संत पापा यूखारिस्त की आराधना के दौरान संत पापा यूखारिस्त की आराधना के दौरान 

यूखारिस्त ख्रीस्तीय जीवन का क्रेन्द

संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार को अंतरराष्ट्रीय यूखरिस्तीय कॉन्ग्रेस के लिए परमधर्मपीठीय समिति की आम सभा मे भाग लेने वाले प्रतिभागियों को वाटिकन में सम्बोधित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

आगामी अंतरराष्ट्रीय यूखरिस्तीय कॉन्ग्रेस बुधापेस्ट में 2020 में आयोजित किया जाएगा। यह कार्यक्रम एक महान यूरोपीय शहर की पृष्ठभूमि के खिलाफ मनाया जाएगा, जिसमें ईसाई समुदाय धर्मनिरपेक्षता की आधुनिकताओं और वैश्वीकरण की चुनौतियों को पूरा करने में सक्षम एक नए सुसमाचार का इंतजार कर रहे हैं जो एक समृद्ध और विविध इतिहास की अनूठी विशेषताओं को समाप्त करने का जोखिम उठाता है।

संत पापा ने कहा, "यह एक बुनियादी सवाल खड़ा करता है। आधुनिक एवं बहु सांस्कृतिक शहर में यूखरिस्तीय कॉन्ग्रेस मनाने का अर्थ क्या है? जहाँ सुसमाचार तथा धार्मिक मान्यता हाशिय पर है? उन्होंने कहा कि इसका अर्थ है ईश्वरीय कृपा को स्वीकार करना ताकि प्रार्थना एवं विभिन्न क्रिया कलापों के द्वारा यूखरिस्तीय संस्कृति को फैलाना। दूसरे शब्दों में प्रतीक के माध्यम से सोचने और काम करने का एक तरीका, जो कलिसयाई समुदाय की सीमाओं से परे भी समझा जा सके।

संत पापा ने कहा कि यूरोप जहाँ उदासीनता, विभाजन एवं बहिष्कार के विभिन्न रूपों का प्रभाव है ख्रीस्तीय अपने विश्वास के साधारण एवं शक्तिशाली भाव को हर रविवार को नवीकृत करते हैं। वे प्रभु के नाम पर एक साथ जमा होते तथा स्वीकार करते हैं कि वे सभी भाई-बहन हैं। वचनों को सुनने एवं रोटी तोड़ने के द्वारा येसु के उसी चमत्कार को पुनः दुराया जाता है। इस तरह विश्वसियों का छोटा से छोटा समुदाय यूखरिस्तीय संस्कृति में उत्पन्न होने वाले मनोभाव का पालना बन जाता है क्योंकि यह हमें जीवन के रास्ते तथा ख्रीस्त की कृपा पर चिंतन करने हेतु प्रेरित करता है।  

संत पापा ने कहा कि यूखारिस्त का पहला मनोभाव एकता है। पिछली व्यारी के समय येसु ने अपने आपको रोटी और दाखरस के रूप मे अर्पित कर दिया। उसी की याद हम यूखरिस्त में मनाते हैं और इसके द्वारा वे अपने शरीर एवं लोहू से हमें खिलाते-पिलाते हैं जिसके लिए विश्वासियों को एक साथ आना पड़ता है। 

दूसरा मनोभाव है सेवा

यूखारिस्त द्वारा उन क्षेत्रों को जोड़ा जा सकता है जो भुला दिये गये हैं।

संत पापा ने कामना की कि बुधापेस्ट में आयोजित किया जाने वाला यूखरिस्तीय कॉन्ग्रेस ख्रीस्तीय समुदायों में नवीनीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन प्रदान करेगा जिसे इसके द्वारा मानव को मिलने वाली मुक्ति उनके जीवन में करुणा, एकात्मकता, शांति, पारिवारिक जीवन और सृष्टि की देख-रेख में अभिव्यक्त हो सकें।

