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संत पापा द्वारा युवाओं को संदेश संत पापा द्वारा युवाओं को संदेश 

सुसंगत और यथार्थता पर संदेश

संत पापा पौल छःवें सभागार में युवाओं से मुलाकात करते हुए संत पापा फ्रांसिस ने उन्हें सुसंगत और यथार्थता पर दिशा-निर्देश दिये।

संत पापा फ्रांसिस ने शनिवार को वाटिकन के संत पापा पौल छःवें सभागार में युवाओं से मुलाकात करते हुए कुछ दिशा-निर्देश दिये।

युवाओं हेतु “युवा विश्वास और बुलाहटीय आत्मपरीक्षण” की विषयवस्तु से चल रही धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के अंतर्गत संत पापा हर शानिवार को संत पापा पौल छःवें के सभागार में युवाओं से मुलाकात करते हुए उनके विचारों से अवगत होगें।

इस संदर्भ में उन्होंने शनिवार को युवाओं के एक दल से मुलाकत की और उन्हें दिश-निर्देश प्रदान किया। संत पापा कहा, “ये आप के सावाल हैं, इसका उसका उत्तर धर्मसभा में सहभागी हो रहे धर्माध्यक्षगण देंगे।”  उन्होंने कहा, “यदि मैं इनका उत्तर दूँ तो मुझे धर्माध्यक्षीय धर्मसभा का अंत करना होगा। इन सवालों का उत्तर हम सभों को अपने चिंतन, आत्म-मंथन और उससे भी बढ़कर भयमुक्त हो कर देना है।”  

कुछ उपयोगी बातें

संत पापा ने युवाओं को प्रोत्साहित करते हुए उनके संबंध में अपने मूलभूत बातों को, जो उनके लिए “उपयोगी” हैं खुले रुप में व्यक्त करते हुए कहा,“युवा अपने को दर्पण में नहीं, क्षितिज की ओर देखते हैं।” “हम अपने को दर्पण में देखते हुए नहीं पाते वरन् अपने को कार्यों में पाते हैं, जहाँ हम अच्छाई, सच्चाई और सुन्दरता की खोज करते हैं।”  

सुसंगत होना

संत पापा ने “सुसंगत” शब्द पर जोर दिया जो एक युवा द्वारा साक्ष्य देने के क्रम में प्रयोग किया गया था। उन्होंने कहा, “आप एक असुसंगत कलीसिया को देखते हैं, एक कलीसिया जो धन्य वचनों का पाठ आप को पढ़ती है लेकिन उसका अनुपालन करने में स्वयं असफल हो जाती है, जो अपने में रियासती और घृणास्पद याजकीयवाद है, इस संदर्भ में मैं आपकी मनोभावों का समझ सकता हूँ। यदि आप ख्रीस्तीय हैं तो धन्य वचनों को अपने जीवन में जीने की कोशिश करें।” युवाओं को भी अपने जीवन में सुसंगत होने की अवश्यकता है। उन्होंने कहा,“यह हमारे लिए दूसरा सिद्धांत है”। उन्होंने अपने में शक्तिशाली होने के मर्म को समझते हुए कहा, “हमारी सच्ची शक्ति सेवा में है...हमारी शक्ति दूसरों के विकास में, दूसरों के सेवक बनने में निहित है।”   

युवा मूल्यवान

संत पापा ने युवाओं को इस बात की याद दिलायी कि उनका जीवन मूल्यवान है। “आप की बोली नहीं लगाई जा सकती है।” संत पापा ने कहा, “आप अपने को बिक्री होने न दें, किसी पर मोहित न हो या आप अपने में किसी आदर्श को हावी होने न दें।” आप स्वतंत्रता है और आप को अपनी इस “स्वतंत्रता के प्रेम का शिकार हो” क्योंकि इसे ईश्वर हमारे लिए प्रदान करते हैं। संत पापा ने युवाओं को “डिजिटल दुनिया से अपने संबंध” बनाये रखने की बात पर सचेत करते हुए कहा कि आप इस बदलती और विकसित होती दुनिया से अपने को अवगत रखें लेकिन आप इस पर इतना असक्त न हो जायें कि यह आपके संबंधों को जोखिम में डाल दें। “यदि ऐसा होता है तो आप अपने खाने की मेज पर अपने हाथों में मेबाईल लिये बातें करेंगे जो जीवन के ठोस, व्यक्तिगत सच्चे संबंध को खत्म कर देगा।”

यथार्थपूर्ण जीवन का महत्व

संत पापा ने कहा, “आप जीवन में जिस किसी राह का चुनाव करें, आप यह निश्चित करें कि वह अपने में ठोस हो।” उन्होंने कहा,“यदि संचार के साधन या इंटरनेट अपने को यथार्थपूर्णता से दूर ले चलते तो यह आप को छिछला बना देता है। यदि ऐसा हो तो आप इसका परित्याग करें। यदि आप के जीवन में यर्थातः कि कमी है तो आप का कोई भविष्य नहीं है।” उन्होंने यथार्थता का उदाहरण देते के क्रम में युवाओं द्वारा पूछे गये सवाल को ही उनके समाने प्रस्तुत करते हुए कहा, “हम अपने में इस मानसिकता से बाहर निकलें कि विदेशी, प्रवासी या कोई दूसरा जो हमारे बीच में आता वह हमारे लिए बुराई, एक शत्रु की भांति है।”   

लोकप्रियता और लोकप्रिय

संत पापा ने लोकप्रियता और लोकप्रिय के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा,“लोगप्रिय” लोगों की संस्कृति का भाग है जो कि लोगों के जीवन की कलाकृति, संस्कृति, लोगों के विज्ञान औऱ त्योहारों में व्यक्त होता है। “लोकप्रियता” ठीक इसके विपरीत है, हम अपने में इसके द्वारा बंद हो जाते हैं अपने में अलग हो जाते हैं। इस तरह जब हम अपने में बंद हो जाते हम आगे नहीं बढ़ते हैं। उन्होंन कहा, “प्रेम वह शब्द है जो हमारे जीवन के द्वार को खोलती है।”

यथार्थता की जड़

संत पापा ने अपने संबोधन के अंत में पुनः यर्थातता की ओर आते हुए युवाओं को अपने बुजूर्गों जनों, दादा-दादियों को सुनने और उनके साथ समय व्यतीत करने हेतु प्रोत्साहित किया। “वे आप की जड़े हैं, आपके यथार्थता की जड़ें, जिसके कारण आप अपने जीवन में बढ़ते,खिलते और फल लाते हैं।” उन्होंने कहा, “यदि वृक्ष अपने में अकेले है तो यह फलदायक नहीं होगा। वृक्ष अपने में अपनी भूमिगत जड़ों के कारण विकसित और फलहित होता है।”

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08 October 2018, 17:14