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बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा फ्रांसिस बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा फ्रांसिस 

ईश्वर से विश्वास में निवेदन करें

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के दौरान “हे पिता हमारे” प्रार्थना के संबंध मेें ईश्वर से विश्वास पूर्ण निवेदन करने की शिक्षा दी।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 12 दिसम्बर 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में विभन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को “हे पिता हमारे” पर धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

हम “हे पिता हमारे” प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा माला को जारी रखते हैं जिसकी शुरूआत हमने पिछले सप्ताह की थी। येसु अपने शिष्यों को एक छोटी, साहसिक प्रार्थना करना सिखलाते हैं जहाँ हम सात सवालों को पाते हैं जो कि धर्मग्रंथ में एक पूर्णतः को दिखलाती है। संत पापा ने कहा कि मैं इसे साहसिक प्रार्थना कहता हूँ क्योंकि यदि इसे येसु ख्रीस्त ने हमें नहीं सिखाया होता तो शायद हममें से कोई भी यहाँ तक की प्रसिद्ध ईशशस्त्रीगण भी ईश्वर से ऐसी प्रार्थना करने का साहस नहीं करते।

प्रभु की प्रार्थना में प्रस्तावना नहीं

वास्तव में येसु अपने शिष्यों को ईश्वर के पास विश्वास के साथ आते हुए कुछ निवेदन करने का निमत्रंण देते हैं जो सर्वप्रथम ईश्वर से संबंधित है और इसके बाद हम सभों से। “हे पिता हमारे” की प्रार्थना में कोई प्रस्तावना नहीं है। हम इस पर गौर करें। येसु हमें प्रार्थना के सूत्रों को नहीं सिखलाते हैं बल्कि वे अपने शिष्यों को अधीनता और भय के दायरे से बाहर निकल कर प्रार्थना करने की शिक्षा देते हैं। वे उनसे यह नहीं कहते कि ईश्वर की ओर अभिमुख होते हुए उन्हें “सर्वव्यापी” या “सर्वशक्तिमान” के रुप में पुकारें, जो हमसे बहुत दूर हैं और हम अपने में दीन-दुःखी हैं...नहीं। वे हमें ऐसा कभी नहीं कहते हैं। लेकिन वे हमें ईश्वर को अपनी सर्वसधारणतः में “पिता” कह कर पुकारने की शिक्षा देते हैं जैसे बच्चे अपने पिता की ओर अभिमुख होते हैं। शब्द “पिता” हमारे लिए विश्वास और संतानों के रुप में हमारे भरोसे को व्यक्त करता है।

मानवीय सच्चाई की अभिव्यक्ति

संत पापा ने कहा कि “हे पिता हमारे” प्रार्थना का मूलसार ठोस रुप में मानवीय सच्चाई है। उदारहण के लिए वे हमें अपने लिए रोटी मांगने को कहते हैं जो हमारे लिए प्रतिदिन की आवश्यकता है। यह सधारण लेकिन हमारी महत्वपूर्ण जरूरत है जो हमें यह बतलाती है कि विश्वास अपने में “श्रृंगार” की वस्तु नहीं, जो हमारे जीवन में जरूरत की अन्य चीजों की पूर्ति होने पर जीवन से अलग हो जाता हो। कुछ भी हो, प्रार्थना हमारे जीवन से ही शुरू होती है। येसु हमें इस बात की शिक्षा देते हैं कि प्रार्थना हमारे जीवन में पेट भरने के उपरांत नहीं होती वरन इसकी शुरूआत लोगों में उस समय होती है जब वे अपने को भूखा पाते, कठिनाइयों से जूझ रहे होते, अपने को मुश्किलों और तकलीफों में पड़ा हुआ पाते हैं।

येसु ख्रीस्त प्रार्थना के माध्यम हमारे सब दुःख तकलीफों, अशांति को ईश्वर की ओर उन्मुख करते हुए उन्हें वार्ता में परिणत कर देते हैं। विश्वास का होना, किसी ने कहा है कि अपने में चिल्लाने की आदत के समान है।

