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आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा  

हे पिता हमारे पर धर्मशिक्षा

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में “हे पिता हमारे” पर धर्मशिक्षा दी।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 02 जनवरी 2019 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में विभन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को “हे पिता हमारे” पर धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात एवं खुश नया साल।

ख्रीस्त जयंती के रहस्य से प्रकाशित होकर जिसे हमने फिलहाल ही मनाया है आइए हम “हे पिता हमारे” पर अपनी धर्मशिक्षा को आगे बढ़ायें।

संत मत्ती का सुसमाचार “हे पिता हमारे” की प्रार्थना को पर्वत प्रवचन के केन्द्र-विन्दु पर रखता है।(मत्ती.6.9-13) यहां हम येसु को झील के किनारे पर्वत के ऊपर जाते हुए सुनते, जहाँ वे बैठ जाते हैं। उनके चारों ओर उनके अति करीब रहने वाले शिष्यों के अलावे उनको सुनने वालों की भीड़ है। लोगों के इस मिश्रित भीड़ में येसु उन्हें “हे पिता हमारे” की प्रार्थना पर अपनी शिक्षा देते हैं।

पर्वत प्रवचन

यह स्थल अपने में अति महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां हम येसु के द्वारा लोगों को दी जाने वाली एक लम्बी शिक्षा के बारे में सुनते हैं जो “पर्वत प्रवचन” के नाम से जानी जाती है। (मत्ती. 5.1-7,27) हम येसु की मूलभूत शिक्षा को यहाँ संग्रहित पाते हैं। यहाँ येसु हमारे जीवन की खुशी के लिए धन्य बातों को मोतियों की श्रृंखला के रुप में हमारे लिए रखते हैं। वे धन्यताएं अपने में बहुमूल्य नहीं समझे जाते हैं। धन्य हैं वे जो गरीब हैं, दीन-हीन हैं, दयालु हैं, हृदय के कोमल हैं... संत पापा ने कहा कि यह सुसमाचार है और जहाँ सुसमाचार है वहाँ हम एक क्रांति को पाते हैं। यह अपने में चुप नहीं रहता वरन् हमें प्रेरित करता है। हम सभी जो एक दूसरे को प्रेम करने के योग्य हैं, इस धरा पर शांति स्थापित करने की क्षमता रखते हैं ईश्वर के राज्य की स्थापना में अपना हाथ बंटाते हैं। यहां येसु हम सभों से मानो यह कह रहे हैं कि हमारे हृदयों में ईश्वर का जो प्रेम और क्षमा का रहस्य प्रकट किया गया है उसे हमें अपने जीवन के द्वारा प्रसारित करना है।

संत पापा ने कहा कि यहां हम इतिहास में सुसमाचार की नवीनता को पाते हैं। नियमों को हमें खत्म करने के बदले नये रुप में परिभाषित करने की जरुरत है जो हमें उनके मूल अर्थ की ओर ले जाती है। यदि एक व्यक्ति का हृदय अच्छा है तो वह ईश्वर के प्रेम से उत्प्रेरित होते हुए ईश्वर के वचनों को अपने जीवन में आत्मसात करता है। प्रेम की कोई सीमा नहीं है, हम पति-पत्नी के रुप में एक दूसरे को प्रेम करते हैं, अपने मित्रों और यहां तक की अपने शत्रुओं को एक आयाम में प्रेम करते हैं। लेकिन येसु हमें कहते हैं,“मैं तुम से कहता हूँ अपने शत्रुओं से प्रेम करो और जो तुम पर अत्याचार करते हैं उनके लिए प्रार्थना करो। इस से तुम अपने स्वर्गिक पिता की संतान बन जाओगे, क्योंकि वह भले और बुरे, दोनों पर पानी बरसाता है।” (मत्ती.5. 44-45)

संत पापा ने कहा कि पर्वत प्रवचन में यहाँ हम उस महान रहस्य को पाते हैं जो हमें स्वर्गीय पिता की संतान बनने को कहता है। संत मत्ती रचित सुसमाचार के इस अध्याय में हम अपने लिए नौतिक शिक्षा को पाते हैं जो हमें अव्यावहारिक लगते और उससे भी बढ़कर यह एक ईशशस्त्रीय शिक्षा है।  एक ख्रीस्तीय के रुप में हम दूसरों से उत्तम नहीं हैं बल्कि हम अपने में दूसरों की तरह पापी होने का एहसास करते हैं। ख्रीस्तीय अपने में वह व्यक्ति है जो अपने को जलती हुई नई झाड़ी के सामने रखते हुए ईश्वर को “पिता” कहकर पुकारने का साहस करता है जहाँ वह अपने को उनकी शक्ति से नवीकृत पाता और ईश्वरीय अच्छाई से प्रेरित होकर दुनिया में सुसमाचार का वाहक बनता है।

