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संत पापा धर्मसभा के समापन मिस्सा में संत पापा धर्मसभा के समापन मिस्सा में 

सुनना, पड़ोसी बनना और साक्ष्य देना

संत पापा फ्रांसिस ने रविवार 28 अक्टूबर को संत पेत्रुस के महागिरजा घर में युवाओं पर चल रही धर्माध्यक्षीय धर्मभा का समापन ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

उन्होंने मिस्सा के दौरान संत मारकुस रचित सुसमाचार के आधार पर अंधे बार्थोलोमी की चंगाई पर अपना चिंतन करते हुए कहा कि सुसमाचार का यह अंश येसु के येरुसलेम प्रवेश जहां वे मार डाले जाते और मृतकों में जी उठते हैं, के पूर्व का भाग है। इस प्रकार बार्थोलोमी येसु के अंतिम अनुयायी में से एक है जो येरोखी के मार्ग में भीख मांग रहा होता है, उनका शिष्य बनता और अन्यों की तरह येरुसलेम प्रवेश करता है। इस “धर्मसभा” में हमने भी एक साथ मिलकर यात्रा की है। सुसमाचार का यह अंश हमारे विश्वास की यात्रा में तीन मूलभूल बातों की ओर हमारा ध्यान इंगित कराता है।  

बार्थोलोमी का जीवन

संत पापा ने कहा कि सर्वप्रथम बार्थोलोमी पर चिंतन करें। उसके नाम का अर्थ तिमेयुस है जैसे कि सुसमाचार इसे हमारे लिए प्रस्तुत करता है। यद्यपि हम उसके पिता का जिक्र सुसमाचार में कहीं नहीं पाते हैं। वह अपने घर से दूर रास्ते के किनारे पड़ा रहता है। वह अपने में परित्यक्त है उसे कोई प्रेम नहीं करता है। वह अपने में अंधा है और उसकी बातों को कोई नहीं सुनता है। येसु उनकी पुकार को सुनते हैं। जब वह उनके पास आता तो वे उसे बातें करने देते हैं। हमारे लिए इस बात की कल्पना करना कठिन नहीं है, कि एक अंधे व्यक्ति के रुप में वह येसु से पुनः देख सकने की कृपा मांगता है। येसु समय लेते हुए उसकी बातों को सुनते हैं। यह हमारे विश्वास की यात्रा का पथ कदम है। सुनना। यह सुनने की प्रेरिताई है जहाँ हम बोलने के पहले सुनते हैं।

दूसरों को सुनना

बहुत से लोगों ने बार्थोलोमी को चुप रहने की हिदायत दी। ऐसे शिष्यों के लिए, एक व्यक्ति जो राह में बिना निर्धारित कार्यक्रम के आ जाता एक परेशानी सा-दिखलाई देता है। शिष्य अपने स्वामी के निर्धारित कार्यक्रम को लेकर सतर्कता बरतते हैं, वे किसी दूसरे को सुनने के बदले स्वयं अपने में बातें करते हैं। वे येसु का अनुसरण कर रहे होते हैं लेकिन उनके मन और दिल में उनकी अपनी ही सोच है। संत पापा ने कहा कि हम अपने को ऐसे मनोभाव से निरतंर बचाये रखने की जरूरत है। येसु उन लोगों को परेशानी के रुप में नहीं देखते जो उन्हें पुकारते और सहायता की मांग करते हैं बल्कि वे उन्हें अपने लिए एक चुनौती के रुप में देखते हैं। हमारे लिए किसी के जीवन को सुनना कितना महत्वपूर्ण है। स्वर्गीय पिता की संतानें अपने भाई-बहनों की चिंता करते हैं वे व्यर्थ में बकबक नहीं करते अपितु अपने पड़ोसियों की आवश्यकताओं पर ध्यान देते हैं। वे धैर्य और प्रेम से दूसरों को सुनते हैं जैसे कि ईश्वर हमारी प्रार्थनाओं को सुनते हैं चाहे वे कितने बार क्यों न दुहराये जायें।  ईश्वर कभी नहीं थकते हैं। वे अपने खोजने वाले से सदैव खुश रहते हैं। संत पापा ने कहा कि हम भी अपने लिए ईश्वर से सुननेवाले एक हृदय की मांग करें। मैं सभी व्यस्कों की ओर से आप सभी युवाओं से यह कहना चाहूँगा, “आप हमें उन अवसरों के लिए क्षमा करें जहां हमने आपको नहीं सुना है। अपने हृदय को खोलते हुए आप को सुनने के बदले हमने आप की शिकायतें की हैं। ख्रीस्तीय की कलीसिया के रुप में हम प्रेम से आप को सुनना चाहते हैं क्योंकि ईश्वर की नजरों में आप का जीवन कीमती है, ईश्वर युवा हैं और वे युवाओं को प्रेम करते हैं, दूसरा कि आप का जीवन हमारे लिए कीमती है जो हमें आगे बढ़ने को मदद करता है।”  

