संत पापा पापस्वीकार संस्कार ग्रहण करते हुए संत पापा पापस्वीकार संस्कार ग्रहण करते हुए 

पापस्वीकार की धर्मविधि में संत पापा का संदेश

संत पापा फ्रांसिस ने परपंरागत रुप से चली आ रही चालीसा के चौथे सप्ताह में “येसु के साथ 24 घंटे” धर्मविधि की अगुवाई की और पापस्वीकार संस्कार ग्रहण किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, 30 मार्च 2019 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने शुक्रवार को संत पेत्रुस महागिरजाघऱ में पापस्वीकार संस्कार की अगुवाई करते हुए अपने संदेश में कहा कि केवल करूणा और दया ही हमारे जीवन में रह जाते हैं।

उन्होंने कहा कि संत अगुस्टीन इन दो बातों के अनुरुप सुसमाचार का संक्षेपण प्रस्तुत करते हैं। नारी को पत्थर मारे वाले चले जाते हैं केवल येसु ही वहाँ रह जाते हैं। उनके लिए पाप की अपेक्षा पापी महत्वपूर्ण है। इस तरह वे हमारे पापों और गलतियों की अपेक्षा हम सभों को अपने हृदय में रखते हैं। हम येसु के मनोभावों को धारण करने हेतु उनसे कृपा की याचना करें। हम पाप को नहीं अपितु व्यक्ति के महत्व को अपने जीवन में देखें।

पापिनी स्त्री के दृष्टांत में येसु दो बार अपने हाथों से जमीन पर लिखते हैं। हम यह नहीं जानते कि येसु ने क्या लिखा। सिनाई पहाड़ में ईश्वर ने संहिता को अपने हाथों से लिखा और यहाँ हम येसु को लिखते  हुए सुनते हैं। आगे येसु हमसे प्रतिज्ञा करते हैं कि वे पत्थरों की पेट्टी पर नहीं पर हमारे हृदय पर अपने नियमों को लिखेंगे। येसु के द्वारा पिता हम सभों के हृदय में अपने प्रेम को अंकित करते हैं जब वे हमें जीवन की मुसीबतों में आशा प्रदान करते हैं। पापिनी नारी के साथ ऐसा ही हुआ वे उनके जीवन में प्रवेश करते और जीवन को नये सिरे से शुरू करने की कृपा प्रदान करते हैं। वे उसे पुनः पाप नहीं करने की हिदायत देते हैं। येसु ख्रीस्त हमारे हृदय के अंदर व्याप्त बुराई दूर करते हैं जिसे संहिता नहीं कर सकती है।

बुराई अपने में शक्तिशाली है, जिसमें हमें उत्तेजित करने की ताकत है, यह हमें आकर्षित और मोहित करती है। हम अपनी शक्ति के द्वारा बुराई से अपने को दूर नहीं कर सकते हैं। इसके लिए हम ईश्वरीय प्रेम की जरुरत है। ईश्वर के बिना हम बुराई पर विजयी नहीं हो सकते हैं। यह ईश्वर का प्रेम है जो हमें अंदर से मजबूत करता है। ईश्वर जो हमें अपने प्रेम से सराबोर करते हैं हमारे हृदय को स्वतंत्र बनाता है। यदि हम अपने जीवन में स्वतंत्र होने की चाह रखते तो हमें अपने हृदय में येसु को जगह देने की जरुरत है जो हमें क्षमा करते औऱ हमें चंगाई प्रदान करते हैं। वे इसे पापस्वीकार संस्कार में हमारे लिए पूरा करते हैं। पापस्वीकार हमें बुराई से ईश्वरीय करूणा की ओर ले चलती है जहाँ ईश्वर हमारे हृदय में अपना प्रेम अंकित करते हैं। हम अपने हृदय की गहराई में इस तरह इस बात का एहसास करते हैं कि ईश्वर की नजरों में हम कितने महान हैं वे पिता के रुप में हमें कैसे बेइंतहा प्रेम करते हैं।

हम अपने जीवन में बहुत बार खो जाने का एहसास करते हैं। हमें यह पता नहीं चलता कि हम कैसे पुनः शुरू करें। हम अपने जीवन की नयी शुरूआत करना चाहते हैं लेकिन हम कहाँ से करें हमें पता नहीं चलता है। ख्रीस्तियों के रुप में हमारे जीवन की शुरुआत क्षमा से होती है जिसे हम बपतिस्मा संस्कार में प्राप्त करते हैं। हम अपने जीवन में क्षमा किये जाने की अनुभूति से नये जीवन की शुरूआत करते हैं। क्षमा हमें नये जीवन की शुरूआत करने की शक्ति प्रदान करती है, जहाँ हम नये प्राणी बनते हैं। पुरोहित के द्वारा क्षमा किया जाना हममें एक विशेष अनुभूति लाती है जैसी कि पापिनी नारी के साथ हुआ।

हमें ईश्वरीय करूणा में आने और पापस्वीकार के भय से निजात पाने हेतु क्या करना चाहिएॽ इसके लिए हमें ईश्वर की क्षमाशीलता को अनुभव करने की जरूरत है। यह हमें एक तरह से ईश्वर में स्वतंत्र होने की अनुभूति लाता है। हम क्रूस की ओर अपनी निगाहें फेरते हुए ईश्वर के प्रेम को देखें जहाँ से हमारे लिए शांति और क्षमा आती है। पापस्वीकार का सार हमारे लिए यही है कि हम अपने पापों की घोषणा नहीं करते वरन हम ईश्वर के दिव्य प्रेम को अपने में ग्रहण करते हैं। संत पापा ने कहा, “हम पापस्वीकार संस्कार पर संदेह हो सकता है क्योंकि हम बार-बार एक ही पाप में गिर जाते हैं।” लेकिन येसु हमारी कमजोरी को जनाते हैं और वे हमें अपने प्रेम में सदा ग्रहण करने को तैयार रहते हैं। वे हमें नया बनाते हैं अतः आइए हम पापस्वीकार संस्कार से पुनः अपने जीवन की नई शुरुआत करें। 

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30 March 2019, 11:01