बोलोग्ना शहर में "शांति के पुल" बैठक बोलोग्ना शहर में "शांति के पुल" बैठक 

'विश्वासीगण पुलों के निर्माण और शांति के कारीगर बनें', संत पापा

संत पापा फ्राँसिस ने संत एजीदियो समुदाय द्वारा आयोजित "शांति के पुल" बैठक के प्रतिभागियों को एक संदेश भेजा है। इस साल इटली के बोलोग्ना शहर में 14 से 16 अक्टूबर तक सभा का आयोजन किया गया है।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार 15 अक्टूबर 2018 (वाटिकन न्यूज) : अपने संदेश में सभा में उपस्थित बोलोग्ना के महाधर्माध्यक्ष मत्तेयो मरिया जुप्पी, ख्रीस्तीय कलीसियाओं और समुदायों के प्रतिनिधियों और अन्य धर्मों के प्रतिनिधियों को संबोधित कर कहा कि यह घटना 32 साल पहले अक्टूबर में असीसी शहर में हुई ऐतिहासिक बैठक के पद चिन्हों का परिणाम है।

शांति के लिए अथक रूप से प्रार्थना की आवश्यकता

संत पापा ने इस बात पर गौर किया कि असीसी की ऐतिहासिक बैठक के बाद से अब तक विश्व अनेक परिवर्तन से गुजरा है, हालांकि यह वार्षिक बैठक, शांति के उपहार के लिए अथक रूप से प्रार्थना करने की निरंतर आवश्यकता को प्रमाणित करता है।

इस साल चुने गए विषय "शांति के पुल", पर टिप्पणी करते हुए, उन्होंने कहा कि यह उन संबंधों को बनाने का निमंत्रण है जो वास्तविक बैठकों का नेतृत्व करते हैं, एकजुट होने वाले बंधनों को बांधने के लिए और उन तरीकों का पालन करने के लिए जो वैश्विक स्तर पर संघर्ष को दूर करने में मदद करते हैं। दुर्भाग्यवश दूरी को बढ़ाने और खुद को अपने हित में बंद करना आसान लगता है। "हम सभी मिलकर काम करने और लोगों को एकजुट करने के लिए बुलाये गये हैं।" भविष्य के लिए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की बुनाई और इतिहास के घावों को ठीक करने के लिए यह जरूरी है।

कभी भी युद्ध और आतंकवाद स्वीकार्य नहीं

संत पापा ने उन लोगों से आग्रह किया है जो युद्ध के राक्षस, आतंकवाद के पागलपन, जीवन को भस्म करने वाले हथियारों की भ्रामक शक्ति से इस्तीफा नहीं देते।

उनका कहना है, "हम उदासीनता को लोगों पर हावी होने नहीं दे सकते, जो उन्हें युद्ध जैसी भयानक बुराई की ओर ले जाती है। इस युद्ध की कीमत सबसे ज्यादा गरीबों और कमजोर लोगों को चुकानी पड़ती है।

संत पापा ने कहा कि विश्वासियों के रूप में हम अपनी जिम्मेदारी को निभायें और खुद अपनी शांति से संतुष्ट न हों पर विश्व में शांति लाने का हर संभव प्रयास करें।

विश्वासियों की ज़िम्मेदारी

वे कहते हैं, "यदि धर्म शांति के मार्गों पर नहीं चलते हैं, तो वे खुद से इनकार करते हैं।" हमारी भिन्नता, हमें एक दूसरे के खिलाफ नहीं वरन हमें हमेशा, हर जगह और हर परिस्थिति में अपने आप को खोलने के लिए प्रोत्साहित करती है।

पहली बैठक की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर संत पापा ने दो साल पहले असीसी में दिये गये अपने संदेश को याद किया, जिसमें उन्होंने "शांति की दुनिया बनाने के लिए विश्वासियों की ज़िम्मेदारी" पर प्रकाश डाला था।

उन्होंने कहा कि विशेष रूप से जहां संघर्ष है वहाँ सभी धर्म के पुरुषों और महिलाओं के एक साथ आना चाहिए क्योंकि हमारा भविष्य एक साथ जीना है। "यही कारण है कि हम खुद को अविश्वास, कट्टरपंथ और घृणा के भारी बोझ से मुक्त करने के लिए बुलाये गये हैं।" विश्वासियों को शांति के कारीगर बनना है, साथ ही धर्म गुरुओं को वार्तालाप के ठोस पुल और शांति के रचनात्मक मध्यस्थ बनना है।

संत पापा ने राष्ट्रों के नेताओं से भी अपील की, कि वे शांति के तरीकों की तलाश करें, पार्टी के हितों से ऊपर उठकर और शांति हेतु गरीबों की आवाज सुनें और युवा पीढ़ियों की उम्मीदों को कभी निराश न करें।

युवा लोग

संत पापा फ्राँसिस युवा लोगों को "शांति के स्कूल में बड़े होने और शांति के शिक्षक बनने" हेतु आमंत्रित किया। उन्होंने कहा कि इन दिनों काथलिक कलीसिया युवा पीढ़ियों पर विशेष ध्यान दे रही है। बहुतों के लिए यह दुनिया शत्रुतापूर्ण और हिंसक दिखाई देती है और बहुत से लोग शांति को नहीं जानते हैं और कई लोग नहीं जानते कि एक प्रतिष्ठित जीवन क्या है।

संत पापा ने कहा,"विश्वासियों के रूप में, हम युवाओं के दिल में शांति के लिए निकलने वाले क्रंदन और आने वाले भविष्य को एक साथ बनाने की तात्कालिकता महसूस कर सकते हैं। इसलिए पीढ़ियों के बीच पुलों का निर्माण करना जरूरी है।" हमें युवा लोगों को यह सीखना चाहिए कि दीवारों के निर्माण के बजाय पुलों का निर्माण करना आसान है और ईश्वर की मदद से यही जीवन में आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है और यह एक दूसरे का समर्थन करता है

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15 October 2018, 17:12