ईश्वर धैर्य में कार्य करते हैं
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार 06 मार्च 2019 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को “हे पिता हमारे प्रार्थना” पर अपनी धर्मशिक्षा माला देने के पूर्व अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयों एवं बहनों सुप्रभात।
“हे पिता हमारे” की प्रार्थना करने के क्रम में हम “तेरा राज्य आवे” कहते हुए दूसरे निवेदन प्रार्थना को उच्चरित करते हैं। (मत्ती. 6.10) ईश्वरीय नाम के पवित्र होने की प्रार्थना करने के उपरांत विश्वासियों के रुप हम उसके राज्य के शीघ्र आने की कामना करते हैं। यह इच्छा स्वयं येसु ख्रीस्त के हृदय के प्रवाहित होती है जो अपने पिता के राज्य को घोषित करते हुए गलीलिया में उनके कार्यों को यह कहते हुए शुरू करते हैं, “समय पूरा हो गया है ईश्वर का राज्य निकट आ गया है पश्चताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।” (मारकुस 1,15) येसु के ये वचन हमारे लिए धमकी नहीं वरन इसके विपरीत यह आनंद भरी उद्घोषणा है, एक शुभ संदेश है। येसु लोगों में ईश्वर के न्याय का भय या अपने पापों के लिए आत्मग्लानि का बोध करते हुए मन परिवर्तन हेतु प्रेरित नहीं करते हैं। बल्कि, वे मुक्ति का संदेश लेकर आते और मन परिवर्तन हेतु निमंत्रण देते हैं। हम सभों को “सुसमाचार” में विश्वास करने का निमंत्रण दिया जा रहा है, क्योंकि ईश्वर का राज्य उसकी संतानों के बीच आ गया है। येसु हमारे लिए यह सुसमाचार घोषित करते हैं, ईश्वर पिता हमें प्रेम करते हैं वे हमारे निकट रहते, अतः वे हमें पवित्रता के मार्ग में बढ़ने हेतु शिक्षा देते हैं।
ईश्वर का राज्य
ईश्वर के राज्य की निकटता को हम कई सकारात्मक रुपों में अपने बीच देख सकते हैं। येसु अपने प्रेरितिक कार्य की शुरूआत शारीरिक और आध्यात्मिक रुप में बीमारों की सुधि लेते हुए करते हैं, वे समाज के परित्यक्त लोगों जैसे कि कोढ़ियों, पापियों जो कि दूसरे के द्वारा घृणा की दृष्टि से देखे जाते यहां तक कि उन पापियों के द्वारा भी जो अन्यों से अधिक पापी थे लेकिन वे अपने में अच्छा होने का ढ़ोग करते थे। येसु उन्हें “ढोगियों” की संज्ञा देते हैं। ईश्वर के राज्य का साक्ष्य येसु स्वयं विभिन्न निशानियों के द्वारा लोगों को देते हैं,“अंधे देखते, लग्ड़े चलते, कोढ़ी शुद्ध किये जाते, बहरे सुनते, मुर्दे जिलाये जाते, दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है।” (मत्ती.11.5)
तेरा राज्य आवे
“तेरा राज्य आवे”, एक ख्रीस्त विश्वासी ईश्वर के साथ प्रार्थना करते हुए अपने में इस बात को बरांबार दुहराता है। संत पापा ने कहा कि येसु ख्रीस्त आये लेकिन दुनिया में अब भी पाप है, लोग अपने में दुःखों से घिरे हैं, लोग अपने में मेल-मिल और एक-दूसरे को क्षमा नहीं कर सकते, हम दुनिया में युद्ध और विभिन्न तरह की बुराइयों को देखते हैं, उदाहरण के लिए हम बच्चों के देह व्यपार के बारे में सोच सकते हैं। हमारे जीवन की ये सारी हकीकतें हमें यह बतलाती हैं कि येसु ख्रीस्त की जीत पूर्णरूपेण स्थापित नहीं हो पाई है। बहुत से नर और नारी हैं जो अपने हृदय को बंद रखते हुए जीवनयापन करते हैं। इन परिस्थितियों में “हे पिता हमारे” की प्रार्थना करने के द्वारा हम “तेरा राज्य आवे” को अपनी होठों से उच्चरित करते हैं। संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए यह कहने के समान है “लेकिन पिता, हमें आप की जरुरत है, येसु आप हमारी आवश्यकता हैं, हम चाहते हैं कि आप सभी जगह और सदा हमारे संग ईश्वर के रुप में रहें। “तेरा राज्य आवे, तू हमारे बीच में निवास कर।”
