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देवदूत प्रार्थना के उपरांत आशीष देते संत पापा देवदूत प्रार्थना के उपरांत आशीष देते संत पापा 

कंगाल विधवा ख्रीस्तियों के लिए आदर्श, संत पापा

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 11 नवम्बर को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संत पापा ने कहा कि आज के सुसमाचार पाठ की घटना (मार. 12,38-44) येसु द्वारा येरूसालेम के मंदिर में शिक्षा देने की श्रृंखला को विराम देता है तथा दो विपरीत छवियों पर प्रकाश डालता है एक शास्त्री एवं दूसरा विधवा। वे क्यों एक-दूसरे के विपरीत थे?

शास्त्रियों का मनोभाव

संत पापा ने कहा कि शास्त्री सबसे बढ़कर महत्वपूर्ण, धनी एवं लोकप्रिय लोगों का प्रतिनिधित्व करता था जबकि विधवा सबसे पिछड़े, गरीब और कमजोर लोगों की छवि प्रस्तुत करती थी। वास्तव में, येसु द्वारा शास्त्रियों के लिए की गयी टिप्पणी सभी शास्त्रियों पर लागू नहीं होती किन्तु उन लोगों पर लागू होती है जो समाज में अपने पद के लिए इठलाते, शास्त्री होने के लिए घमंड करते तथा हमेशा पहला स्थान पाना चाहते हैं। (38-39) उससे भी बुरा था उनका डींग मारना, खासकर, उनका धार्मिक स्वभाव क्योंकि येसु कहते हैं कि वे ऐसे स्थानों पर प्रार्थना करना पसंद करते थे जहाँ लोग उन्हें देख सकें। वे ईश्वर का प्रयोग अपने आपको संहिता के रक्षक के रूप में माने जाने के लिए करते थे। इस तरह अधिकार एवं घमंड के मनोभाव द्वारा वे उन लोगों का अपमान करते थे जो आर्थिक रूप से कमजोर होते थे जैसा कि कंगाल विधवा। 

विधवा का समर्पण

येसु इस विकृत तंत्र का खुलासा करते हैं। वे धार्मिक कारणों के आधार पर कमजोर लोगों के उत्पीड़न की निंदा करते तथा स्पष्ट रूप से कहते हैं कि ईश्वर सबसे पिछड़े लोगों के साथ हैं। 

शिष्यों के मन में इस शिक्षा को अच्छी तरह डालने के लिए येसु उन्हें विधवा का एक उदाहरण देते हैं। एक गरीब विधवा जिसका समाज में कोई स्थान नहीं था क्योंकि उसका पति नहीं होने के कारण उसके अधिकारों की रक्षा करने वाला कोई नहीं था, जिसके कारण वह आसानी से बेईमान सूदखोरों की शिकार हो गयी थी, जो लोगों से अधिक वसूल करने हेतु उन्हें सताते थे। यह महिला मंदिर में दान करने गयी, उसके पास केवल दो सिक्के थे और जिसपर किसी का ध्यान नहीं गया। उसने शर्म महसूस किया कि वह इतना कम दान कर सकी किन्तु वास्तव में, इस दीनता के द्वारा उसने महान धार्मिक एवं आध्यात्मिक कार्य सम्पन्न किया। यह त्याग का एक महान उदाहरण था, जिसपर येसु की नजर टिक गयी। येसु ने उसमें जीवन का त्याग देखा, जिसकी शिक्षा वे अपने शिष्यों को देना चाहते थे।

ईश्वर मात्रा नहीं बल्कि गुणवत्ता देखते 

संत पापा ने कहा कि जो शिक्षा येसु आज हमें दे रहे हैं वह हमें जीवन के अर्थ को खोजने में मदद देता है तथा ईश्वर के साथ एक ठोस एवं दैनिक संबंध को प्रोत्साहन देता है। उन्होंने कहा, प्रभु का पैमाना हमारे पैमाने से अलग है वे व्यक्ति और उनके कार्यों को अलग करते हैं। ईश्वर मात्रा नहीं बल्कि गुणवत्ता देखते हैं। वे हृदय देखते तथा उसकी चाह की शुद्धता पर ध्यान देते हैं। इसका अर्थ है कि प्रार्थना में ईश्वर को हमारे दान तथा दूसरों के प्रति हमारी उदारता में कभी भी कर्मकाण्ड और औपचारिकता नहीं होनी चाहिए, साथ ही साथ, हिसाब करने की प्रवृति भी नहीं बल्कि उसे मुक्त रूप में दिया जाना चाहिए जैसा कि येसु ने हमें प्रदान किया है। यही कारण है कि येसु उस कंगाल विधवा की ओर इशारा करते हैं जिसका उदार जीवन ख्रीस्तियों के लिए आदर्श है। 

विधवा हमारे लिए आदर्श 

संत पापा ने कहा कि हम उसका नाम नहीं जानते किन्तु उसके हृदय द्वारा उसे पहचानते हैं। वह स्वर्ग में है और हम निश्चय ही, उससे मुलाकात करने जायेंगे। यही ईश्वर का हिसाब है। जब हम दिखावे की चाह एवं अपने कार्यों का हिसाब करने के प्रलोभन में पड़ते हैं। जब हम दूसरों का ध्यान आकर्षित करने में बहुत अधिक रूचि रखते हैं, तब हम उस महिला को याद करें। वह हमारे लिए आदर्श है। यह हमें बेकार के दिखावे से बचने तथा सचमुच आवश्यक बातों की खोज करने एवं विनम्र बने रहने में मदद करेगा।

माता मरियम से प्रार्थना

संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना करने का आह्वान करते हुए कहा कि धन्य कुँवारी मरियम, एक गरीब महिला जिन्होंने अपना सब कुछ ईश्वर को अर्पित किया, हमें ईश्वर एवं भाई बहनों को दान करने के हमारे मनोभाव को बल प्रदान करे ताकि हम कुछ अंश नहीं बल्कि विनम्रता एवं उदारता पूर्वक अपना दान कर सकें।  

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

 

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12 November 2018, 16:34