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आमदर्शन समारोह में संत पापा की धर्मशिक्षा आमदर्शन समारोह में संत पापा की धर्मशिक्षा 

ख्रीस्तीय जीवनः दांपत्य बुलाहट

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के दौरान अपनी धर्मशिक्षा में संहिता की छःवीं आज्ञा के अनुसार ख्रीस्तीय बुलाहट का मर्म समझाया।

 

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 30 अक्टूबर 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को ईश्वर की दस आज्ञाओं पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

आज हम संहिता की छःवीं आज्ञा, “व्याभिचार मत करो” पर अपनी धर्मशिक्षा को जारी रखते हैं,यह हममें ख्रीस्त के प्रति निष्ठावान प्रेम को प्रकाशित करता जो हमारे जीवन को प्रभावशाली बनाने हेतु जीवन की एक ज्योति बनती है। वास्तव में मानवीय जीवन का भावनात्मक आयाम हमें प्रेम करने हेतु निमंत्रण देता है जिसके फलस्वरुप हम अपने को निष्ठा में, दूसरे को स्वीकारने और करुणा में व्यक्त करते हैं।

ख्रीस्तीय जीवन का तत्पर्य

संत पापा ने कहा कि हम इस बात को न भूलें की इस आज्ञा का तत्पर्य विशिष्ट रुप से विवाह के संबंध में हमारी ईमानदारी से है और इसलिए यह उचित है कि हम पति-पत्नी होने के अर्थ को और अधिक गहराई से चिंतन करें। संत पापा ने पति-पत्नी के संदर्भ में संत पौलुस द्वारा एफेसियों की कलीसिया को लिखे गये पत्र के बारे में कहा कि हम इसे अपने में क्रांतकारी पाते हैं क्योंकि यह पति द्वारा पत्नी को उसी तरह प्रेम करने का निर्देश देता है जैसे कि येसु अपनी कलीसिया से प्रेम करते हैं। यह हमें सदैव प्रेम की राह में बने रहने को कहता है। हम अपने में यह कह सकते हैं कि ईमानदारी की आज्ञा किसके लिए निर्देशित हैॽ सही अर्थ में यह आज्ञा हमें सभों के लिए है यह स्वर्गीय पिता की आज्ञा है जो हममें से हरएक जन के लिए दिया गया है।

परिपक्वता का अर्थ

हम अपने में इस बात को याद करें कि मानवीय परिपक्वता हमारे जीवन में प्रेम की एक राह है जहाँ हम अपने को दूसरों से प्रेम पाने के योग्य पाते औऱ दूसरों को अपना प्रेम देते हैं। इस तरह यह हमें जीवन देता औऱ हम दूसरों को जीवन देते हैं। नर और नारी के रुप में अपने जीवन में परिपक्व होने का अर्थ अपने जीवन में पति-पत्नी औऱ माता-पिता होने के मनोभावों को जीना है। यह हमारे जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में अभिव्यक्त होती है जहां हम किसी के जीवन का भार अपने ऊपर ले लेते और इसे बिना किसी महत्वकांक्षा के प्रेम करते हैं। अतः यह एक मानवीय वैश्विक मनोभाव है जिसके आधार पर हम जीवन की सच्चाई को अपने में वहन करते और दूसरों के साथ एक गहरे संबंध में प्रवेश करते हैं।

व्यभिचारी कौन

अतः कौन अपने में व्यभिचारी, निष्ठाहीन हैॽ यह वह व्यक्ति है जो अपने में परिवपक्व नहीं है, जो अपने जीवन को अपने लिए जीता औऱ अपने जीवन की परिस्थितियों को अपनी खुशी और संतुष्टि हेतु परिभाषित करता है। अतः वैवाहिक जीवन में प्रवेश करना विवाह के उत्सव को मनाना मात्र नहीं है। इसका अर्थ अपने जीवन की यात्रा में “मैं” की भावना को “हम” के रुप में तब्दील करना है। यह एक-दूसरे की चिंता करना है। यह अपने में जीना औऱ जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी बने रहना है। संत पापा ने कहा, “यह एक सुन्दर मार्ग है।” जब हम अपनी सोच के दायरे से बाहर निकलते तो हम दंपतियों के रुप में कार्य, बातें और विचार करते हैं जो हमें अपने जीवन में एक-दूसरे को स्वीकार करने और एक-दूसरे के प्रति समर्पण की भावना से भर देता है।

