ख्रीस्त राजा के पर्व पर संत पापा का संदेश
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, सोमवार, 26 नवम्बर 2018 (रेई)˸ वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 25 नवम्बर को ख्रीस्त राजा महापर्व के अवसर पर, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
येसु ख्रीस्त विश्व के राजा का महापर्व जिसको हम आज मना रहे हैं, उसे पूजनपद्धति वर्ष के अंत में स्थापित किया गया है जो स्मरण दिलाता है कि सृष्टि का जीवन संयोग से आगे नहीं बढ़ता बल्कि अपने अंतिम लक्ष्य, इतिहास एवं सृष्टि के प्रभु ख्रीस्त की स्पष्ट प्रकाशना की ओर आगे बढ़ता है। इतिहास के अंत में उनका अनन्त राज्य होगा।
ख्रीस्त का राज्य
आज का समुसमाचार पाठ (यो.18,33b-37) ख्रीस्त के राज्य के बारे बतलाता है। वह उनके राज्य को उनकी अपमानजनक स्थिति में प्रस्तुत करता है, जब वे गेतसेमनी बारी में गिरफ्तार किये गये थे। वे तिरस्कृत एवं दोषी ठहराये जाते हुए येरूसालेम के अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किये गये थे। तब वे रोमियों द्वारा प्रताड़ित किये गये थे, जिन्हें राजनीतिक शक्ति का डर था कि वे यहूदियों के राजा बनेंगे। पिलातुस ने पूछताछ की थी तथा उस नाटकीय सवाल जवाब में उनसे दो बार प्रश्न किया था, क्या तुम यहूदियों के राजा हो? (पद. 33.37) और येसु ने उत्तर दिया था, "मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। (पद. 36) उसके बाद उन्होंने कहा था, मैं राजा हूँ। (पद. 37) येसु के सम्पूर्ण जीवन से यह स्पष्ट होता है कि उनमें कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं थी। हम याद करते हैं कि रोटियों के चमत्कार के बाद लोग उनके चमत्कार के लिए उत्सुक थे, उन्हें राजा घोषित करना, रोमियों की सत्ता को दूर करना एवं इस्राएल का राज्य बहाल करना चाहते थे। किन्तु येसु के लिए राज्य का अर्थ कुछ और था जिसको निश्चय ही सैनिकों के विद्रोह, हिंसा एवं बल प्रयोग द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता था। अतः वे अकेले पर्वत पर प्रार्थना करने चले जाते थे। (यो. 6: 5-15)
ईश्वर के राज्य की शक्ति, प्रेम
पिलातुस को जवाब देते हुए येसु इस बात की ओर संकेत करते हैं उनकी रक्षा करने के लिए उनके शिष्यों ने संघर्ष नहीं किया। वे कहते हैं, "यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लड़ते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता" (v.36). येसु यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि राजनीतिक शक्ति से बढ़कर भी कोई शक्ति है जो मानवीय साधनों से प्राप्त नहीं की जा सकती। वे इस दुनिया में अपनी शक्ति का प्रयोग करने आये, जो प्रेम की शक्ति है, सच्चाई का साक्ष्य देना है। सुसमाचार की सबसे महत्वपूर्ण दिव्य सच्चाई है कि "ईश्वर प्रेम हैं।" (1यो. 4: 8) वे इस संसार में अपने प्रेम, न्याय एवं शांति के राज्य का विस्तार करना चाहते हैं और इस राज्य के राजा स्वयं येसु हैं जिसका विस्तार युग के अंत तक फैला है।
संत पापा ने कहा, "इतिहास सिखलाती है कि राज्य सैनिकों के बल पर स्थापित किया जाता है और इसकी संरचना कमजोर होती है तथा इसका पतन निश्चित है किन्तु ईश्वर के राज्य की स्थापना प्रेम पर होती है एवं इसकी जड़ें हृदय में होती हैं। जिनके हृदय में ईश्वर का राज्य होता है वे शांति, स्वतंत्रता एवं जीवन की परिपूर्णता को प्राप्त करते हैं।"
येसु की मांग
संत पापा ने कहा कि हम शांति, स्वतंत्रता एवं पूर्णता प्राप्त करना चाहते हैं किन्तु हम इन्हें किस तरह प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए हम ईश्वर के प्रेम, उनके राज्य को, हमारे हृदय में जड़ जमाने दें तब हमें शांति, स्वतंत्रता एवं पूर्णता प्राप्त होगी।
येसु आज हमसे मांग रहे हैं कि हम उन्हें अपना राजा बनने दें। एक ऐसा राजा जिन्होंने वचनों एवं उदाहरणों से तथा क्रूस पर अपने जीवन की आहूति देकर हमें मृत्यु से बचाया, भटके हुए लोगों को अपना रास्ता दिखलाया, भ्रम, भय एवं दैनिक जीवन की चुनौतियों से घिरे लोगों को नव ज्योति से आलोकित किया। किन्तु हमें नहीं भूलना चाहिए कि येसु का राज्य इस संसार का नहीं हैं। वे हमें जीवन का नया अर्थ प्रदान करते हैं, जब हम अपनी ही गलतियों, पापों तथा दुनिया एवं उसके राजा के तर्क पर चलने की परीक्षाओं में पड़ जाते हैं।
जीवन के राजा का स्वागत कर पाने के लिए माता मरियम से प्रार्थना
संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना की कि धन्य कुंवारी मरियम हमें येसु का स्वागत हमारे जीवन के राजा के रूप में करने तथा उनके राज्य विस्तार एवं सच्चाई जो प्रेम है उसका साक्ष्य देने में मदद करे।
इतना कहने के बद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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