चरनी पर पड़े बालक येसु की आराधना करते संत पापा चरनी पर पड़े बालक येसु की आराधना करते संत पापा 

बेतलेहेम का बालक जीवनदाता, संत पापा

योसेफ अपनी पत्नी मरियम के साथ दाऊद के नगर गया जो बेतलेहेम कहलाती थी। आज की रात हम भी बेतलेहेम चलते हैं जिससे हम ख्रीस्त आगमन के रहस्य को जान सकें।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

बेतलेहेम का अर्थ ऱोटी का घर है। इस “घर” में येसु सारी मानवजाति से मिलने हेतु आते हैं। वे जानते हैं कि हमें जीवित रहने हेतु रोटी की आवश्यकता है। वे यह भी जानते हैं इस दुनिया में अपनी आवश्यकताओं की पूर्णतः हमारे हृदय को संतोष प्रदान नहीं करती है। धर्मग्रंथ में आदी पाप का संबंध मुख्य रूप से खाने को लेकर ही है, जिसे हम उत्पत्ति ग्रंथ में पाते हैं, “हमारे पहले पुरखों ने फल को तोड़ा और खा लिया। मानव अपने में लालची और लोभी बनता है। वर्तमान में बहुत से लोगों के जीवन का अर्थ धन जमा करने में हैं वे अपने को भौतिक वस्तुओं में असक्त पाते हैं। आज मानव इतिहास में हम कुछ लोगों को शाही दावत उड़ाते देखते वही अधिकांश लोग हैं जिन्हें अपनी जीविका चलाने हेतु रोज दिन की रोटी भी नसीब नहीं होती है।

प्रेम जीवन का भोज

 

बेतलेहेम हमारे लिए वह परिवर्तन की मोढ़ है जो इतिहास को बदल देती है। हम वहाँ रोटी के घर में ईश्वर के पुत्र को चरनी में जन्म लेता देखते हैं। यह ऐसा प्रतीत होता है मानो वे कह रहे हों, “देखो, मैं तुम्हारी रोटी हूँ।” वे अपने लिए नहीं लेते वरन् हमें खाने को देते हैं, वे किसी वस्तु को हमें नहीं देते बल्कि स्वयं को हमें अर्पित करते हैं। बेतलेहेम में हम इस बात को पाते हैं कि वे हमसे जीवन नहीं लेते बल्कि अपना जीवन हमें देते हैं। हम जो अपने जन्म से ही खाने के आदी हैं येसु हमें कहते हैं, “लो और खाओ, यह मेरा शरीर है।” (मत्ती. 26.26) बेतलेहेम का छोटा बालक हमें अपने जीवन को नये रुप में जीने हेतु कहते हैं, वे हमें अपने लिए जमा करने औऱ निगलने की बात नहीं कहते वरन् हमें देने और अपने जीवन को साझा करने को कहते हैं। वे अपने को हमारे लिए छोटा बनाते हैं जिससे वे हमारे लिए भोजन बन सकें। जीवन की रोटी के रुप में उन्हें ग्रहण करते हुए हम प्रेम में पुनर्जीवित हो सकते हैं और अपने जीवन के लोभ और संग्रहित करने के मनोभाव से ऊपर उठ सकते हैं। “रोटी के घऱ” से येसु हमें अपने घरों में लाते हैं जिससे हम ईश परिवार और अपने पड़ोसियों के लिए भाई-बहन बन सकें। चरनी के सामने खड़ा होने से हम अपने में इस बात को समझते हैं कि जीवन का भोज भौतिक रुप में धनी होना नहीं वरन प्रेम है, यह हमारा पेटूपन नहीं वरन करुणा है, हमारा दिखावा नहीं बल्कि हमारी सरलता है।

