आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा  

हे प्रभु मुझे प्रार्थना करना सिखलाईये, संत पापा

बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस ने प्रभु की विन्ती पर अपनी धर्मशिक्षा माला शुरू की।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 05 दिसम्बर 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में विभन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को प्रभु की विन्ती पर धर्मशिक्षा माला की शुरूआत करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

आज हम “हे पिता हमारे” प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा माला की शुरूआत करेंगे।

सुसमाचारों में हम येसु को प्रार्थनामय जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्तित्व के रुप में पाते हैं। संत पापा ने कहा, “येसु प्रार्थना करते थे।” अपने प्रेरितिक कार्यों की व्यस्तता और जनता के द्वारा खोजे जाने के बावजूद वे अपने लिए इस बात का अनुभव करते हैं कि उन्हें एकांत में प्रार्थना करनी चाहिए। संत मारकुस इस बात का जिक्र अपने सुसमाचार में प्ररांभ से ही करते हैं। (मार.1.35) काफरनाहूम में येसु द्वारा की गई दिन की शुरुआत एक विजय से समाप्त होती है। दिन ढ़ल जाने पर लोगों की भीड़ जो कई विभिन्न तरह की बीमारियों के ग्रस्ति थे येसु के द्वार पर आते हैं, मसीह उन्हें संदेश देते हुए चंगाई प्रदान करते हैं। रोगग्रस्त लोग येसु को अपने निकट पाते वे उनमें ईश्वर की उपस्थिति को देखते है जो चंगाई प्रदान करने वाले हैं। नाजरेत के नबी के पास लोगों की यह भीड़ अन्य स्थानों की तुलना से थोड़ी कम थी।

जनता के प्रति असक्ति नेताओं की कमजोरी

ऐसी परिस्थिति में भी वे अपने को जनसमूह से अलग करते हैं यद्यपि लोग उन्हें अपने लिए एक नेता के रुप में देखते हैं। संत पापा ने कहा कि अगुवों के लिए यही एक तरह का खतरा हो जाता है, कि वे अपने को लोगों के प्रति असक्त पाते हैं, वे अपने को उनसे अलग करना नहीं चाहते हैं। येसु अपने में इस बात का अनुभव करते और वे अपने को लोगों से अलग करते हैं। कफरनाहूम में येसु शुरू से ही एक असल मुक्तिदाता के रुप में प्रमाणित होते हैं। रात के अंतिम बाद जब सुबह होने लगती तो चेले येसु को खोजते हैं लेकिन वे उन्हें नहीं पाते हैं। वे कहाँ चले गयेॽ अंततः पेत्रुस येसु को एक निर्जन स्थान में प्रार्थना में तल्लीन पाते हैं। वे येसु से कहते हैं,“सब लोग आप को खोज रहे हैंॽ” (मार.1.37) यह आश्चर्यजनक वाक्य इस बात को सत्यापित करता है कि येसु का प्रेरितिक कार्य अपने में कितना सफल रहा है।

लेकिन येसु अपने शिष्यों से कहते हैं कि उन्हें अन्य दूसरे स्थानों में जाना चाहिए जिससे लोग उन्हें न खोजे वरन् वे उन्हें खोजे जिनको उनकी जरुरत है। यह उन्हें एक स्थान पर जड़ित न करें बल्कि वे एक तीर्थयात्री की तरह निरंतर गलीलिया की राहों में चलते रहें।(38-39) यह उन्हें पिता की ओर भी अग्रसर करे जो कि प्रार्थना है। वे प्रार्थना के माध्यम से अपने पिता से अपने को संयुक्त करते हैं। संत पापा ने कहा कि ये सारी चीजों रात की प्रार्थना में होती है।

प्रार्थना करना सहज नहीं

येसु प्रार्थना के माध्यम से येसु अपने को पिता के साथ घनिष्ट रुप में संयुक्त करते हैं जिसका जिक्र सुसमाचार हमारे लिए करता है। प्रार्थना में पिता से प्रेरित वे अपने जीवन की सारी चीजों को निर्देशित करते हैं। गेतसेमानी बारी में रात भर प्रार्थना करना हमें इसका उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह येसु की यात्रा का अंतिम भाग है जो अपने में बहुत कठिन है जहां वे पिता की योजना के प्रति अपने को सदैव खुला रखते और अपना समय उनके साथ व्यतीत करते हैं। संत पापा ने कहा कि प्रार्थना करना अपने में सहज नहीं है, यह सचमुच में एक “कठिन” परिस्थिति है यद्यपि यह जीवन के क्रूस भरे मार्ग में आगे बढ़ाने हेतु सहायक सिद्ध होता है। अतः यहाँ हम येसु की प्रार्थना की मुख्य बातों को पाते हैं।

