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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

तीर्थस्थल के संरक्षकों को संत पापा का संदेश

संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 29 नवम्बर को तीर्थस्थल की देखरेख करने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों से मुलाकात की तथा उन्हें प्रोत्साहन दिया कि वे तीर्थयात्रियों को अपने घर के समान अनुभव करायें एवं उन्हें धार्मिक अभ्यासों में बढ़ने हेतु मदद करें।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

तीर्थस्थल या अन्य पवित्र स्थल एक कलीसिया है जिसका लोगों के द्वारा दर्शन किया जाता है। लोग वहाँ कृपा एवं सांत्वना पाने के लिए प्रार्थना करने आते हैं। विश्वभर में करीब हजारों तीर्थस्थल स्थल हैं जिनका दर्शन करने एवं वहाँ प्रार्थना करने की परम्परा कलीसिया के समान ही पुरानी है। 

तीर्थस्थल

बृहस्पतिवार को वाटिकन में तीर्थस्थल की देख-रेख करने वाले अधिकारियों से मुलाकात करते हुए तथा आधुनिक युग में तीर्थस्थल के महत्व पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा कि तीर्थस्थल वे स्थान हैं जहाँ लोग अपने विश्वास की अभिव्यक्ति सरल रूप में करने हेतु जमा होते हैं, जैसा उन्होंने विभिन्न परम्पराओं के अनुसार अपने बचपन में सीखा है। इस मायने में तीर्थस्थल अद्वितीय है क्योंकि यह लोकप्रिय धार्मिक अभ्यासों को जीवित रखता है।  

स्वागत करने का स्थान

संत पापा ने कहा कि तीर्थस्थल हमेशा स्वागत का स्थान होना चाहिए। ऐसा स्थान जहाँ हर तीर्थयात्री अपना घर जैसा महसूस करे, परिवार के उस सदस्य की तरह जो काफी दिनों के बाद वापस लौटा हो। उन्होंने कहा कि कुछ लोग तीर्थस्थल की वस्तुकला अथवा उसके सुन्दर प्राकृतिक स्थल में स्थापित होने के कारण, उसका दर्शन करते हैं। जब वहाँ उनका स्वागत किया जाता है तब वे अपना हृदय खोलने के लिए उदार बनते तथा कृपा को अपने अंदर प्रवेश करने देते हैं।  

प्रार्थना का स्थान

सबसे बढ़कर संत पापा ने कहा कि तीर्थस्थल एक प्रार्थना का स्थान है। अधिकतर तीर्थस्थल माता मरियम को समर्पित किये गये हैं। जहाँ माता मरियम अपनी ममतामयी स्नेह प्रकट करती हैं। वे हम प्रत्येक की प्रार्थनाओं को सुनती और हमें सांत्वना प्रदान करती हैं। वे उन लोगों के साथ आँसू बहाती हैं जो दु:खी हैं तथा सभी का साथ देती और कृपा की याचना करने वालों पर अपनी कृपा दृष्टि फेरती हैं।

मेल-मिलाप का स्थान

संत पापा ने कहा कि तीर्थस्थल का दौरा करने वाला कोई भी व्यक्ति अजनबी महसूस न करे, विशेषकर, जब वे पापों के भार से दबे हों।  

तीर्थस्थल ईश्वर की दया को महसूस करने का स्थान है जिसकी कोई सीमा नहीं है। जब दया का एहसास किया जाता है तब यह एक प्रकार का सुसमाचार प्रचार है क्योंकि यह उन लोगों के हृदय को परिवर्तित करता है जो उसकी दया का अनुभव करते हैं। 

संत पापा ने कहा कि प्रार्थना ही है जो तीर्थस्थल को वह सुखद स्थान बनाता है जहाँ लोकप्रिय धार्मिक अभ्यास पोषित एवं विकसित होते हैं।

 

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29 November 2018, 17:28