सुनने का बाद हमारे विश्वास की यात्रा का दूसरा कदम एक पड़ोसी बनना है। इसे हम येसु के जीवन में देखते हैं। वे स्वयं बार्थोलोमी के पास जाते न कि भीड़ में से किसी को प्रतिनिधि के रुप में उसके पास भेजते हैं। वे उसे पूछते हैं, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए क्या करूँॽ” तुम क्या चाहते हो... येसु ख्रीस्त बार्थोलोमी के संबंध में अपने को पूर्णरूपेण वशीभूत पाते हैं। वे उसे अपने से दूर नहीं करते हैं... मैं क्या करूंॽ हम यहाँ केवल येसु के वचन को ही नहीं देखते वरन् वे उसके लिए कुछ करने क चाह रखते हैं, तुम्हारे लिए... संत पापा ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि अपनी सुविधा अनुसार नहीं बल्कि इस परिस्थिति में तुम्हारे लिए क्या जरूरी है। ईश्वर हमारे साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। वे हमारे जीवन का अंग बनते और हमारी चाह के अनुरूप अपने प्रेम को हमारे लिए व्यक्त करते हैं। अपने कार्यों के द्वारा येसु हमें अपना संदेश देते हैं। इस तरह विश्वास हमारे जीवन में फलहित होता है।

विश्वास का विकास

विश्वास जीवन के साथ विकासित होता है। जब विश्वास केवल सिद्धांतों के अनुरूप अपने को प्रकट करता तो यह केवल सिर तक ही सीमित हो कर जाता और हृदयों का स्पर्श नहीं करता है। वहीं जब यह कार्य तक सीमित हो जाता तो हम इसे नौतिक और सामाजिक कार्य के रुप में पाते हैं। संत पापा ने कहा कि विश्वास इन सारी चीजों से बढ़कर है, यह एक जीवन है। यह ईश्वर के प्रेम में अपने जीवन को जीना है जो हमारे जीवन को परिवर्तित करता है। हम अपने जीवन में सिद्धांत औऱ कार्यावाद के बीच चुनाव नहीं कर सकते हैं। हम ईश्वर के कार्यो को ईश्वरीय योजना के अनुरूप करने हेतु बुलाये गये हैं, जहाँ हम ईश्वर के निकट रहते और दूसरे के साथ एकता में बने रहते हैं। निकटता हमारे जीवन का वह रहस्य है जहाँ हम अपने विश्वासी हृदय को वार्ता करने देते हैं।  

उत्तरदायित्व से दूर भागना

संत पापा ने पड़ोसी बनने के अर्थ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अपने भाई-बहनों के जीवन में ईश्वरीय नयेपन को लाना है। यह हमारे जीवन की परीक्षाओं में औषधि का कार्य करता है। हम अपने आप में पूछे की ख्रीस्तियों के रुप में क्या हम दूसरों के लिए पड़ोसी बनते हैं। क्या हम अपने आप से बाहर निकलते औऱ जो हमारी तरह नहीं हैं जो ईश्वर को उत्साह से खोजते हैं, उन्हें गले लगते हैं। एक परीक्षा, कन्नी काटने की, जिसे हम सुसमाचार में पाते हैं सदैव हमारे जीवन में आयेगी। बार्थोलोमी के संबंध में भीड़ ने ऐसा ही किया। काईन के अपने भाई हाबिल से और पिलातुस ने येसु से अपना पिड़ छुड़ाया। हम येसु का अनुसरण करना चाहते हैं अतः हम अपने जीवन में येसु की तरह अपने हाथों को गंदा करते हैं। वे रास्ते में बार्थोलोमी के लिए रुकते है। वे जीवन की ज्योति हैं (यो.9.5) जो झुक रह अंधे व्यक्ति की सहायता करते हैं। हम इस बात का अनुभव करें कि येसु हम प्रत्येक के लिए अपने हाथों को गंदा किया है। हम क्रूस की ओर अपनी निगाहें फेरते हुए याद करें, येसु मेरे पाप और मृत्यु में मेरा पड़ोसी बना। उनके प्रेम के खातिर जब हम दूसरों के पड़ोसी बनते हैं तो हम नये जीवन के दाता बनते हैं जो दूसरों को बचाता है।

