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धर्माध्यक्षीय धर्मसभा का उद्घाटन, संत पापा का ख्रीस्तयाग प्रवचन

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवार 03 अक्टूबर को संत पेत्रुस महागिरजाघऱ के प्रांगण में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए युवाओं पर धर्माध्यक्षीय धर्मसभा का उद्घाटन किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने मिस्सा प्रवचन में पवित्र आत्मा की शक्ति का आहृवान करते हुए कहा, “वह सहायक, वह पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम में भेजेगा, तुम्हें सब कुछ समझा देगा। मैंने जो कुछ तुम्हें बतलाया, वह उसका स्मरण दिलायेगा।” (यो.14.26)

इस तरह येसु सीधे तौर से अपने शिष्यों को उनके प्रेरितिक कार्य के दौरान अपने सहचर्य का आश्वासन देते हैं, पवित्र आत्मा शिष्यों के हृदय में येसु ख्रीस्त की शिक्षा और उनके साथ अपने जीवन की यादगारी को सुरक्षित रखने में मदद करता है। यह पवित्र आत्मा है जो हमारे जीवन में सुसमाचार की सुन्दरता और स्मृति को जीवन की अनंत खुशी और ताजगी का स्रोत बनाता है।

पवित्र आत्मा से निवेदन

कलीसिया के जीवन की इस कृपापूर्ण समय में हम पवित्र आत्मा से निवेदन करते हैं कि वे येसु ख्रीस्त की यादगारी को जो वचनों के माध्यम से हमारे लिए आती है, हमारे हृदय को प्रज्जवलित करें। (लूका.24.32) संत पापा ने कहा कि यादगारी ही है जो हमें स्वपन देखने और आशा में बने रहने की शक्ति को नवीन करने हेतु मदद करती है। हमारा यह विश्वास है कि आज के युवा उन बातों को अपने जीवन का अंग बनाते हुए दूसरों के साथ भविष्यवाणी और नये दृष्टिकोण के रुप में साझा कर पायेंगे जो वयस्कों के रुप में हमारे सपने और आशा हैं।

पवित्र आत्मा धर्मसभा में सहभागी हो रहे हम सबों को अपने सपनों और आशा के वरदानों से अभियंजित करे, जिसके फलस्वरुप हम युवाओं को भविष्यवाणी और नये दृष्टिकोण के उपहार से पोषित कर सकें। पवित्र आत्मा हमें स्मृति बनने का उपहार प्रदान करे जो कि अपने में कर्मठ, सजीव और प्रभावकारी है, जो हमारी कमजोरियों, पापों और गलतियों के कारण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लिए समाप्त या नष्ट नहीं होती। इसके बदले यह स्मृति हमारे हृदयों को प्रज्वलित करे और पवित्र आत्मा के निर्देशों की पहचान करने में मदद करे। संत पापा ने अपने प्रवचन के दौरान चीन के दो धर्माध्यक्षों का भी स्वागत किया जो धर्माध्यक्षीय सभा में पहली बार सहभागी होने हेतु आय़े हैं।

युवाओं को समझने हेतु हृदय खोलना

संत पापा ने कहा कि हम आशा से अभियंजित हो कर इस कलीसियाई मिलन की शुरूआत करें। यह हमारी क्षितिज का विस्तार करें, हमारे हृदयों को खोलते हुए दुर्बल मनोवृतियों को मजबूती प्रदान करें जो हमें युवाओं से तटस्थ कर देता, जहाँ वे अपने जीवन के उफान में उलझे रहते, विश्वासी समुदाय की कमी के कारण अपने को अनाथ पाते और दिशा-निर्देश के बिना अपने जीवन को अर्थहीन समझते हैं। (प्रेरितिक प्रबोधन ऐभनजेली गौदियुम,49)

आशा की शक्ति

आशा हमें विकसित करती और हमारी धारणाओं को जिसके कारण हम अपने में यह कहते हैं, “इसे हमेशा ऐसा ही किया जाता है”, यह हमें चुनौती प्रदान करती है। आशा हमें अपने जीवन में खड़ा होते हुए युवाओं की आंखों में सीधे तौर से देखने और उनकी परिस्थितियों को समझने का निमंत्रण देती है। यह आशा हमें अनिश्चितता की स्थितियों का समाधान, बहिष्कार और हिंसा को दूर करने का निमंत्रण देती है, जहाँ हम युवाओं को पड़ा हुआ पाते हैं।

अतीत में लिये गये बहुत सारे निर्णयों को लेकर युवा वर्तमान में इस बात की आशा करते हैं कि हम निष्ठापूर्ण ढ़ग से उनका साथ दें जिससे वे अपने जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुए सम्मान में जी सकें। वे हमसे सृजनात्मक क्रियाशीलता की मांग करते हैं, एक गतिशीलता की जो बुद्धिमता, जोश और अपने में आशा से परिपूर्ण हो। वे यह नहीं चाहते कि हम उन्हें जीवन के अंधकारमय क्षणों में यूँ ही अकेले छोड़ दें जो उनके जीवन में उत्पीड़न का कारण बनता हो।

