आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा  

झूठी गवाही न देना

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर अपनी धर्मशिक्षा में झूठी गवाही न देने का अर्थ समझाया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को ईश्वर की दस आज्ञाओं पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

आज की धर्मशिक्षा माला में हम संहिता की आठवीं आज्ञा पर जिक्र करेंगे जो हमें अपने पड़ोसी के प्रति झूठी गवाही न देने की बात कहती है।

कलीसिया की धर्मशिक्षा में यह हमें “दूसरों के प्रति सत्य को झूठा साबित करने से मना करती है।” (2464) जीवन में सत्य वार्ता न करना अपने में गम्भीर बात है क्योंकि यह हमारे संबंध औऱ प्रेम के जीवन में एक रोड़ा उत्पन्न करता है। संत पापा ने कहा, “जहाँ झूठ है वहाँ प्रेम नहीं हो सकता है।” जब हम अपने बीच वार्ता की बात कहते तो यह हमारे वचनों तक ही सीमित नहीं है लेकिन यह हमारी अभिव्यक्ति, मनोभावों, यहाँ तक कि हमारे शांत रहने औऱ हमारी अनुपस्थिति के बारे में भी कहती है। एक व्यक्ति अपने में जो है उसे वह सभी रूपों में व्यक्त करता है। हम सदा अपने में वार्ता करते हैं। हम अपने जीवन की अभिव्यक्ति में जीते हैं और इसके फलस्वरुप हम अपने में सत्य और झूठ के बीच में सदैव संतुलन बनाये रखते हैं।

सत्य बोलने का अर्थ

संत पापा ने कहा लेकिन सत्य बोलने का अर्थ क्या हैॽ क्या इसका तात्पर्य ईमानदारी से हैॽ या जो सही  है केवल उसे कहना हैॽ वास्तव में यह काफी नहीं है क्योंकि इसके द्वारा कोई अपने में गलत हो सकता है। इसके द्वारा कोई अपने विवरण में सटीक हो सकता है लेकिन वह उसके अर्थ को पूर्णरूपेण समझने में गलत हो सकता है। उन्होंने कहा, “कभी-कभी हम अपने को सत्य प्रमाणित करने की कोशिश करते हैं, “मैंने अपने अनुभव के बारे में कहा।” लेकिन अपने उन विचारों के द्वारा आपने अपने को सुनिश्चित किया है। हम अपने में यह कहते हैं, “लेकिन मैंने केवल सत्य बात कही है।” शायद हो सकता है, लेकिन इसके द्वारा आपने अपने व्यक्तिगत विचारों को अभिव्यक्त किया या गुप्त तथ्यों का खुलासा किया है। हमारे गपशप हमारी एकता को कितना अधिक नुकसान पहूँचाते हैं क्योंकि हम अपने में संवेदनशील नहीं होते हैं। संत पापा ने कहा गपशप करना हमें मार डालती है जिसके बारे में प्रेरित संत याकूब हमें अपने पत्र में कहते हैं। बकवाद, गपशप करने वाले मार डालने वाले के समान होते हैं, वे दूसरों को मार डालते हैं क्योंकि उनकी जीभ चाकू की भांति होती है। उन्होंने कहा कि हमें अपने जीवन में सावधानी बरतने की जरुरत है। एक गप करने वाला या एक गपशप अपने में आतंकवादी की तरह है क्योंकि वह अपने मुख से विस्फोटक फेंक कर चला जाता है। उसके द्वारा फेंका गया विस्फोटक दूसरों के सम्मान को हानि पहुँचाता है जबकि वह चुपचाप चला जाता है। संत पापा ने कहा कि आप इसे याद रखें की गप्पी हमें मार डालती है।

येसु ख्रीस्त सत्य के स्वरुप

लेकिन, हमारे लिए सत्य क्या हैॽ इस सवाल को हम पिलातुस द्वारा येसु से पूछता हुए पाते हैं, जहाँ येसु उसके सामने खड़े आठवीं आज्ञा की पूर्णत को दिखलाते हैं।(यो.18.38) वास्तव में आठवीं आज्ञा, “झूठी गवाही न देना” न्याय-संबंधी भाषा है। यह येसु के दुःखभोग, मृत्यु और पुनरूत्थान की कथा में अपनी चरम-सीमा पर पहुंचती है।

