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बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा 

संहिता का सार येसु के जीवन पर चिंतन करना

बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि संहिता हमें येसु के जीवन पर चिंतन करने का आहृवान देता है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में विभन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को ईश्वर की दस आज्ञाओं पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

आज की धर्मशिक्षा जो हमें संहिता की दस आज्ञाओं के अंतिम पड़ाव पर लेकर आती है, जहाँ हम अपनी लालसा को मुख्य विषयवस्तु के रुप में पाते हैं, जो संहिता की आज्ञाओं पर हमें धर्मशिक्षा का निचोड़ प्रस्तुत करते हुए येसु ख्रीस्त के रहस्य को हमारे लिए सदैव प्रकट करती है।

संहिता जीवन का आधार

संत पापा ने कहा कि हमने अपनी संहिता की आज्ञाओं पर अपनी धर्मशिक्षा की शुरूआत विश्वास और आज्ञापालन में कृतज्ञतापूर्ण हृदय से की थी। हमने इस विषय पर गौर किया कि ईश्वर हमें जीवन में अपने वरदानों से विभूषित किये बिना किसी भी चीज की मांग नहीं करते हैं। इस तरह वे हमें आज्ञाकारिता में बने रहते हुए मूर्तिपूजा के छल से बचे रहने का आहृवान करते हैं जो हमारे जीवन में हावी हो जाता है। वास्तव में सांसारिक देवमूर्तियों में अपने जीवन की परिपूर्णत की खोज करना हमें खोखला और गुलाम बना देता है जबकि येसु के साथ संबंध स्थापित करना हमें पिता की संतान बनाता जहाँ हम अपने में निरंतर सुद्दढ़ बने रहते हैं।( एफे.3.14-16)

यह प्रक्रिया हमें ईश्वर के वरदानों में बने रहते हुए मुक्ति प्रदान करती है जो कि एक अपने में सच्चाई और एक वास्तविकता है। स्त्रोत 62.2 इसके बारे में कहता है, “ईश्वर में ही मुझे शांति मिलती है, वही मेरा उद्धार कर सकता है।”

यह मुक्ति हमें अपने व्यक्तिगत जीवन के इतिहास को स्वीकारने और अपने से मेल-मिलाप करने में सहायता करती है जिसके फलस्वरुप हम बाल्यावस्था से लेकर वर्तमान की सभी बातों में सामजस्य स्थापित करते हुए अपने को जीवन की सही बातों और लोगों के लिए समर्पित करते हैं। इस तरह हम जीवन के इस मार्ग में पड़ोसियों के संग उस संबंध में प्रवेश करते जिसे ईश्वर हमारे लिए येसु ख्रीस्त में प्रकट करते हैं जो हमारी बुलाहट है जहाँ हम निष्ठा, उदारता और सच्चाई में अपने को समर्पित करते हैं।

पवित्र आत्मा हमें नवीन बनाता

लेकिन निष्ठा, उदारता और सच्चाई में जीवन यापन करना हमसे पवित्र आत्मा में एक नये हृदय को धारण करने की मांग करती है। संत पापा ने कहा, “मैं अपने आप से यह सवाल करता हूँ कि मेरे पुराने हृदय का नवीनीकरण कैसे होता हैॽ” यह नई कृपा की चाह के द्वारा संभंव है।(रोमि.8.6) उन्होंने कहा कि हम इस शब्द “नई चाह” पर गौर करें जो ईश्वर द्वारा हम में बोये जाते हैं, विशेष कर दस आज्ञाओं के रुप में जिसे येसु ख्रीस्त “पर्वत प्रवचन” की शिक्षा स्वररुप हमारे बीच रखते हैं।(मत्ती.5.17-48) वास्तव में संहिता की आज्ञाओं पर आधारित अपने जीवन पर चिंतन करना हमें अपने जीवन को ईश्वरीय कृतज्ञता, स्वतंत्रता, सच्चाई, आशीष, व्यस्क जीवन, जीवन के प्रति उत्तरदायी, विश्वासी, उदारता और निष्ठा के रुप देखने हेतु मदद करता है जिसकी अनुभूति हमें नहीं होती लेकिन हम अपने को येसु ख्रीस्त के सम्मुख पाते हैं। संहिता की दस आज्ञाएं हमारे लिए “एक्स-रे” के समान है। यह ख्रीस्त का एक्स-रे हैं जहां वे अपने चेहरे को हमारे लिए प्रस्तुत करते हैं। इस तरह पवित्र आत्मा अपने वरदानों की अभिलाषा से हमें विभूषित करते हुए हमारे हृदय को नवीन बनाते हैं। यह पवित्र आत्मा की लालसा है, जहाँ हम अपने को उनकी आशा, संगीत और राग के अनुरूप व्यवस्थित करते हैं।

