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आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा  

संहिता की आज्ञा हमारा हृदय खोलती है

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में पापा ने दसवीं आज्ञा का मर्म समझाया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को ईश्वर की दस आज्ञाओं पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

अपनी धर्मशिक्षा माला में आज हम संहिता की अंतिम आज्ञा पर चिंतन करेंगे। इसके बारे में हमें पहले ही कहा गया है। संहिता की ये आज्ञाएं जिनके बारे में हमने सुना है वे धर्मग्रंथ की आखरी बातें नहीं हैं, वरन उसका अर्थ हमारे जीवन में उससे भी बढ़कर है। संहिता की ये बातें हमारे हृदय का स्पर्श करती हैं। वास्तव में, परस्त्री की कामना न करना या अपने पड़ोसी के किसी वस्तु का लालच न करना यदि हम इन पर गहराई से चिंतन करें तो ये हमें कोई नई बातें नहीं कहती हैं। इनका अर्थ हमारे लिए व्याभिचार औऱ चोरी न करना में छिपा हुआ है। संत पापा ने कहा कि संहिता की इन आज्ञाओं का निचोड़ हमारे लिए क्या हैॽ यह हमारे लिए क्या और अधिक करना चाहती हैॽ

आज्ञाएं हमारे जीवन की सीमाएं

उन्होंने कहा कि हमें इस बात को याद रखने का जरूरत है कि संहिता की सभी आज्ञाएं हमारे जीवन में एक सीमा को निर्देशित करती हैं, और उन सीमाओं के पार जाना हमारा अपने ईश्वर और पड़ोसियों से संबंध को बिगाड़ देता है। संत पापा ने कहा, “जब हम अपनी सीमाओं के पार जाते तो इसके द्वारा हम अपने को बिगाड़ देते हैं, ईश्वर से हमारा संबंध खराब हो जाता है और हम अपने पड़ोसियों के बीच अपने सम्मान को खो देते हैं।” संहिता की अंतिम आज्ञा हमारा ध्यान इस ओर कराती है। यह आज्ञा इस बात को हमारे लिए सुस्पष्ट करती है कि हमारे जीवन की सभी बुरी बातें हमारे हृदय की गहराई में छिपी हैं जो कि हमारी बुरी इच्छाएँ हैं। हमारे हृदय की गहाई में एक उथल-पुथल शुरू होती है जहाँ हम प्रवेश करते जिसका अंत एक बुराई में होता है। लेकिन यह एक औपचारिक, संवैधानिक बुराई नहीं है जो हमें घायल करती है, बल्कि यह बुराई हमें व्यक्तिगत रुप में साथ-साथ दूसरों को भी घायल करती है।

सुसमाचार में येसु हमें विशिष्ट रुप में कहते हैं, “बुरे विचार भीतर से अर्थात मनुष्य के मन से निकलते हैं। व्यभिचार, चोरी, हत्या, परगमन, लोभ, विद्धेष, छलकपट, लम्पटता, ईर्ष्या, झूठी निन्दा, अहंकार और मूर्खता-ये सारी बुराइयाँ भीतर से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।” (मार.7, 21-23) संत पापा ने इन बुराई को पुनः दुहराते हुए सभों का ध्यान उनकी ओर कराया।

आज्ञाओं का प्रभाव

संत पापा ने कहा कि संहिता की आज्ञाओं पर हमारी धर्मशिक्षा का कोई महत्व नहीं रह जाता यदि यह हमारे हृदय का स्पर्श नहीं करती। हमारे जीवन में बुरी चीजें कहाँ से आती हैंॽ संहिता की अंतिम आज्ञा हमारा ध्यान इस ओर कराती है जो हमें अपने हृदय की गहराई तक ले जाती है। उन्होंने कहा कि इस तरह यदि हमारा हृदय इस बात से स्वतंत्र नहीं है तो बाकी सारी बातों का महत्व हमारे लिए कम हो जाता है। अपने हृदय को सारी बुराइयों और बुरी बातों से मुक्त रखना, यह हमारे लिए एक चुनौती है। संहिता में ईश्वर के द्वारा मानव को दी गई आज्ञाएं अपने में एक सुन्दर दीवार की भांति सीमित होकर रह जाती हैं जबकि हम अपने में ईश्वर की संतान होने के बदले दास के रुप में रह जाते हैं। हम अपने में बहुधा अच्छा दिखाई देने वाला एक जटिल फरीसी मुखौटा पहने रहते हैं जबकि हमारे अन्दर एक अनसुलझी कुरूपता व्याप्त रहती है।