येसु को पाने की चाह

साक्ष्य देना, संत पापा ने कहा कि हम उन शिष्यों की याद करें जिन्हें येसु बार्थोलोमी को बुलाने का आग्रह करते हैं। वे उसके पास कोई सिक्का ले कर नहीं जाते जिससे वह चुप हो जाये। वे येसु के नाम पर जाते हैं। वे केवल तीन शब्द उच्चरित करते हैं। “द्दढ़ रखो, उठो, वे तुम्हें बुला रहें है।” सुसमाचार के अन्य स्थानों पर भी येसु कहते हैं, “द्दढ़ रखो”। येसु उसे कहते “उठो” और उसे आध्यात्मिक और शारीरिक चंगाई प्रदान करते हैं। येसु हमें बुलाते है और जो उनका अनुसरण करते वे उनके हृदय को परिवर्तित करते हैं। वे उन्हें गिरे हुए क्षणों से उठाते और उन्हें अधंकार से ज्योति में ले चलते हैं। बहुत से लोग हैं बार्थोलोमी की तरह अपने जीवन में प्रकाश की खोज में हैं। वे अपने जीवन में सच्चे प्रेम को पाना चहाते हैं। वे भीड़ में बार्थोलोमी की तरह येसु को पुकारते हैं, जीवन की चाह रखते लेकिन उन्हें बहुत बार झूठी प्रतिज्ञा मिलती है, बहुत कम लोग हैं जो सच्चे अर्थ में उनकी चिंता करते हैं।

जरूरतमंदों के पास जाना

यह ख्रीस्तीय व्यवहार नहीं कि हम जरूरतमंद भाई-बहनों को अपने पास आने की प्रतीक्षा करें, वे हमारे द्वारों को खटखटायें बल्कि हमें उनके पास जाने की जरुरत है जिससे हम अपने को नहीं वरन् येसु को उनके पास ले सकें। वे हमें शिष्यों की भालि लोगों के पास भेजते हैं जिससे हम उन्हें प्रोत्साहित करते हुए येसु के नाम पर ऊपर उठा सकें। वे हमें अपने इस संदेश से भेजते हैं, “ईश्वर आप के कहते हैं कि आप अपने को उनके द्वारा प्रेम करने दें।” हम इस मुक्तदायी संदेश को ले कर दूसरों के पास जाने के बादले में अपने आप को लेकर जाते हैं और अपनी योजनाओँ और मुहर को कलीसिया को देते हैं। हम कितनी बार येसु के वचनों को अपना बनाने के बदले अपनी विचारों को उनके वचनों के रुप में लोगों से समक्ष रखते हैं। कितनी बार लोग येसु ख्रीस्त की मित्रतापूर्ण उपस्थिति को देखने के बदले हमारे संस्थानों के भार को देखते हैं। इस संदर्भ में हम एजीओ की भांति कार्य करते हैं, एक एजेन्सी की तरह जो राष्ट्र द्वारा संचालित की जाती है न कि मुक्ति प्राप्त समुदाय जो येसु की खुशी में जीवन यापन करता है।

विश्वास हमारे जीवन की राह

सुनना, पड़ोसी बनना और साक्ष्य देना। आज का सुसमाचार जो विश्वास की यात्रा है एक सुन्दर और अश्चर्यजनक रुप में समाप्त होता है जब येसु कहते हैं, “ जाओं, तुम्हे विश्वास ने तुम्हार उद्धार किया है ” यद्यपि बार्थोलोमी ने अपने विश्वास की अभिव्यक्ति नहीं की और न ही उसने कोई अच्छा कार्य किया था उसके केवल करुणा की मांग की थी। अपने में मुक्ति प्राप्त करने का एहसास ही हमारे विश्वास की शुरूआत है। यह हमारे लिए येसु से मिलने का एक सीधा रास्ता है। वह विश्वास जिससे कारण बार्थोलोमी को मुक्ति मिली उसे ईश्वर का उचित ज्ञान नहीं था वरन् ईश्वर को खोजने और उससे मिलने की तीव्र आभिलाषा है। विश्वास का संबंध मिलन से है न की सिद्धांत से। मिलन में येसु हमारे जीवन में आते, मिलन कलीसिया की धड़कन है। जब ऐसा होता है तो हम अपने जीवन में उपदेश नहीं वरन् अपने जीवन के कार्यों द्वारा साक्ष्य देते हैं।

आज हमने जो इस यात्रा में एक साथ भाग लिया है मैं आप के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करता हूँ क्योंकि आप ने साक्ष्य दिया है। हमने मिलकर, खुले रूप में ईश्वरीय प्रज्ञा हेतु कार्य करने पर विचार किया है। ईश्वर हमारे प्रयास को आशीष प्रदान करें जिससे हम युवाओं की बातों के सुन सकें, उनके पड़ोसी बन सकें उसके सामने येसु ख्रीस्त का साक्ष्य दे सकें जो हमारी जीवन की खुशी हैं। 

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29 October 2018, 17:04