हमारी बुलाहट का अर्थ

संत पापा ने कहा कि इस तरह एक विस्तृत रुप में यदि हम इसे देखें तो हर ख्रीस्तीय बुलाहट का अर्थ अपने में पति-पत्नी का जीवन है। पुरोहिताई, ख्रीस्त में और कलीसिया के लिए, एक बुलाहट है जो प्रेम में एक समुदाय हेतु ठोस और विवेकपूर्ण तरीके से, सेवा करना है जिसे येसु ख्रीस्त प्रेम में अपने चुने लोगों को प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि कलीसिया को आज उन पुरोहितों की जरुरत नहीं है जो अपने में महत्वकांक्षी हैं, उनके लिए उचित है कि वे अपने घरों में ही रहें। हमें आज उन पुरोहितों की जरुरत है जो अपने को पवित्र आत्मा से अनुप्रेरित पाते और जिसके फलस्वरुप वे निःस्वार्थ प्रेम से अपने को कलीसिया की सेवा हेतु समर्पित करते हैं। पुरोहिताई बुलाहट में एक व्यक्ति ईश्वरीय प्रज्ञा को अपने सम्पूर्ण अभिभावाकीय, करूणा और एक पति तथा एक पिता के सामर्थ्य से प्रेम स्वरुप व्यक्त करता है। उसी प्रकार एक धर्मबहन येसु ख्रीस्त के प्रति अपने समर्पित जीवन में खुशी और निष्ठा में बन रहते हुए अपने जीवन को एक दांपत्य जीवन की भांति फलहित बनाती है।

संत पापा ने कहा कि हर ख्रीस्तीय का जीवन एक दांपत्य बुलाहट है क्योंकि यह प्रेम के बंधन का प्रतिफल है जिससे फलस्वरुप हम येसु ख्रीस्त के प्रेम में नवजीवित होते हैं जैसे कि संत पौलुस हमें एफेसियों के नाम अपने पत्र में कहते हैं। येसु ख्रीस्त की निष्ठा, उनकी करूणा, उनकी उदारता में हम विश्वास से अपने वैवाहित जीवन औऱ बुलाहट की ओर देखें जो हमें अपनी लौंगिकता को पूर्णरुपेण समझने में मदद करती है।

मानव शरीर का उद्देश्य

आत्मा और शरीर के अखंडनीय रुप में मानव, अपने में नर औऱ नारी है, वह अपने में एक अति सुन्दर कृति है जो प्रेम करने औऱ प्रेम पाने हेतु बनाया गया है। मानव का शरीर आनंद प्राप्ति का एक साधन नहीं है बल्कि यह हमारे लिए प्रेम करने का एक निमंत्रण है जहाँ सच्चे प्रेम में वासना औऱ छिछलेपन का कोई स्थान नहीं है। नर औऱ नारी के रुप में हम इससे बढ़कर हैं।

संत पापा ने कहा कि छःवीं आज्ञा “व्यभिचार मत करो” अपने नकारात्मक रूप में ही हमें अपने जीवन में वास्ताविक बुलाहट की ओर निर्देशित करती है जो कि हमारा परिपूर्ण विश्वासनीय दांपत्य प्रेम है जिसे येसु ख्रीस्त ने हमें अपने को देते हुए प्रकट किया है। (रोमि.12.1)

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और तीर्थयात्रियों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपने प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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31 October 2018, 15:25