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आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा  

जीवन ईश्वर का उपहार

अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्राँसिस ने संहिता की पांचवीं आज्ञा पर धर्मशिक्षा दी।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

आज की धर्मशिक्षा संहिता के पांचवें नियम पर है यह हमें कहता है, हत्या मत करो। संत पापा ने कहा कि हम संहिता की दस आज्ञाओं के दूसरे भाग में हैं जहाँ हमें एक-दूसरे के साथ एक संबंध स्थापित करने की शिक्षा दी जाती है। संहिता की यह आज्ञा अपनी संक्षिप्तता में सुस्पष्ट है जो मानवीय संबंध में जीवन के मूल्य की सुरक्षा हेतु एक दीवार की भांति खड़ा होता है। हमारे जीवन का मूलभूत आधार क्या हैॽ संत पापा ने कहा कि यह हमारा जीवन है अतः हमें हत्या नहीं करने को कहा जा रहा है।

जीवन पर आक्रमण

हम अपने में यह कहा सकते हैं कि दुनिया में होने वाली बुराई का संक्षेपण जीवन की अवमानना के रुप में किया जा सकता है। संगठनों, विभिन्न तरह की नीतियों, विनाश करने की संस्कृति और युद्धों के द्वारा जीवन पर आक्रमण किया जाता है, हम इसे अपने रोज दिन के दैनिक समाचारों में पढ़ते और दूरदर्शन समाचारों में देखते हैं, जो मानव जीवन का विनाश करता है। वहीं एक घृणित संख्या में कुछ लोग अपना जीवन जीते हैं जो कि अपने में मानव कहलाने के योग्य नहीं होते हैं। यह जीवन का तिरस्कार है, एक दूसरे रुप में जीवन का अंत करना है।

जान लेना कितना सार्थक  

दूसरों के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर जीवन के प्रति एक विरोधाभास दृष्टिकोण भी गर्भ में पल रहे मानव जीवन का दमन कर देता है। लेकिन कैसे एक निर्दोष और असहाय का जीवन को जो विकसित हो रहा होता है उसे खत्म कर देना, चिकित्सकीय, सम्मानजनक या मानवीय कार्य हो सकता हैॽ संत पापा ने तीर्थयात्रियों से पूछा, “क्या किसी के जीवन को खत्म कर देना हमारे मुसीबत का समाधान करता हैॽ क्या यह उचित है कि हम अपनी समस्या का हल करने हेतु किसी को सुपारी देंॽ हम ऐसा नहीं कर सकते हैं। हमारे लिए यह उचित नहीं है कि हम अपनी कठिनाइयों से निजात पाने हेतु किसी का जीवन लें, यह हमारे लिए पैसा देकर दूसरे की हत्या करवाने के समान है।”  

हमारा भय हत्या का कारण

उन्होंने कहा,“ये सारी चीजें कहाँ से आती हैंॽ हिंसा और जीवन को विनाश करने के मनोभाव हमारे जीवन में   में व्याप्त भय के कारण होता है। वास्तव में किसी दूसरे का स्वागत करना हमारे व्यक्तिगत जीवन में एक तरह की चुनौती लाती है। इस विषय पर चिंतन करने का आहृवान करते हुए संत पापा ने कहा, “उदाहरण के लिए जब हमें यह पता चलता है कि गर्भ में पल रहा जीवन अपने में किसी गंभीर बीमारी का शिकार या अपंग है तो हम उसका परित्याग कर देते हैं।” माता-पिता को ऐसी विकट परिस्थिति में एक दूसरे के और अधिक निकट रहने की जरूरत है। उन्हें एक दूसरे का सही अर्थ में सहायता करने की आवश्यकता है जिससे वे अपने जीवन में आने वाले भय का सामना उचित रुप में कर सकें। लेकिन ऐसा नहीं होता है, वे जल्दबाजी में निर्णय लेते और गर्भ की रोकथाम करते हैं, अर्थात शिशु को अपने जीवन से बाहर निकाल देते, मार डालते हैं।