ईश्वर के राज्य में देर क्योंॽ
बहुत बार हम अपने में यह पूछते हैं कि क्यों ईश्वर का राज्य आने में इतनी देर होता हैॽ येसु अपनी जीत को दृष्टांतों की भाषा से हमारे बीच पेश करते हैं। वे हमें इसे खेत में बोये गये गेहूँ के अच्छे और जगंली बीज स्वररुप पेश करते हैं जो एक साथ बढ़ते हैं। हमारी ओर से सबसे बड़ी गलती तब होगी जब हम इसमें हस्तक्षेप करते हुए बुरे दिखने वाले पौधों को दुनिया से तुरंत उखाड़ने की कोशिश करेंगे। ईश्वर हमारी तरह नहीं हैं, वे धैर्यवान हैं। ईश्वर का राज्य हिंसा के द्वारा दुनिया में स्थापित नहीं किया जाता लेकिन इसका प्रसार विनम्रता में होती है। (मत्ती.13.24-30)
ईश्वर का राज्य बड़ी शक्ति
ईश्वर का राज्य निश्चय ही अपने में सबसे बड़ी शक्ति है लेकिन यह दुनिया के तौर-तरीकों से भिन्न है यही कारण है कि हम इसमें पूर्ण बहुमत नहीं पाते हैं। यह उस खमीर के समान है जो आटा में मिलकर लुप्त हो जाता यद्यपि यह सारी चीजों को विस्तृत करता है। (मत्ती. 13.33) यह राई के दाने समान है जो अपने में एकदम छोटा है जिसे हमें देखने में भी कठिनाई होती है। यह अपने में विकास करता है और जब यह विकसित होता तो वाटिका के सबसे बड़े वृक्षों में से एक हो जाता है। मत्ती. 13.31-32)
ईश्वर की कार्यशीलता
ईश्वरीय राज्य के इस “भाग्य” में हम येसु के जीवन के बारे में चिंतन कर सकते हैं, वे अपने समकालीनों, इतिहास के जानकारों के बीच एक अज्ञात व्यक्तित्व रहे। वे अपने को एक “गेहूं के बीज” समान पेश करते जो भूमि पर गिर कर मर जाता है लेकिन केवल इस तरह ही वह अपने में “अधिक फल उत्पन्न” करता है। (यो.12.24) बीज की निशानी अपने में अर्थपूर्ण हैः बोने वाला उसे भूमि में बोता,वह रात को सोने जाता और सुबह उठता है। बीज उगता और बढ़ता जाता है हाँलकि उसे यह पता नहीं कि यह कैसे हो रहा है। (मार.4.27) बीज जो उगता और विकसित होता वह मनुष्य की अपेक्षा ईश्वर द्वारा किया जाने वाला बड़ा कार्य है। ईश्वर सदा हमारे साथ रहते हैं वे हमें आश्चर्यचकित करते हैं। हम उनका धन्यवाद करते हैं क्योंकि पुण्य शुक्रवार की रात के बाद पुनरुत्थान की वह सुबह जिसके द्वारा वे आशा में सारी दुनिया को आलोकित करते हैं।
हम यह भी कहें, “प्रभु येसु आइए”
संत पापा ने कहा, “तेरा राज्य आवे”, इस वाक्य को हम अपने जीवन के पापों और असफलताओं के मध्य बोते हैं। इसे हमें उन्हें देना है जो अपने जीवन से हताश और निराश हो गये हैं, वे जो अपने जीवन में प्रेम के बदले घृणा को प्रसारित करते हैं, वे अपने जीवन के अर्थ को बिना समझे जी रहे हैं। हम इसे उन लोगों के लिए दें जो न्याय के खातिर लड़े और इतिहास में शहीह हुए हैं। उन्हें दें जो अपने में यह अनुभव करते हैं कि उन्हें लड़ाई लड़ी है परन्तु उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ और बुराई का बोलबाला हमेशा इस दुनिया में बना रहता है। इस भांति हमें इस प्रार्थना का उत्तर हम सुसमाचार में पाते हैं, “हाँ मैं शीघ्र आऊंगा।” आमेन। यह हमारे लिए ईश्वर का उत्तर है। ईश्वर की कलीसिया भी इसका जबाव देती है,“आइए, प्रभु येसु।” संत पापा ने कहा कि हम “हे पिता हमारे” की प्रार्थना में तेरा राज्य आवें के साथ यह भी कहें, “प्रभु येसु आइए।”
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