जेसु के जेस्विट विद्यार्थियों एवं शिक्षकों से मुलाकात करते संत पापा जेसु के जेस्विट विद्यार्थियों एवं शिक्षकों से मुलाकात करते संत पापा 

येसु समाजी धर्मबंधुओं को संत पापा की सलाह

संत पापा फ्राँसिस ने 3 दिसम्बर को रोम स्थित अंतरराष्ट्रीय जेस्विट कॉलेज "जेसु" के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों से कॉलेज (हॉस्टेल) की स्थापना की 50वीं वर्षगाँठ पर मुलाकात की।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 4 दिसम्बर 2018 (रेई)˸ संत पापा ने सोमवार को अंतरराष्ट्रीय जेस्विट कॉलेज "जेसु" के 60 विद्यार्थियों एवं शिक्षकों से मुलाकात की तथा उन्हें येसु पर स्थापित होने एवं ईश्वर की महत्तर महिमा के लिए बढ़ने तथा परिपक्व बनने हेतु प्रोत्साहन दिया।

विश्वभर के जेस्विट धर्म बंधुओं के लिए समर्पित निवास "जेसु" (येसु) की स्थापना 50 वर्षों पहले सन् 1968 ई. में पूर्व जेस्विट सुपीरियर जेनेरल फादर पेद्रो अरूपे के पहल पर की गयी थी।

येसु पर स्थापित

संत पापा फ्राँसिस स्वयं एक येसु समाजी हैं उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि स्वर्ण जयन्ती मनाने का अर्थ है मूल एवं आवश्यक बातों की ओर पीछे लौटना, येसु पर स्थापित होना, उनके जीवन को अपनाना, दृढ़ बनना, अपने जीवन में आने वाले प्रलोभनों को स्पष्ट रूप से न कहना तथा सेवा कराना नहीं बल्कि सेवा करना।

उन्होंने कहा कि प्रशिक्षित होने का अर्थ है सबसे पहले येसु पर स्थापित होना, उनके समान सेवा में समर्पित होना, अपने को खाली कर पाना तथा अपमान, अत्याचार एवं बदनामी का सामना करने के लिए तैयार रहना, जिस तरह येसु मरने तक आज्ञाकारी बने रहे।  

संत पापा ने संत फ्राँसिस जेवियर के पर्व दिवस पर उनके शब्दों का स्मरण दिलाते हुए कहा, "मैं आप लोगों से आग्रह करता हूँ कि आप ईश्वर में पूर्ण रूप से आधारित हों।"

उन्होंने याद किया कि जेसु समुदाय के पास ही जेस्विट सोसाईटी के संस्थापक संत इग्नासियुस लोयोला भी रहते थे तथा वहीं से उन्होंने धर्मसमाज के संविधान की रचना की और अपने प्रथम साथियों को मिशन के लिए विश्व के विभिन्न हिस्सों में भेजा। उन्होंने कहा कि आप नर्सरी के रूप में दुनिया के विभिन्न हिस्सों से यहाँ लाये गये हैं और बाद में रोम से विभिन्न देशों में भेजे जायेंगे।   

विकास

इस अवधि में जेसु कॉलेज में जेस्विट विद्यार्थियों को निमंत्रण दिया जाता है कि वे बढ़ें तथा गहराई तक जड़ जमायें। जड़ जमाने का अर्थ है अपने हृदय को ईश्वर के साथ गहराई से जोड़ना ताकि यह स्पष्ट एवं पूर्ण उत्साह के साथ विकास कर सके एवं उनका प्रत्युत्तर दे सके। उस उत्साह की आग के साथ जो हमारे अंदर सकारात्मक तनाव से जलती एवं हर प्रकार के मध्यमार्ग को "न" कह सकती है।

संत पापा ने चेतावनी दी कि यदि हृदय नहीं फैलेगा जो अपक्षय हो जायेगा। यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि यदि हम नहीं बढ़ते हैं तो मुरझा जाते हैं।

संत पापा ने जेस्विटों का आह्वान किया कि वे संकट से न घबरायें क्योंकि उसके बिना विकास संभव नहीं है। पेड़ की छटनी के बिना उसमें फल नहीं लगता तथा संघर्ष के बिना विजय प्राप्त नहीं की जा सकती है। जड़ जमाने एवं विकास करने का अर्थ है हर प्रकार की दुनियादारी भावनाओं से लड़ना, जिनमें सबसे बुरी भावना है याजकवाद। यदि भौतिकता हमारे मूल को प्रभावित कर रहा है तो इसका अर्थ है कि हम कुछ भी फल उत्पन्न नहीं कर पायेंगे। विकास सतत् होता है अतः हमें अहम से लड़ना चाहिए।

संत पापा ने बतलाया कि स्वतंत्रता एवं आज्ञापालन विकास के दो चिन्ह हैं। उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त कर रहें धर्म बंधुओं से आग्रह किया कि वे विविधता में एकता को बनाये रखें, अपने को स्वतंत्र करें तथा अपने अहम से संघर्ष करें और इन सभी कार्यों के बीच प्रार्थना का त्याग न करें। जिस तरह येसु के लिए पिता की इच्छाओं को पूरा करना उनका भोजन था उसी तरह हमारे जीवन को प्रार्थना द्वारा पोषित होना चाहिए।

परिपक्वता

ख्रीस्त में स्थापित होने एवं बढ़ने के बाद आती है परिपक्वता जिसका चिन्ह है फल उत्पन्न करना। यह वहीं प्रकट होता है जहाँ एक जेस्विट मिशन के लिए भेजा जाता तथा वहाँ परिस्थितियों का सामना करता है और ईश्वर के प्रेम की याद कर दुनिया की देखभाल करता है। एक येसु समाजी सुदूर इलाकों और मानवता के रेगिस्तान में सबसे जटिल चौराहों पर जाने से लिए बुलाया जाता है। वह भेड़ियों के बीच भेड़ के समान है ताकि गड़ेरिया उन्हें अपने साथ रख सके।  

संत पापा ने कहा कि पढ़ाई में जोश एवं अनुशासन के द्वारा मिशन को उत्साह मिलती है जिससे वचन एवं सांत्वना देने की प्रेरिताई को लाभ हो सके। मिशन में वे उस शरीर का स्पर्श करें जो आदि में शब्द था और जिसने शरीर धारण किया। संत पापा ने कहा कि वे ख्रीस्त के पीड़ित शरीर की सेवा करें तथा उन्हें क्रूसित येसु के पास लायें, इस तरह वे धीरज एवं आशा द्वारा परिपक्व होंगे।

अंततः संत पापा ने शुभकामनाएँ दी कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय जेसु, जीने की कला का एक सक्रिय अखाड़ा बना रहे तथा एक-दूसरे का भार, उनकी कमजोरी, इतिहास, संस्कृति एवं यादगारी को वहन करे।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

04 December 2018, 17:07