यूखारिस्त में येसु से हमारा मिलन एक असल चुनौती है क्योंकि यह इसे अपने प्रेरिताई में परिलक्षित करने का मांग करता है। मिस्सा बलिदान के बाहर इसकी आराधना अपने में एक अति महत्वपूर्ण भक्ति है जो पूरी कलीसिया को एक साथ जमा करती है। यह आराधना हमें इस बात की शिक्षा देती है कि येसु हमारे जीवन के शीर्ष हैं जिसे हम अपने समुदाय के सदस्यों के संग अपनी निष्ठापूर्ण जीवन के द्वारा साझा करते हैं।

सेवक का भाव

यूखरिस्तीय समुदाय येसु के “सेवक” मनोभावो को अपने में धारण करता है। उन्हें अपने जीवन में ग्रहण करते हुए हम अपने को दूसरों के साथ संयुक्त करते हैं। “अंतिम व्यारी” में सदैव प्रवेश करते हुए जहाँ येसु ने अपने शिष्यों के पैर धोये, ख्रीस्तियों के रुप में हम सुसमाचार को अपने जीवन में मेल-मिलाप के रुप में अंगीकृत करते हैं। समाज औऱ कलीसिया में कितनी परिस्थितियाँ है जहाँ हम करुणा के मलहम को अपने आध्यात्मिक और शारीरिक कार्यों में पूरा करते हैं। संत पापा ने कहा कि इस संदर्भ में परिवारों में कठिनाइयों को देखते, युवा और बेरोजगार व्यस्कों, बीमारों औऱ परित्याक्त बुजूर्गों, प्रवासियों की समस्याओं तथा हिंसा के अलावे गरीबी को हम और भी कितने रुपों को देखते हैं। ऐसी घायल मानव परिस्थितियों में यूखारिस्त के माध्यम हम येसु के सेवक मनोभावों को जीते जिन्होंने अपने को हमारे लिए प्रेम के खातिर अर्पित कर दिया। इस तरह बपतिस्मा प्राप्त लोगों के रुप में हम यूखरिस्तीय संस्कृति को जीते हैं जो व्यक्तिगत और समुदाय जीवन हेतु एक मापदण्ड बनता है। हम इस साक्ष्य को कितने ही हमारे संतों के जीवन में देख सकते हैं।  

संत पापा ने कहा कि प्रत्येक यूखरिस्तीय बलिदान हमारे लिए ईश वचनों को लेकर आता है जो हमारे शहरों में बहुधा भुला दिये जा रहे हैं। आज हम दुनिया में कितने प्रकार के भय, सतावट, घमंड, क्रूरता, घृणा, तिरस्कार और सृष्टि के प्रति बेपरवाह तथा कई अऩ्य अवर्णनीत बातों को पाते हैं। फिर भी ख्रीस्तियों के रुप में हर रविवार को हम ईश्वर की करुणा को इस सारी बातों पर हावी होता पाते हैं। यूखारिस्त करूणा रुपी सागर का उद्गम स्थल है क्योंकि ईश्वरीय मेमने के बेधित हृदय से जीवन की धारा सदैव प्रवाहित होती है। वे अपनी आत्मा को हम प्रदान करते हुए नई सृष्टि का निर्माण करते हैं। वे हमें अपने को मेज पर पास्का भोज के रुप में देते हैं। इस भांति संसार के नसों में करूणा प्रवेश करती और आधुनिक समय में ईश प्रज्ञा को सुदृढ़ करती है।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि आगामी यूख्ररिस्तीय मिलन हमारे लिए नवीनता और परिवर्तन का एक मार्ग बने जिससे यह हमें इस बात की याद दिलाये कि यह कलीसियाई जीवन का केन्द्र-बिन्दु है। यह वह पास्का रहस्य है जो न केवल हम प्रत्येक को बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति के रुप विस्तृत करता वरन् सारी धरती को जहाँ हम रहते औऱ कार्य करते हैं। संत पापा ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि बुधापेस्ट का यूख्ररिस्तीय सम्मेलन हमारे समुदायों के लिए नवीकरण का एक समय हो जिससे हम इसके द्वारा हम अपने लिए आने वाली मुक्ति को जीने के योग्य बन पायें।

उन्होंने आगामी यूखरिस्तीय सम्मेलन को माता मरियम के हाथों में सुपूर्द करते हुए इसकी सफलता की मंगलकामना की।

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10 November 2018, 15:58