येसु पिलातुस के सावल के उत्तर में कहते हैं, “मैं इसीलिए जन्म औऱ संसार में आया कि मैं सत्य का साक्ष्य दूँ।(यो.18.37) येसु अपने इस “साक्ष्य” को अपने दुःखभोग औऱ मृत्यु के द्वारा देते हैं। सुसमाचार लेखक संत मारकुस इस बात का जिक्र करते हुए कहते हैं कि शतपति जो येसु के क्रूस के सामने खड़ा उन्हें अंतिम सांस लेते हुए देख रहा था इस बात का साक्ष्य देते हुए कहा है, “निश्चय ही यह व्यक्ति ईश्वर का पुत्र था।” (15.39) संत पापा ने कहा, “हाँ, यह येसु के मरण में एक निरतरंता को व्यक्त करता है जो हमें पिता के प्रति उनकी निष्ठा और करूणामय प्रेम को दिखलाता है।

हम येसु का जीवन और उनकी मृत्यु, उनका अपने पिता के साथ एक संबंध का प्रतिफल है जो सत्य को परिभाषित करता है। (यो.14.6) ईश्वर की संतान के रुप में, अपने पुनरूत्थान के द्वारा वे हमें पवित्र आत्मा को प्रदान करते हैं जोकि सत्य का आत्मा है जो हमारे हृदयों को ईश्वर पिता के साथ संयुक्त करता है। (रोमि.8.16)

हमारे कार्य सत्यता के प्रतीक

संत पापा ने कहा हममें से प्रत्येक जन अपने कार्यों में इस सत्य को स्वीकारते या इसे नकारते हैं। यह हमारे रोज दिन के जीवन में छोटी चीजों से लेकर बड़ी बातों में होती है। यह सदैव उसी तर्क पर कार्य करती है जहाँ हम माता-पिता और नाना-नानियों के द्वारा झूठ नहीं बोलने की शिक्षा दिये जाते हैं।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम अपने आप से पूछें, “ख्रीस्तीय के रुप में हम अपने किन कार्यों के द्वारा सत्य का साक्ष्य देते हैंॽ क्या मैं सत्य का साक्ष्य प्रस्तुत करता हूँ या अपने में झूठा व्यक्ति हूँॽ” ख्रीस्तियों के रुप में हम अपने में अतिविशिष्ट स्त्री और पुरूष नहीं हैं। लेकिन हम सभी स्वर्गीय पिता की संतान हैं, जो भले हैं जो हमें कभी हताश नहीं करते हैं। वे हमारे हृदय को अपने भाई-बहनों के प्रेम से भरते हैं। इस सत्य को हम अपने वचनों में व्यक्त नहीं करते वरन् इसे हम अपने जीवन और हर एक कार्य में जीते हैं।

सत्य अनंत प्रेम के रुप में ईश्वरीय पिता के चेहरे का प्रकटीकरण है। यह हमारे लिए येसु ख्रीस्त में प्रकट हुआ है जो मानव बनकर धरती में आये, हमारे लिए क्रूस पर मर कर पुनः जीवित हुए हैं। वे अपने को उनमें प्रकट करते हैं जो उन्हें अपने जीवन में अंगीकृत करते और उनके मनोभावों को धारण करते हैं।

झूठी गवाही न देने का अर्थ

संत पापा ने कहा कि झूठी गवाही न देने का अर्थ ईश्वर की संतान स्वरुप जीवन यापन करना है जो अपने को कभी अस्वीकार नहीं करता, जो कभी झूठ नहीं बोलता, जो सदैव अपने जीवन के सभी कामों में सत्य का अनुसारण करते हुए पिता के प्रति निष्ठावान बना रहता है। हम ईश्वर पर विश्वास करते हैं जो अपने में एक महान सत्य है, वह ईश्वर जो पिता के रुप में हम सभों को प्रेम करते हैं जहाँ से हमारे लिए सत्य की उत्पति होती है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों के साथ प्रभु की प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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14 November 2018, 14:18