संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

सब संतों के महापर्व पर संत पापा का संदेश

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में 1 नवम्बर को सब संतों के महापर्व के उपलक्ष्य में, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को पर्व की शुभकामनाएँ देते हुए अपना संदेश दिया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संदेश में संत पापा ने प्रकाशना ग्रंथ से लिए गये पाठ पर चिंतन किया जिसमें स्वर्ग तथा विभिन्न राष्ट्रों, जातियों एवं भाषाओं के एक विशाल जनसमूह का जिक्र किया गया है। (प्रकाशना 7: 9) संत पापा ने कहा कि वे संत हैं। वे वहाँ क्या करते हैं? वे एक साथ भजन गाते और आनन्द के साथ ईश्वर की स्तुति करते हैं। उनके भजन को सुनना सुखद है।  हम कब उसे सुन सकते हैं? उन्होंने कहा कि ख्रीस्तयाग के दौरान हम उसे सुन सकते हैं जब हम पवित्र पवित्र पवित्र विश्व मंडल के प्रभु गाते हैं। यह एक भजन है बाईबिल कहता है कि यह स्वर्ग से आता है जिसको स्वर्ग में गाया जाता है। संतों के साथ गाते हुए हम न केवल उनकी याद करते किन्तु उनके समान बनना चाहते हैं और ख्रीस्तयाग में हम उनके साथ एक हो जाते हैं। 

संत हमारी मदद करते हैं

संत पापा ने कहा कि हम संतों के साथ जुड़े हैं न केवल उन संतों के साथ जो कैलेंडर में अच्छी तरह पहचाने जाते हैं किन्तु हमारे परिवार के सदस्यों, हमारे अगल-बगल के पड़ोसियों तथा परिचितों से जो अब संतों की संगति में हैं। इस प्रकार आज का दिन पारिवारिक उत्सव का दिन है। संत हमारे करीब रहते हैं, सचमुच वे हमारे भाई एवं बहनें हैं। वे हमें समझते और प्यार करते हैं। वे जानते हैं कि हमारा सच्चा धन क्या है। वे हमें मदद करते तथा हमारा इंतजार करते हैं। वे खुश हैं तथा चाहते हैं कि हम भी उनके साथ स्वर्ग में आनन्द मनायें।

संतों का रास्ता

यही कारण है कि वे हमें खुशी के इस रास्ते पर चलने का निमंत्रण देते हैं जिसको आज के सुसमाचार में दर्शाया गया है- धन्य हैं वे जो दीन-हीन हैं...धन्य हैं वे जो विनम्र हैं...धन्य हैं वे जो निर्मल हैं (मती. 5: 3-8) किन्तु किस तरह? संत पापा ने कहा कि सुसमाचार में गरीबों, दीनों, हृदय के निर्मल लोगों को धन्य कहा गया है जबकि दुनिया समृद्ध, शक्तिशाली और बेईमान लोगों की सराहना करती है। स्वर्ग एवं पवित्रता का रास्ता पराजय की ओर ले जाने के समान लगता है फिर भी पहला पाठ हमें स्मरण दिलाता है कि संत अपने हाथों में खजूर की डाली लिए हुए हैं जो विजय का प्रतीक है। उन्होंने विजय प्राप्त की है। वे हमें निमंत्रण देते है कि हम भी उसी रास्ते को चुनें जो ईश्वर का रास्ता है। 

हम किस रास्ते पर बढ़ रहे हैं    

संत पापा ने चिंतन करने का आह्वान करते हुए कहा कि हम अपने आप से पूछे कि हम किस ओर आगे बढ़ रहे हैं? स्वर्ग की ओर अथवा पृथ्वी की ओर? हम प्रभु के लिए जीते हैं अथवा अपने लिये? अनन्त आनन्द के लिए अथवा क्षणिक सुख के लिए? हम अपने आप से पूछे कि क्या हम सचमुच पवित्र बनना चाहते हैं अथवा क्या हम ख्रीस्तीय बन कर संतुष्ट हैं। प्रभु हमसे सब कुछ की मांग करते हैं और बदले में सच्चा जीवन प्रदान करते हैं, सच्चा आनन्द जिसके लिए हम सृष्ट किये गये हैं। हम पवित्रता को अपनाते हैं अथवा उसे त्याग देते हैं। 

संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए उचित है कि हम संतों से प्रार्थना करें जिन्होंने आधा-आधा नहीं जीया क्योंकि जब हम ईश्वर को चुनते हैं तो विनम्रता, दीनता, दया और पवित्रता को अपनाते हैं क्योंकि हम दुनिया में रहने की अपेक्षा स्वर्ग प्राप्त करना चाहते हैं। 

विनम्रता, दया और पवित्रता के पथ को अपनाएँ

संत सुसमाचार के इस सुन्दर पाठ को न केवल सुनने किन्तु उसका अभ्यास करने की सलाह देते हैं ताकि हम आशीर्वचन के रास्ते पर चल सकें। इसके लिए असाधारण कार्य करना नहीं है किन्तु उस रास्ते पर चलना है जो हमें स्वर्ग की ओर ले चलता है। आज हम हमारे भविष्य पर चिंतन करने तथा अपने जन्म लेने के उद्देश्य को मनाने का दिन  हैं। हम अमर बनने के लिए जन्मे हैं, ईश्वर के आनन्द को प्राप्त करने के लिए। प्रभु हमसे कहते हैं, खुश रहो और आनन्द मनाओं क्योंकि स्वर्ग में तुम्हें महान पुरस्कार प्राप्त होगा।  

ईश्वर की माता एवं संतों की महारानी हमें पवित्रता के मार्ग पर दृढ़ता से आगे बढ़ने में मदद दे। वे जो स्वर्ग के द्वार हैं हमारे मृत प्रियजनों को अपने स्वर्गीय परिवार में प्रवेश पाने दें।

 

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01 November 2018, 16:23