ईश्वर जानते हैं कि हमें रोज दिन खाने की जरूरत है। यही कारण है कि वे हमें अपने जीवन को रोज दिन देते हैं जिन्हें हम बेतलेहेम की चरनी से लेकर येरुसलेम की अंतिम व्यारी तक पाते हैं। आज भी वे इस वेदी पर रोटी बनकर अपने को तोड़ते हैं, वे हमारे दरवाजों को खटखटाते हैं जिससे वे हमारे यहाँ आते हुए भोजन कर सकें। (प्रका. 3.20) ख्रीस्त जयंती में हम स्वर्ग की रोटी येसु को धरती में ग्रहण करते हैं। यह रोटी अपने में कभी बासी नहीं होती है बल्कि हमें अनंत जीवन के स्वाद की अनुभूति प्रदान करती है।

बेतलेहेम में हम ईश्वर के जीवन को हमारे हृदयों में प्रवेश करता और हमारे साथ रहता हुए देखते हैं। यदि हम उस उपहार का स्वागत करते तो हमारे जीवन का इतिहास परिवर्तित होने लगता है। येसु का हमारे दिल में आना हमें अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से बाहर निकलने में मदद करता और वे हमारे जीवन का केंन्द बन जाते हैं। आज जब हम बेतलेहेम जाने के बुलावे को अपने लिए सुनते हैं तो हम अपने आप से पूछें, मेरे जीवन की रोटी क्या हैॽ वह कौन-सी चीज है जिसके बिना मैं जीवित नहीं रह सकताॽ क्या वे ईश्वर हैं या और कोई दूसरी चीजॽ और जब हम गोशाले में प्रवेश करते हैं तो हम नवजात बालक येसु की निर्धनता का अनुभव करें, उनकी सरलता को निहारते हुए हम अपने आपसे पूछे, क्या सचमुच मुझे जीवन में इन सारी भौतिक वस्तुओं और जटिल चीजों की जरुरत हैॽ क्या मैं इन सारी अनावश्यक वस्तुओं के बिना एक साधरण जीवन व्यतीत नहीं करता हूँॽ बेतलेहेम में लेटे बालक येसु की अगल-बगल हम मरियम, योसेफ औऱ चरवाहों को देखते हैं जिन्होंने अपनी यात्रा की है। येसु यात्रा की रोटी है। वे लम्बे भोज को पसंद नहीं करते वरन हमें अपनी मेज से तुरंत उठकर दूसरों की सेवा करने को कहते हैं जैसे कि रोटी जो दूसरों के लिए तोड़ी जाती है। हम अपने आपसे से पूछें, क्या मैं अपनी रोटी को उनके साथ साझा करता हूँ जिनके पास कुछ भी नहीं हैॽ

दाऊद के घराने पर चिंतन

बेतलेहेम, रोटी के घर पर चिंतन करने के बाद हम दाऊद के घराने पर चिंतन करते हैं। युवा दाऊद अपने में एक चरवाहा था जिसे ईश्वर ने अपने लोगों की देखभाल करने हेतु नेता के रुप में चुना था। दाऊद के नगर में, ख्रीस्तमस के समय चरवाहों ने येसु का स्वागत किया जो इस दुनिया में आये। उस रात को जैसा कि सुसमाचार हमें बतलाता है, “वे भयभीत थे”, लेकिन स्वर्गदूत ने उनसे कहा “आप न डरें”। हम इस वाक्य को सुसमाचार में कितनी बार सुनते हैं, “न डरें।” ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर हमारी खोज करते हुए हमेशा इस बात को दुहराते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हम शुरू से ही अपने पाप के कारण ईश्वर से भयभीत थे। पाप करने के उपरांत आदम ने कहा, “मैं डर के मारे छिप गया।” (उत्प.3.10) बेतलेहेम इस भय का उपचार है क्योंकि मानव के बारंबार “न” कहने पर भी ईश्वर उन्हें “हाँ” कहते और स्वीकारते हैं। वे सदा हमारे साथ रहेंगे। मत डरो ये वाक्य संतों के लिए वरन् चरवाहों के लिए कहा गया था जो अपनी धार्मिकता के बावजूद अपने में अनजान थे। दाऊद के पुत्र का जन्म चरवाहों के बीच में हुआ जो हमें यह बतलाता है कि कोई फिर कभी अपने में अकेला और परित्यक्त नहीं रहेगा। हमारे लिए एक चरवाहे हैं जो हमारे डर पर विजयी होते और हमें प्रेम करते हैं।