मानव ईश्वरीय प्रेम की निशानी

एक बीमार बच्चे को पृथ्वी पर एक बुजूर्ग व्यक्ति की भांति सभी तरह के सहायता की जरूरत है, जैसे कि बहुत सारे गरीब लोग हैं जो अपनी जीविका हेतु जीवन में अपने को सघंर्षरत पाते हैं। वह हमारे लिए एक तरह से मुसीबत के समान दिखलाई देता हो लेकिन वह हमें अपने जीवन के स्वार्थपूर्ण स्थिति से बाहर निकलने और प्रेम में विकसित होने हेतु मदद करता है क्योंकि वह हमारे लिए ईश्वर की ओर से मिलने वाला एक वरदान है। एक संवेदनशील जीवन, हमें जीवन की राह दिखलाता और हमें अपने आप से बाहर निकालते हुए प्रेम में मिलने वाली खुशी को अनुभव करने में मदद करता है। संत पापा ने इस संदर्भ में इटली के उन स्वयंसेवकों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जिन्होंने जीवन की रक्षा और जीवन को बढ़ावा देने हेतु निस्वार्थ रुप के कार्य किया है।

प्रेम हमारे जीवन का मापदण्ड 

वह कौन चीज है जिसके कारण मनुष्य जीवन को अस्वीकार करता हैॽ वे इस संसार की देवमूर्तियां हैं, धन-दौलत हैं। संत पापा ने कहा कि हमारे लिए यह बेहतर होगा कि हम इससे दूर रहें क्योंकि यह हमें सफल और शक्तिशाली बनने की राह में अग्रसर करता है। ये हमारे जीवन के अनुचित मापदण्ड हैं। हमारे जीवन का उचित और सही मूल्यांकन क्या हैॽ यह प्रेम है जिसके द्वारा ईश्वर हमें प्रेम करते हैं। येसु प्रेम के द्वारा हमारा मूल्यांकन करते हैं। वे उसी प्रेम के द्वारा सारी मावन जाति को प्रेम करते हैं।

येसु को हमारी चिंता

संत पापा ने कहा, “हत्या मत करो का सकारात्मक अर्थ क्या हैॽ” इसका अर्थ यही है कि “ईश्वर जीवन से प्रेम करते हैं।” इस प्रेम का प्रकटीकरण हमारे लिए येसु ख्रीस्त में होता है जो मानव पुत्र बनकर हमारे लिए दुनिया में आये। उन्होंने हमारे लिए अपने को तिरस्कृत, कमजोर, गरीब और दीन दुःखी बनाते हुए क्रूस की मृत्यु को स्वीकार किया। (यो.13.1) हर एक बीमार बच्चा, कमजोर बुजूर्ग, असहाय प्रवासी में, जीवन जो अपने में संवेदशील और विकट परिस्थित में है, येसु हमें खोजते हैं जिससे वे हमारे हृदयों में अपने प्रेम की खुशी को प्रकट कर सकें।

जीवन का तिरस्कार न करें

हमें हरएक जीवन को स्वीकार करने की जरुरत है क्योंकि वह जीवन येसु के रक्त के समान कीमती है। हम उनका तिरस्कार नहीं कर सकते जिन्हें ईश्वर प्रेम करते हैं। संत पापा ने कहा कि हम विश्व के लोगों को यह बतलाने की जरूरत है कि वे जीवन का तिरस्कार न करें। हमारा जीवन और साथ ही दूसरों का जीवन हमारे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ईश्वर की आज्ञा है जो हमसे कहते हैं, “हत्या मत करो”। हमें आज के  युवाओं से यह कहने की जरूरत है कि तुम अपने जीवन से घृणा मत करो। ईश्वर के कार्यों का तिरस्कार मत करो। तुम ईश्वर की कलाकृति हो। तुम अपनी क्षमताओं को कम मत आंको। अपने जीवन में नशपान करते हुए उसे मत बिगाड़ो क्योंकि यह तुम्हें मौत की ओर ले जायेगा।

दुनिया में दिखावे के अनुसार किसी के जीवन का मूल्याकंन नहीं होता है वरन हमें अपने को और दूसरों को उसी रुप में स्वीकार करने की जरूरत है जैसे ईश्वर ने हमें बनाया है। संत पापा ने कहा कि “ईश्वर हमारे जीवन को प्यार करते हैं।” हम सभी उनकी नजरों में प्यारे हैं और इसीलिए ईश्वर ने अपने पुत्र को हमारे लिए दुनिया में भेजा है। धर्मग्रंथ हमें कहा है, “ईश्वर ने संसार को इतना प्रेम किया कि उन्होंने उसके लिए अपने एकलौठे पुत्र को दे दिया, जिससे जो कोई उसमें विश्वास करें उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।” (यो.3.16)

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10 October 2018, 16:43