने कहा कि हम अपने इस जीवन में ईश्वर के प्रति ऋणी हैं क्योंकि उन्होंने हमें कई तरह के वरदानों से भर दिया है माता-पिता, मित्रता, सृष्टि की सुन्दरता... यहां तक कि जब हम अपने जीवन के कठिन दौर से होकर गुजर रहे होते हैं तब भी हमें इस बात को याद रखने की जरुरत है कि जीवन हमारे लिए एक कृपा है, यह हमारे लिए एक चमत्कार है जिसे ईश्वर ने हमारी शून्यता के बावजूद हमें दिया है।

हम अपने में नहीं चमकते

दूसरी बात जो हमें ईश्वर के प्रति ऋणी बनता वह यह है, कि यदि हम अपने में प्रेम करने के योग्य बनते हैं तो यह हमारी अपनी क्षमता नहीं वरन यह हमारे लिए ईश्वर की ओर से आती है। एक सच्चा प्रेम जिसके योग्य हम होते हैं हमारे लिए ईश्वर की कृपा है। संत पापा ने कहा कि हम अपनी चमक से सुशोभित नहीं होते हैं। प्रचीन ईशशास्त्रीगण जो “मिस्ट्रेरियुम लुनाय” कहलाते हैं इसे न केवल कलीसिया की पहचान कहते वरन यह सभों की एक कहानी है। “मिस्ट्रेरियुम लुनाय” का अर्थ क्या हैॽ यह वह चन्द्रमा है जिसका अपना प्रकाश नहीं है बल्कि वह सूर्य के प्रकाश से प्रदीप्त होता है। हम भी अपने प्रकाश से नहीं जगमगाते वरन यह ईश्वर की ज्योति है उनकी कृपा जिसकी चमक हम अपने में धारण करते हैं। हम अपने में मुस्कुराने के योग्य होते तो इसका अर्थ यह है कि कोई हमारी ओर देखकर मुस्कुरा रहा होता है वह हमें अपनी मुस्कान का उत्तर मुस्कान से देने की शिक्षा देता है। यदि हम अपने में प्रेम करने के योग्य होते तो कोई हमारी बगल में होता है जो हमें प्रेम करने के योग्य बनाता है वह हमें इस बात को समझने के योग्य बनाता है कि जीवन जीने का अर्थ हमारे लिए क्या है।

दूसरों की कहानी सुनें

संत पापा ने कहा कि हम अपने जीवन में उस व्यक्ति की कहानी सुने जो कैदखाने में था, अपराधी घोषित किया गया था या किसी ड्रग्स का शिकार था... हम बहुत से लोगों को जानते हैं जिन्होंने अपने जीवन में गलतियाँ की हैं। बिना पूर्वाग्रह का शिकार हुए हम अपने आप से पूछें कि उन व्यक्तियों की गलतियों के लिए कौन दोषीदार है।

यही चन्द्रमा का रहस्य है, हम अपने जीवन में किसी को प्रेम करते हैं क्योंकि किसी ने हमें प्रेम किया है, हम दूसरों को क्षमा करते क्योंकि हम क्षमा किये गये हैं। संत पापा ने कहा कि यदि कोई सूर्य के प्रकाश से अपने को प्रकाशित नहीं करता तो वह अपने में ठढ़ी भूमि के समान हो जाता है।

हम अपने जीवन में ईश्वरीय प्रेम को पहचाने में कैसे असफल हो सकते हैंॽ ईश्वर ने हमें सबसे पहले प्रेम किया है और वे हमें सदा प्रेम करते रहेंगे। हम उन्हें उनकी तरह प्रेम नहीं कर सकते हैं। क्रूस के सामने खड़े हो कर हम अपने इस प्रेम की असमानता को देखें।

संत पापा ने कहा कि हम ईश्वर से प्रार्थना करें क्योंकि हममें से सबसे धर्मी व्यक्ति भी ईश्वर के ऋण से अछूता नहीं है वे हम सभों पर दया करें। इतना कहने के बाद पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सबों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

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10 April 2019, 15:42