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श्रम, धन, यूरोप और आप्रवासियों पर सन्त पापा फ्राँसिस

इटली के इल सोले वेन्तीक्वात्रो समाचार पत्र, वेबसाईट तथा रेडियो स्टेशन पर शुक्रवार, 7 सितम्बर को सन्त पापा फ्राँसिस के साथ बातचीत को प्रसारित किया गया जिसमें सन्त पापा ने रोज़गार, धन, यूरोप एवं आप्रवासियों जैसी ज्वलन्त समस्याओं पर अपने विचार प्रकट किये हैं।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 7 सितम्बर 2018 (रेई, वाटिकन रेडियो): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि विभिन्न यूरोपीय देशों में व्याप्त बेरोज़गारी की समस्या की जड़ यूरोप का आर्थिक निकाय है जो धन को पहले स्थान पर रखता तथा रोज़गार उत्पन्न नहीं करता है .

हर गतिविधि के पीछे मानव व्यक्ति

इटली के इल सोले वेन्तीक्वात्रो समाचार पत्र, वेबसाईट तथा रेडियो स्टेशन पर शुक्रवार, 7 सितम्बर को सन्त पापा फ्राँसिस के साथ बातचीत को प्रसारित किया गया जिसमें सन्त पापा ने रोज़गार, धन, यूरोप एवं आप्रवासियों जैसी ज्वलन्त समस्याओं पर अपने विचार प्रकट किये हैं.  

सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा, "प्रत्येक और किसी भी गतिविधि के पीछे मानव व्यक्ति होता है. आजकल वित्तीय गतिविधि केंद्रीय भूमिका निभा रही है और यह सब यों ही नहीं हो रहा है. इस परिदृश्य के पीछे लोगों की इच्छा और पसंद निहित है जो मानते हैं कि धन, धन उत्पन्न करता है. यह एक ग़लती है क्योंकि वास्तविक धन श्रम से उत्पन्न होता है और धन नहीं बल्कि श्रम ही मानव प्राणियों को गरिमा प्रदान करता है. "

सन्त पापा ने कहा, "स्वस्थ अर्थव्यवस्था को उत्पादन कार्य से कभी भी अलग नहीं किया जा सकता तथा कोई भी अर्थिक गतिविधि सदैव एक नैतिक तथ्य हुआ करती है."

बेरोज़गारी ग़लत  आर्थिक प्रणाली की देन

यूरोप में व्याप्त बेरोजगारी की समस्या को सम्बोधित कर सन्त पापा ने कहा, "विभिन्न यूरोपीय देशों में व्याप्त बेरोज़गारी उस आर्थिक प्रणाली की देन है जो अब नौकरियां उत्पन्न करने में सक्षम नहीं है, इसलिये कि उसने श्रम से पहले धन को चुना है."

परिवारों एवं लोगों को प्राथमिकता देने पर सन्त पापा ने बल दिया और कहा कि समृद्धि का समान वितरण, समृद्धि उत्पादन गतिविधि में लोगों की भागीदारी, निम्न एवं मध्यम वर्गीय उद्यमों का एकीकरण, सामाजिक दायित्वों का निर्वाह, पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन तथा पर्यावरण के प्रति सम्मान अनिवार्य है. इसके साथ ही, यह स्वीकार करना नितान्त आवश्यक है कि मानव व्यक्ति मशीनों से अधिक महत्वपूर्ण हैं.

सन्त पापा ने कहा, "सबके कल्याण के लिये श्रम की एक नवीन मानवतावादी दृष्टि के निर्माण पर कार्य करना अनिवार्य है जो लोगों की गरिमा एवं उनकी प्रतिष्ठा का सम्मान करती हो. उन्होंने कहा कि श्रम जीवन का एक महान प्रश्न है क्योंकि जो व्यक्ति अपने श्रम के द्वारा ख़ुद का एवं अपने परिवार का भरण पोषण का पाता है उसमें प्रतिष्ठा के भाव विकसित होता है. इसके विपरीत, ऐसी सहायता जो नौकरियों और रोजगार क बहाली से नहीं जुड़ी होती हैं वे केवल व्यसन और ग़ैरज़िम्मेदारी को प्रश्रय देती हैं."

आप्रवासियों एवं शरणार्थियों के स्वागत का आह्वान

यूरोप में आप्रवास द्वारा प्रस्तुत महान चुनौतियों के विषय में सन्त पापा ने कहा, "जो लोग समृद्धि का आनंद लेते हैं वे, विशेष रूप से, निर्धन आप्रवासियों और अपने घरों का पलायन कर अन्यत्र शरण लेने पर मजबूर लोगों से डरते हैं."

उन्होंने कहा कि जब आप्रवासियों का स्वागत किया जायेगा तथा उन्हें वैध रूप से शरण प्रदान की जायेगी तो वे ख़ुद मेज़बान देशों की संस्कृति और उनके कानूनों का सम्मान करेंगे और इस प्रकार समाज में उनके एकीकरण की बहाली हो सकेगी तथा भय और चिन्ताओं को दूर किया जा सकेगा.  

सन्त पापा ने कहा कि इतिहास के इस महत्वपूर्ण क्षण में यूरोप को आशा एवं भविष्य के भाव की आवश्यकता है जो उदारतापूर्वक ज़रूरतमन्दों की मदद करने के द्वारा हासिल किया जा सकता है.   

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07 September 2018, 11:02