दो बातों से सावधान

इस संदर्भ में हम येसु को अपने शिष्यों के लिए “हे पिता हमारे” प्रार्थना पर शिक्षा देते हुए सुनते हैं। वे उन्हें दो चीजों के प्रति सावधान करते हैं- पहला वे उन्हें फरीसियों की तरह पेश आने से माना करते हैं। “ढ़ोगियों की तरह प्रार्थना नहीं करो। वे सभागृहों में और चौकों पर खड़ा होकर प्रार्थना करना पसंद करते हैं, जिससे लोग उन्हें देखें।” (मत्ती. 6.5) संत पापा ने कहा कि बहुत से लोग हैं जो नास्तिक प्रार्थना करते हैं, वे लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं। हम अपने जीवन में कितनी बार उन लोगों को देखते हैं जो रोज दिन गिरजा जाते या दिन भर वहाँ रहते लेकिन वहाँ से निकलने के बाद दूसरों की बुराई करते या दूसरों से घृणा करते हैं। यह अपने में एक निंदनीय बात है। अच्छा होता वे गिरजा ही नहीं जाते, और अविश्वासियों की तरह ही अपना जीवन व्यतीत करते। संत पापा ने कहा कि यदि आप गिरजा जाते हैं तो ईश्वर की संतान के समान जीवन यापन करें। एक भाई की भांति जीवन यापन करते हुए एक सच्चा उदाहरण दें न कि गलत उदाहरण। ख्रीस्तीय की प्रार्थना वास्तव में अपने जीवन के द्वारा साक्ष्य देना है जो ईश्वर से हमारे संबंध, वार्ता स्वरुप होती है। “जब तुम प्रार्थना करते हो, तो अपने कमरे में जाकर द्वार बंद कर प्रार्थना करो। तुम्हारा पिता एकांत को भी देखता है।” (मत्ती.6.6)

इसके बाद येसु अपने शिष्यों से कहते हैं,“प्रार्थना करते समय गैर-यहूदियों की तरह रट नहीं लगाओं। वे समझते हैं कि लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएँ करने से हमारी सुनवाई होती है।” (मत्ती.6.7) यहां येसु हमारा ध्यान पुराने व्यवस्थान की ओर कराते हैं जहाँ देवताओं को खुश करने हेतु उनकी प्रशंसा की जाती थी। हम पर्वत कार्मेल के उस दृश्य की याद करें जहाँ नबी एलिजा ने बाल देवताओं के पुरोहितों को चुनौती दी। उन्हें अपने देवताओं से प्रार्थना करते हुए शोरगुल करते हुए नाचा-गाया जबकि एलिजा शांत भाव से अपने ईश्वर से विनय करते और ईश्वर उनके लिए अपने को प्रकट करते हैं। गैर-यहूदी अपने में यह सोचते हैं कि शब्द का उच्चारण करना, अपने में बोलना औऱ बोलना ही प्रार्थना करना है। संत पापा ने कहा कि हम ख्रीस्तियों के बारे में भी सोच सकते हैं जो तोते के समान ईश्वर से बातें करते हैं। प्रार्थना हमारे हृदय की गहराई, अन्दर से निकलती है। येसु हमें कहते हैं,“जब तुम प्रार्थना करते हो तो पुत्र की भांति पिता की ओर अभिमुख हो, जो तुम्हारे मांगने से पहले ही जानते हैं कि तुन्हें किन-किन चीजों की जरूरत है। (मत्ती.6.8) अपनी शांति में केवल “हे पिता” उच्चरित करना ही हमारे लिए काफी है। यह हमें उनकी नजरों में रखता है।

ईश्वर को बलिदान की चाह नहीं

संत पापा ने कहा कि हमारे लिए यह जानना उचित है कि ईश्वर की कृपा प्राप्त करने हेतु हमें उन्हें कोई बलिदान चढ़ाने की जरुरत नहीं है। उन्हें हमारी ओर से कुछ नहीं चाहिए। हमारे ईश्वर, हमारी प्रार्थना में हम से सिर्फ यही चाहते हैं कि हम उनके साथ एक वार्ता में बने रहें जहाँ हम अपने को उनकी प्यारी संतान के रुप में सदैव पाते हैं। वे हमसे बेशुमार प्रेम करते हैं।  

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

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02 January 2019, 14:18