बरथोमेयुस के समान बनें

संत पापा ने कहा कि हम सभों को सुसमाचार के बरथोमेयुस के समान होने की आवश्यकता है। (मार.10.46-52) थिमेयुस का वह पुत्र जो अपने में अंधा था येरीखो के मार्ग में भीख मांगा करता था। उसके अगल-बगल बहुत से लोग थे जिन्होंने उसे चुप करने की कोशिश की। “शांत रहो। येसु इधर से गुजर रहें हैं। चुप रहो। तंग मत करो। प्रभु को बहुत सारी चीजें करनी हैं उसे तंग मत करो। तुम शोर मचाते हुए उन्हें परेशान कर रहे हो। उन्हें तंग मत करो।” लेकिन उसने इन सारी बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसमें एक नेक इच्छा थी जिसके फलस्वरुप वह इस बात की चाह रखता था कि उसकी करुणामय स्थिति येसु को पता चले। लेकिन लोगों के मना करने पर भी वह और जोर से चिल्लाया क्योंकि वह अपने में देखने की इच्छा, अपने में चंगाई प्राप्त करना चाहता था। “येसु, मुझ पर दया कीजिए।” संत पापा ने कहा कि येसु उसे आंखों की रोशनी प्रदान करते हुए कहते हैं, “तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है” मानो वे हमें इस बात को बतलाना चाहते हैं कि उसकी चंगाई का मुख्य कारण उसकी निवेदन प्रार्थना थी। प्रार्थना न केवल हमें स्वतंत्रता प्रदान करती बल्कि यह हमें अपने निराश भरे क्षणों से बाहर निकलने में मदद करती है।

विश्वासी भी निश्चित रुप में अपने में यह अनुभव करते हैं कि वे ईश्वर की महिमा करें। सुसमाचार में हम येसु को स्वयं पिता की महिमा करते हुए पाते हैं, वे अपने पिता की स्तुति करते हैं। (मत्ती.11.25-27) प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय ने “हे पिता हमारे” प्रार्थना के उपरांत ईश्वरीय स्तुति गान में इसे जोड़ दिया, “क्योंकि तेरा राज्य तेरा सामर्थ्य और तेरी महिमा अनंत काल तक बनी रहती है।”

निवेदन प्रार्थना, वास्तविक प्रार्थना

संत पापा ने कहा कि किसी ने अतीत में निवेदन प्रार्थना को अपने में कमजोर विश्वास के रुप में घोषित किया है जबकि वास्तविक प्रार्थना उसे कहा गया है जहाँ हम किसी वस्तु की चाह किये बिना ईश्वर का स्तुति गान करते हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन यह सत्य नहीं है। निवेदन की प्रार्थना हमारे लिए वास्तविक प्रार्थना है। यह हमारी स्वाभाविक प्रार्थना है। यह ईश्वर के प्रति हमारे विश्वास को व्यक्त करता है जो हमारे लिए पिता के समान हैं, जो अच्छे हैं औऱ सर्वशक्तिमान हैं। यह हमारे विश्वास की अभिव्यक्ति है जहाँ हम अपने को छोटा, पापी और जरूरतमंद के रुप में पाते हैं।  यही कारण है कि प्रार्थना में निवेदन करना अपने में नेक है। ईश्वर पिता हैं जिनके हृदय में हमारे लिए आपार प्रेम है। वे हमसे चाहते हैं कि हम बिना भय उनके साथ सीधे तौर पर बातें करें। “पिता मैं कठिनाइयों में हूँ, लेकिन प्रभु मैं क्या कर सकता हूँॽ” इस तरह हम उनसे प्रत्यक्ष रुप में बातें करें। हम उन्हें अपने जीवन की सारी बातों को बता सकते हैं जो हमारी समझ के परे और हमारे नियंत्रण से बाहर है। वे हमसे प्रतिज्ञा करते हैं कि वे सदा हमारे साथ रहेंगे इस दुनिया में हमारे जीवन के अंत तक। अतः हम अपने ईश्वर को “पिता” कह कर पुकारें। वे हमें समझते हैं और हमें अत्यधिक प्रेम करते हैं। इतना कहने के बाद उन्होंने अपनी धर्मशिक्षा माला का समाप्त की और सभों के संग प्रभु की विन्ती का पाठ करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

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12 December 2018, 15:37