हमारी बुराइयों का उद्गम स्थल कहाँ हैॽ

हमें संहिता की इन आज्ञाओं द्वारा जो हमारे जीवन की बुरी इच्छाओं के बारे में कहती हैं अपने जीवन के मुखौटा का परित्याग करने की जरुरत है क्योंकि यह हमारी दरिद्रता को दिखलाती है जो हमारे लिए एक विशुद्ध अपमान को स्वीकारने का मार्ग बनता है। हममें से प्रत्येक को यह पूछने की आवश्यकता है कि वह कौन-सी बुराई है जिसका शिकार मैं होता हूँॽ ईर्ष्या, लोभ, निंदा-शिकायतॽ संत पापा ने कहा कि ये सारी चीजें हैं जो हमारे हृदय के अन्दर से आती हैं। हमारे लिए यह उचित होगा कि हम इसके बारे में अपने आप से पूछें। हमने अपने जीवन में एक तरह से अपमानित होने की जरूरत है। यह अपमान हमें इस बात की याद दिलाती है कि हम अपने आप में बुराइयों से मुक्त नहीं हो सकते हैं, इसके लिए हमें ईश्वर की ओर अभिमुख होने की आवश्यकता है। संत पौलुस इसे रोमियों के नाम अपने पत्र में अपरिवर्तनीय मानव स्वभाव के रुप में बतलाते हैं।( रोमि. 7. 7-24)

परिवर्तन खुलेपन की मांग

संत पापा ने कहा कि पवित्र आत्मा की शक्ति के बिना अपने जीवन में सुधार लाने की बात सोचना व्यर्थ है। हम अपने हृदय को अपनी ही वृहृद इच्छा शक्ति के बल पर परिशुद्ध नहीं कर सकते हैं, यह संभंव नहीं है। हमें अपनी सच्चाई और स्वतंत्रता में खुला रहते हुए ईश्वर से संबंध स्थापित करने की जरूरत है, केवल ऐसा करने के द्वारा ही हमारे प्रयास फलदायक हो सकते हैं क्योंकि यह पवित्र आत्मा है जो हमें जीवन में आगे ले चलता है।

संहिता की धर्माज्ञा का उद्देश्य मानव को सच्चाई की राह में ले चलना है जो कि उसी गरीबी है जिसके फलस्वरुप वह अपने को सच्चे अर्थ में ईश्वर की करूणा हेतु खोलता है, जो हमें परिवर्तित करते और नया बनाते हैं। केवल ईश्वर हमारे हृदय को नवीन बना सकते हैं बर्शते कि हम उनके पास अपना हृदय खोलते हैं। वे हमारे जीवन में सारी चीजों को करते हैं और यह हमसे केवल इस बात की मांग करती है कि हम अपने को, अपना हृदय उनके समाने खुला रखें।

संहिता की अंतिम आज्ञा हमें अपने को ईश्वर के सम्मुख एक भिक्षु के रुप में देखने की शिक्षा देती है। यह हमें अपने हृदय की अस्त-व्यस्त स्थिति को स्वीकारने, अपने स्वार्थपूर्ण जीवन का परित्याग करते हुए  आध्यात्मिक गरीबी में ईश्वर की सच्ची उपस्थिति में आने की मांग करता है जहाँ ईश पुत्र हमें मुक्त करते और पवित्र आत्मा हमें शिक्षा देते हैं। पवित्र आत्मा हमारे जीवन के मार्गदर्शक हैं जबकि हम गरीबी, जरुरत की स्थिति में पड़े हुए हैं।

हमारी चंगाई ईश्वरीय कृपा में

संत पापा ने कहा कि धन्य हैं वे जो अपने को दीन-हीन समझते हैं स्वर्गराज्य उन्हीं का है। (मत्ती,5.3) यह सत्य है, धन्य हैं वे जो अपने को धोखा में नहीं रखते हुए इस बात पर विश्वास करते हैं कि बुराइयों पर विजयी होने हेतु उन्हें ईश्वरीय कृपा की जरुरत है, केवल वे ही उन्हें चंगाई प्रदान कर सकते हैं। उन्होंने कहा,“केवल ईश्वर की कृपा ही हमारे हृदय को चंगाई प्रदान करती है।” धन्य हैं वे जो अपने जीवन की बुराइयों को पहचानते और अपने हृदय की नम्रता में ईश्वर के पास पापी के रुप में आते हैं। यह अपने में कितना सुन्दर है जहाँ हम पेत्रुस को अपने स्वामी से यह कहते हुए सुनते हैं, “प्रभु मेरे यहाँ से दूर चले जाइए क्योंकि मैं तो एक पापी मनुष्य हूँ।” यह अपने में कितनी सुन्दर प्रार्थना है। दूसरों के प्रति करुणा के भाव वे ही लोग दिखा सकते हैं जिन्होंने अपने जीवन में ईश्वरीय करुणा का अनुभव किया है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों के साथ प्रभु की प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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21 November 2018, 15:51