येसु निरंतर प्रार्थना में संलग्न

येसु चौराहों में गंभीरता पूर्वक प्रार्थना करते थे, वे लोकधर्मियों की धर्मविधि में भाग लेते, वे जनसमूह संग  प्रार्थना करते थे, वे दुनिया के शोरगुल से अलग एकांत में अपने पिता से बातें करते जो उन्हें अपने हृदय के गहन विचारों से संयुक्त करता था। एक नबी के रुप में वे मरूभूमि के पत्थरों और पर्वतों की ऊंचाइयों से वाकिफ थे। संत पापा ने कहा कि क्रूस में अपने प्राण त्यागने के पूर्व येसु ने अंतिम प्रार्थना की जो कि स्तोत्र के शब्द थे, जिन्हें यहूदी अपनी प्रार्थना में उच्चरित करते थे, उन्हें उस प्रार्थना को किया जिसे उनकी माता ने उन्हें सिखाया था।

येसु की प्रार्थना

येसु ने प्रार्थना की जैसे कि दुनिया का हर व्यक्ति प्रार्थना करता है। फिर भी उनके प्रार्थना करने के तरीके में एक तरह का रहस्य था जो कि शिष्यों की आंखों से छुपा नहीं था, जिससे हम सुसमाचारों में सरल और साधारण निवेदन में पाते हैं, “प्रभु, हमें प्रार्थना करना सिखलाए।” (लूका.11.1) चेलों ने येसु को प्रार्थना करते हुए देखा था अतः वे उनकी तरह प्रार्थना करने की चाह रखते थे। येसु उनकी निवेदन को अस्वीकार नहीं करते हैं, वे अपने पिता के निकट रहने की उनकी आशा से ईर्ष्या नहीं करते बल्कि वे विशिष्ट रुप से अपने पिता से संबंध स्थापित करने हेतु सीखलाते हैं। इस तरह वे शिष्यों को प्रार्थना करने की शिक्षा देते और हम सभों के लिए एक शिक्षक बनते हैं। संत पापा ने कहा कि हमें भी येसु से यह कहें, “प्रभु मुझे प्रार्थना करना सिखलाईये।”

हमारे प्रार्थना के मनोभाव

यद्यपि हम वर्षों से प्रार्थना कर रहे हैं हमें सदैव प्रार्थना करने हेतु सीखना चाहिए। प्रार्थना करने के मनोभाव प्रार्थनामय जीवन व्यक्ति करने वाले एक व्यक्ति के हृदय में स्वतः ही जागृत होता है जो कि संसार के रहस्यों में एक अति घोर रहस्य है। हम वास्तव में यह नहीं जानते कि हमारी प्रार्थनाओं को ईश्वर सुनते हैं या नहीं। धर्मग्रंथ हमें उन अनुचित प्रार्थनाओं का उदाहरण पेश करता है जिसे ईश्वर अस्वीकार करते हैं। हम फरीसी औऱ नकेदार की प्रार्थनाओं के बारे में विचार कर सकते हैं। केवल नकेदार अपने हृदय में ईश्वरीय आशीष को प्राप्त कर अपने घर लौटता है क्योंकि फरीसी अपने में घमंड करता हुए लोगों को दिखाने हेतु प्रार्थना करता है, वह प्रार्थना करने का ढ़ोग करता है, उसका हृदय ठंढ़ा है। येसु हमें कहते हैं, “जो अपने को बड़ा समझता है वह छोटा किया जायेगा और जो अपने को छोटा समझता है वह अपने में बड़ा बनाया जायेगा।” (लूका. 18.14) प्रार्थना करने का प्रथम कदम है ईश्वर के पास अपनी नम्रता में यह कहते हुए आना, “लेकिन, हे पिता... माता मरियम के पास यह कहते हुए आना “मेरी ओर दया दृष्टि कीजिए मैं एक पापी हूँ, मैं कमजोर हूँ, मैं अपने में बुरा हूँ... हम सभी जानते हैं कि हमें क्या कहना है। संत पापा ने कहा कि हमें सदैव अपनी नम्रता में शरू करनी चाहिए क्योंकि दीन प्रार्थना को ईश्वर सुनते हैं। 

उन्होंने कहा कि येसु की प्रार्थना पर धर्मशिक्षा माला शुरू करने का अर्थ हमारे लिए यही है कि हम येसु की सुन्दर प्रार्थना को अपने में दुहरायें, “प्रभु, हमें प्रार्थना करना सिखलाईये”, जैसा कि शिष्यों ने कहा था। आगमन के इस समय में यह हमारे लिए अति सुन्दर प्रार्थना होगी, “प्रभु, मुझे प्रार्थना करना सिखलाईये।” हम आगमन काल में इस प्रार्थना को दुहरायें और निश्चय ही वे हमारी प्रार्थना को व्यर्थ नहीं होने देंगे।

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05 December 2018, 15:54