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अल्फोन्सियन अकादमी के विद्यार्थी एवं शिक्षकसंत पापा से मुलाकात करते हुए अल्फोन्सियन अकादमी के विद्यार्थी एवं शिक्षकसंत पापा से मुलाकात करते हुए 

नैतिक ईशशास्त्र को ठोस मुद्दों के साथ "हाथ गंदा" करना चाहिए

संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 9 फरवरी को अल्फोन्सियन अकादमी की 70वीं वर्षगाँठ के अवसर पर वहाँ के 400 शिक्षकों एवं विद्यार्थियों से मुलाकात की तथा उन्हें कलीसिया का आदर्श प्रस्तुत करने का निमंत्रण दिया जो बाहर निकलती एवं दूसरों से संवाद करती है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संत पापा ने उन्हें सम्बोधित कर कहा, "इन सत्तर सालों में अल्फोंसियन अकादमी ने अपने को समर्पित किया है जैसा कि उनका नियम स्मरण दिलाता है।" उन्होंने कहा कि वर्षगाँठ ऐसे समय में मनाया जा रहा है जब कलीसिया इसके लिए नवीनीकरण एवं अधिक दृढ़ प्रतिबद्धता हेतु बुलायी गयी है।   

सन् 1949 में अल्फोंसियन अकादमी की स्थापना संत अल्फोंसियुस लिगोरी के मनोभाव पर मुक्तिदाता (रेडेमटोरिस्ट) धर्मसमाज के पुरोहितों द्वारा किया गया था जिन्हें नैतिक ईशशास्त्र का संरक्षक माना जाता है। तब से अकादमी ने याजको, धर्मसंघियों एवं लोकधर्मियों को प्रशिक्षण प्रदान किया है। सन् 1960 से यह परमधर्मपीठीय लातेरन विश्वविद्यालय का एक भाग बन गया है।

अकादमी की 70वीं वर्षगाँठ के अवसर पर संत पापा ने अल्फोन्सियन अकादमी के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को निमंत्रण दिया कि वे आगे देखें, मिशन के उत्साह को पुनः प्राप्त करें एवं ईश्वर की प्रजा की आशा के बेहतर प्रत्युत्तर के लिए नये कदम उठाने का साहस करें।

संत पापा ने कहा कि विश्वविद्यालय एवं कलीसियाई संस्थाओं को कलीसिया के उस  आदर्श को प्रस्तुत करना है जो व्यापक संवाद के लिए बाहर निकलती है। उन्होंने कहा कि कलीसियाई एवं शैक्षणिक संस्थाओं को विश्व के साथ सम्पर्क करने की आवश्यकता है ताकि ऐसी समस्याएं जो आज मानवता को प्रभावित करती हैं उनके समाधान हेतु उपयुक्त एवं सही मार्ग को प्रस्तुत कर सके।  

विश्व को चंगा किये जाने न कि दण्ड दिये जाने की आवश्यकता है

अपने सम्बोधन में संत पापा ने व्यक्ति और परिवारों की दैनिक परिस्थिति के करीब रहते हुए, अत्यधिक आदर्शीकरण के प्रति भी सचेत रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इस दुनिया को बहुत अधिक दोष नहीं दिया जाना चाहिए बल्कि ख्रीस्त का अनुसरण करते हुए, करुणा के द्वारा इसे चंगा और मुक्त किये जाने की आवश्यकता है।

संत पापा ने इस बात को रेखांकित किया कि नैतिक ईशशास्त्र की शिक्षा विद्यार्थियों को प्रेम जैसे सुसमाचार के मूल्यों में बढ़ने हेतु प्रोत्साहित करे। यह उन्हें पाप एवं मृत्यु के नियम से मुक्त करे तथा उदासीनता की हर गुलामी से स्वतंत्र करे।

नैतिक ईशशास्त्र, पर्यावरण एवं दुर्बलों की रक्षा करना

संत पापा ने विश्व में पर्यावरण संकट पर जोर देते हुए पृथ्वी के रूदन की ओर ध्यान आकृष्ट किया जो स्वार्थी शोषण कर्ताओं के द्वारा घायल है। उन्होंने कहा कि यह सच्चाई हमारा ध्यान अपनी ओर खींचता है, कि जब हम मेल-मिलाप के मिशन को आगे बढ़ाते हैं तो प्रकृति, पृथ्वी एवं सृष्टि का हनन करने के लिए कोई भी माफी नहीं मांगता है। हम इसके द्वारा होने वाले पाप से सचेत नहीं हैं। उन्होंने शिक्षकों एवं विद्यार्थियों से कहा कि यह उनका कार्य है कि वे लोगों के बीच जागरूकता बढ़ायें।  

संत पापा ने कहा कि अभिन्न विकास के व्यवहार्य तरीकों के माध्यम से हमारे सामान्य घर की देखभाल के लिए पारस्परिक प्रयास में प्रत्येक राष्ट्र की तात्कालिकता को नैतिक धर्मशास्त्र पर आधारित होना चाहिए। यही प्रतिबद्धता उन्नत जैव चिकित्सा अनुसंधान पर लागू होती है। नैतिक खोज में जीवन के बेशर्त मूल्यों को प्रकट किया जाना चाहिए, इस बात की पुष्टि देते हुए कि सबसे कमजोर एवं असुरक्षित लोगों के जीवन के प्रति हमें एकात्मता एवं भरोसा की भावना रखने की आवश्यकता है।  

अंत में, संत पापा ने कहा कि अल्फोंसियन अकादमी नैतिक ईशशास्त्र के प्रति अपने समर्पण को जारी रखें, समस्याओं का सामना करने से न डरे, विशेषकर, अपने भविष्य को भय की दृष्टि से देखने वाले दुर्बल एवं पीड़ित लोगों के प्रति, जो मार्ग, सत्य और जीवन प्रभु के सच्चे साक्षी हैं।

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09 February 2019, 15:42