अपनी निगाहें येसु ख्रीस्त की ओर फेरते हुए हम उनकी सुन्दरता, अच्छाई और सच्चाई को पाते हैं। पवित्र आत्मा हममें एक नये जीवन का सृजन करता है जिसके फलस्वरुप हम आशा, विश्वास और प्रेम को अपने में पनपता पाते हैं।

येसु संहिता की परिपूर्णता

संत पापा ने कहा इस भांति हम येसु ख्रीस्त को अपने जीवन में और भी अच्छी तरह समझते हैं जो संहिता को खत्म करने नहीं अपितु पूरा करने को आते हैं। भैतिक रुप में संहिता अपने में एक निषेधात्मक बातों की श्रृंख्ला है परन्तु पवित्र आत्मा के रुप में यह संहिता जीवन बन जाती है (जो. 6.63, एफे.2.15) क्योंकि यह येसु के शरीर में परिणत हो जाता है जो हमें प्रेम करते, खोजते, क्षमा करते, सांत्वना देते और अपने में उन सारी चीजों का मेल पिता से करा लेते हैं जो पाप की अवज्ञा में खो गयी थी। संत पापा ने कहा कि इस तरह संहिता की नकारात्मक आज्ञाएँ, “चोरी न करना”, “अनादर न करना”, “हत्या न करना”, अपने में सकारात्मक मनोभव बन जाते हैं। प्रेम करना, हमारे हृदय में दूसरों के लिए एक स्थान तैयार करता है, चाह   हमारे लिए सकारात्मक बन जाती है। संहिता की यह परिपूर्णत येसु हमारे लिए लेकर आते हैं।

केवल येसु ख्रीस्त में संहिता हमारे लिए दण्डाज्ञा नहीं है।(रोमि.8.1) यह हमारे जीवन की सच्चाई बन जाती है अर्थात प्रेम की चाह, जहाँ हम दूसरों की भलाई करने की चाह रखते हैं, खुशी और शांति पाना चाहते, उदारता में दूसरों की भलाई करते, अच्छाई, निष्ठा, विनम्रता के साथ आत्मसंयम में बने रहते हैं। हम “न” के द्वारा “हाँ” के सकारात्मक मनोभाव में प्रवेश करते हैं जो हमारा हृदय पवित्र आत्मा के लिए खोलता है।

संहिता में येसु को खोजने का अर्थ

येसु को संहिता में खोजने का तात्पर्य हमारे लिए यही है हम अपना हृदय उपजाऊ बनाये जिसमें प्रेम भरा हो जो येसु ख्रीस्त के कार्यों हेतु खुला रहे। संत पापा ने कहा कि जब मानव येसु ख्रीस्त की योजना अनुसार अपने जीवन को संचालित करता है तो अपने को मुक्ति के लिए खुला रखता है। यह हमारे लिए इसलिए होता है क्योंकि ईश्वर पिता हमारे प्रति उदार बने रहते हैं जैसे कि कलीसियाई धर्मशिक्षा हमें कहती है, “वे हमारे लिए प्यासे हैं क्योंकि हम उनके प्यासे हैं।” (2560)

यदि बुराई इच्छाएँ मनुष्य के जीवन को नष्ट करती है (मत्ती. 15.18-20) तो पवित्रात्मा हमारे हृदयों में अच्छे विचारों को लाते हैं जो हमारे लिए जीवन का स्रोत बनती है।(1यो. 3.9) वास्तव में नया जीवन नियमों के प्रति बने रहने का अथक प्रयास नहीं है वरन यह पवित्र आत्मा की कृपा है जो हमारे जीवन में नये फल उत्पन्न करता है जहाँ हम प्रेम की खुशी का अनुभव करते और उस प्रेम को दूसरों के साथ बाँटते हैं। यहाँ हम अपने जीवन में दो तरह की खुशी को पाते हैं, ईश्वर के द्वारा द्वारा प्रेम किये जाने की खुशी और उस खुशी में दूसरों को प्रेम करना।

संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तियों के रुप में हमारे लिए संहिता की आज्ञाएँ, ख्रीस्त के जीवन पर चिंतन करना है जिससे हम अपने को उनके हृदय के लिए खोल सकें, उनके इच्छा को अपना बना सकें और पवित्र आत्मा को अपने लिए ग्रहण कर सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों के साथ प्रभु की प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

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28 November 2018, 15:45