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आदिवासियों से मुलाकात करते संत पापा आदिवासियों से मुलाकात करते संत पापा 

आदिवासी, हमारे आम घर के लिए आशा की जीवित पुकार

संत पापा फ्राँसिस ने आदिवासी मंच के 38 प्रतिनिधियों से मुलाकात की जो आदिवासी जनता मंच की चौथी वैश्विक सभा में भाग ले रहे हैं। आदिवासी मंच की सभा को कृषि विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय फंड की समिति (आईएफएडी) के 42वें सम्मेलन के साथ शामिल किया गया है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

रोम में बृहस्पतिवार को अपना वक्तव्य पेश करते हुए संत पापा ने आदिवासी जनता मंच पर प्रकाश डाला जो आदिवासियों के ज्ञान एवं जलवायु लचीलापन और सतत् विकास हेतु नवीनीकरण पर अधिक ध्यान देती है।  

जलवायु मुद्दे के अत्याधिक महत्व पर ध्यान आकृष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि मंच एक निमंत्रण है कि हम ग्रह की ओर पुनः एक बार देखें जो कई क्षेत्रों में मानव के लालच, युद्ध आदि के कारण घायल है, जिससे कई प्रकार की बुराईयाँ और दुखद स्थिति उत्पन्न हो रही हैं, साथ ही साथ, प्राकृतिक आपदा और तबाही भी बढ़ रही है।

एक बेहतर विश्व के लिए एकजुटता

संत पापा ने इस बात को रेखांकित किया कि उन संकटों को उदासीनता एवं एकता की कमी के कारण और अधिक अनदेखा नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर, भाईचारे की गहरी भावना के द्वारा ही इसका समाधान किया जा सकता है। ईश्वर ने पृथ्वी की सृष्टि सभी की भलाई के लिए की है ताकि यह एक ऐसा स्वागत का स्थान बन सके जहाँ कोई भी बहिष्कृत महसूस न करे और हरेक अपने लिए एक घर पा सके।

आदिवासी, आशा की पुकार

संत पापा ने कहा कि आदिवासी अपने विभिन्न प्रकार की भाषाओं, संस्कृतियों, परम्पराओं, ज्ञान एवं पूर्वजों की पद्धति द्वारा सभी लोगों के लिए एक जागृति की पुकार बन जाएँ जो इस बात को स्पष्ट करता है कि मनुष्य प्रकृति का मालिक नहीं बल्कि उसकी देखभाल करने वाला है।  

संत पापा ने गौर किया कि आदिवासी लोग आशा के जीवित पुकार हैं। वे जानते हैं कि कि पृथ्वी को किस तरह से सुनना, देखना और छूना है। वे हमें याद दिलाते हैं कि मानव प्राणी की एक साक्षा जिम्मेदारी है कि वह आम घर की देखभाल करे और यदि कुछ निर्णयों के द्वारा उसका विनाश हुआ है तो यह अब भी देर नहीं हुई है कि हम उसे सीख लें तथा एक नई जीवनशैली अपनाएँ।

तकनीकी को गरीबों की सेवा में लगाना

संत पापा ने कहा कि एक उदार वार्ता एवं एकता की शक्ति द्वारा ही "हम इस बात को महसूस कर सकते हैं कि हमें एक-दूसरे की आवश्यकता है" तथा हानिकारक व्यवहार पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डालता है जिसने सह-अस्तित्व की शांति और सरलता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। संत पापा ने कहा कि आदिवासी इस अन्याय को अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकते। युवाओं को हमारी इस दुनिया से बेहतर, सुसंगठित विश्व एवं ठोस जवाब का अधिकार है।

संत पापा ने कहा कि हम अपने पूर्वजों की उस कहावत को न भूले, कि "ईश्वर हमेशा माफ कर देते हैं, इंसान कभी-कभी माफ करते हैं और प्रकृति कभी माफ नहीं करती।"

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14 February 2019, 16:35