 स्वपन देखने का उपहार 

येसु ख्रीस्त आज हमें साथ मिलकर स्वपन देखने का एक उपहार प्रदान करते हैं जो हमसे इस बात कि मांग करती है, जिसे संत पौलुस आज के पहले पाठ में कहते हैं, “कोई केवल अपने हित का नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।” (फिलि.2.4) यह हमें नम्रता में बने रहते हुए दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझने की माँग करता है। इस मनोभाव के द्वारा हम दूसरों को सुनते हैं जो हमें कलीसिया में येसु की इच्छा को पहचाने हेतु सहायता करता है। संत पापा ने कहा कि यह हमें वास्तव में अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और आत्म-केन्द्रीकरण की भावना के प्रति सजग रहने का आहृवान करता है। सुसमाचार के प्रति प्रेम और जिन्हें हमें सौंपा गया है, हमें अपनी क्षितिज का विस्तार करने और अपने प्रेरितिक उत्तरदायित्वों का उचित निर्वाहन की मांग करता है। ऐसा करने के द्वारा हम सभों की भलाई करते और यह हमारे लिए भी फायदेमंद होता है। ऐसे मनोभाव के बिना हमारे सारे प्रयास बेकार हो जाते हैं।

सुनना लोगों के जीवन में प्रवेश करना

प्रार्थनामय स्थिति में निष्ठापूर्वक, बिना किसी पूर्वाग्रह से दूसरों को सुनना हमें लोगों के जीवन में प्रवेश करने हेतु मदद करता है। ईश्वर को सुनना, जिसके फलस्वरूप हम लोगों के दुःखों को सुनते हैं, अपने लोगों को सुनना, जहाँ हम उनकी सांसों को लेते हुए ईश्वर के बुलावे को स्वीकार करते हैं। (परिवार-धर्मसभा की तैयारी के दौरान जागरण प्रार्थना का संबोधन, 4 अक्टूबर 2014)

हमारे जीवन के ये मनोभाव हमें नौतिकतावादी या संभ्रांतवादी आदर्शों के जाल में गिरने से बचाता है। यह हमें अपने जीवन में अमूर्त आदर्श विचारों का वाहक होने नहीं देता है जो मानव जीवन की यथार्थता का स्पर्श नहीं करता है। (जे.एस. बेरगोलियो, धर्मसंधियों हेतु चिंतन, 45-46)

माता मरियम से प्रार्थना

संत पापा ने सभी विश्वासियों को माता मरियम की सुरक्षा में सुपूर्द करते हुए कहा कि वे हमारी मधुर स्मृतियों को सुनती और जानती हैं, हमें अपने जीवन में पवित्र आत्मा की निशानी को देखने और जानने में मदद करें, जिससे हम अपने सपनों और अपनी आशा में युवाओं को भविष्यवाणी करने हेतु सदैव प्रोत्साहित कर सकें।

अपने प्रवचन के अंत में, संत पापा फ्रांसिस ने धर्मसभा में सहभागी धर्माध्यक्षों का अभिवादन करते हुए कहा कि द्वितीय वाटिकन महासभा की समाप्ति के समय हममें से बहुत कोई अपने धर्मसंघी जीवन के पहल चरण, अपनी युवावास्था में थे। उस समय की धर्मसभा का अंतिम संबोधन उस समय के युवाओं के नाम था। वह संदेश जिसे हमने अपने युवाकाल में सुना बहुत हद तक हमारी मदद करेगा यदि हम उन्हें अपने हृदयों में पुनः सुनें जिसे कवि फ्रेडिक होल्डलिन अपने शब्दों में व्यक्त करते हैं, “मे द मैन होल्ड फास्ट टू वॉट द चाईल्ड प्रोमिसड।” (व्यक्ति अपने उस प्रतिज्ञा का पालन दृढ़तापूर्वक करता है जिसको उसने बचपन में किया है।)

युवाओं से कलीसिया की आशा

द्वितीय वाटिकन महाधर्मसभा के धर्माध्यक्षों ने हमें कहा,“कलीसिया चार वर्षों से कार्यशील है जिससे वह अपने स्वरूप को नवीकृत कर सके, अपने संस्थापक का प्रत्युत्तर संजीव रुप में दे सके, जहाँ येसु ख्रीस्त अनंतकाल तक युवा बने रहते हैं।” जीवन के पुनः परिक्षण की विषयवस्तु आप की ओर अभिमुख होती है। यह आप ले लिए है, विशेषकर, आपके लिए जिससे आप के विचारों से उसकी ज्योति भविष्य में प्रदीप्त होती रहे। कलीसिया इस विषय पर चिंता करती है कि जिस समाज का निर्माण आप करने वाले हैं वह दूसरों का सम्मान करे, दूसरों को स्वतंत्रता प्रदान करे और व्यक्ति के अधिकारों को पहचानें। ये आप हैं...जिनके ऊपर वह विश्वास करती है, जिससे आप अपने विश्वास को जीवन में व्यक्त कर सकें जो जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है, जो एक भले और न्यायी ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करता है। हम पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा ईश्वर के नाम पर आप से यह निवेदन करते हैं कि आप अपना हृदय विश्व के लिए खोलें, अपने भाई-बहनों की पुकार पर ध्यान दें, अपने युवावास्था की शक्तियों को उनकी सेवा में लगा सकें। अपने स्वार्थ के विरुद्ध लड़ें। हिंसा और घृणा की अपनी प्रवृत्तियों को अस्वीकार करें जो युद्ध और कई तकलीफों को जन्म देती है। आप उदार बनें, शुद्ध, सम्मानित और निष्ठावान हों जिससे आप अपनी शक्ति से एक बेहतर संसार का निर्माण कर सकें जो आपके बुजूर्गों से उत्त्म हो।” (पौल 6वें, द्वितीय वाटिकन महासभा अन्तरधार्मिक वार्ता सम्मेलन,विश्व के युवाओं को संबोधन, 8 दिसम्बर 1965)  धर्मसभा के धर्माध्यक्षों कलीसिया आप को विश्वास और प्रेम भरी नजरों से देखती है।

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युवाओं पर धर्माध्यक्षीय धर्मसभा का उद्घाटन हेतु ख्रीस्तयाग
03 October 2018, 16:23