चरवाहों की तत्परता

बेतलेहेम के चरवाहे भी हमें यह बतलाते हैं कि हम कैसे येसु से मिलने जायें। वे रात के समय पहरा देते थे, वे सोते नहीं थे लेकिन येसु के कथन का अनुपालन करते जैसे कि वे हमें हमेशा कहते हैं, “जागते रहो।” (मत्ती. 25.13, मार.13.35, लूका 21.36) वे रात को अपने में जागरुक और सतर्क थे और ईश्वर की ज्योति उनके चारों ओर चमकी।(लूका. 2.9) यह हमारे साथ भी होता है। हम अपने जीवन के दुःख-तकलीफों और मुसीबतों में ईश्वर के आने की प्रतीक्षा करते हैं जिससे हम उनके जीवन प्राप्त कर सकें। हमारा इंतजार करना ईश्वर को प्रिय है, अतः हम आराम से सोते हुए उनका इंतजार नहीं कर सकते हैं। अतः चरवाहे “शीघ्रता से” निकल पड़ते हैं जैसे कि हमें बतलाया जाता है। वे उनके समान खड़ा होकर प्रतीक्षा नहीं करते जो यह कहते हैं कि हम तो पहुँच गये हैं और हमें कुछ नहीं करना है, बल्कि वे अपने भेड़ों को असुरक्षित छोड़, ईश्वर के लिए जोखिम उठाते हैं। इस तरह येसु से अपनी भेंट के उपरांत वे उनके जन्म की उद्घोषणा करते हैं “जो उनकी बातों को सुनते उन्हें आश्चर्य का ठिकाना नहीं होता है।” (18)

संत पापा ने कहा कि प्रतीक्षा करना, निकल पड़ा, जोखिम लेना और सुन्दरता का बखान करना अपने में प्रेमपूर्ण कार्य की निशानी है। भला चरवाहा जो ख्रीस्तसम के समय अपनी भेड़ों के लिए जीवन देने आता है वे पास्का के समय पेत्रुस को और उनके द्वारा हम सभों से यह पूछते हैं,“क्या तुम मुझे प्रेम करते होॽ” (यो.21.15) भविष्य में भेड़ों की स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि हम इस सवाल का उत्तर कैसे देते हैं। आज की रात हमें येसु को अपना उत्तर “मैं प्रेम करता हूँ” कहते हुए देना है। हम प्रत्येक का उत्तर सारी भेड़शाला के लिए जरुरी है।

“आइए हम अब बेतलेहेम चलें।” (लूका. 2.15) इन वचनों के साथ चरवाहे निकल पड़े। येसु, हम भी बेतलेहेम जाने की चाह रखते हैं। आज भी हमारे लिए राह ऊंची हैं, हमारे स्वार्थ की ऊंचाई को नीचा करना है और हमें अपने पैरों को दुनियादारी और भौतिकतावाद में गिरने से बचाये रखना है।

मैं बेतलेहेम आना चाहता हुए, हे प्रभु क्योंकि तू मेरी प्रतीक्षा करता है। मैं इस बात का अनुभव करना चाहता हूँ चरनी में पड़ा तू मेरे जीवन की रोटी है। मैं तेरे करूणामय प्रेम की खुशबू की चाह रखता हूँ जिससे मैं अपने को रोटी स्वरूप दुनिया के लिए तोड़ सकूं। मुझे अपने कंधों में उठा ले, भले चरवाहे, तेरे प्रेम से प्रेरित हो कर मैं अपने भाई-बहनों को प्रेम कर और उनकी ओर अपना हाथ बढ़ा सकूं और तब यह मेरे लिए ख्रीस्त जयंती होगा जहाँ मैं यह कह सकूंगा, “प्रभु आप सभी चीजों को जानते हैं, आप जानते हैं कि मैं आपको प्यार करता हूँ।” (यो.21.17) 

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25 December 2018, 13:56