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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

पीड़ितों के सामने बहरे और गूँगे न बनें, संत पापा

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 9 सितम्बर को, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित किया

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

इस रविवार का सुसमाचार पाठ (मार. 7,31-37)  येसु द्वारा एक बहरे गूँगे की चंगाई की घटना को प्रस्तुत करता है। लोग एक बहरे-गूँगे को उनके पास ले आये और उनसे  प्रार्थना की कि आप उस पर हाथ रख दे। ईसा ने उसे भीड़ से अलग एकान्त में ले लिया। ईसा ने उसे भीड़ से अलग एकान्त में ले लिया। संत पापा ने कहा कि येसु ने इस कार्य को बड़ी सावधानी पूर्वक किया। वे लोगों को प्रभावित करना नहीं चाहते थे, न ही लोकप्रियता अथवा सफलता की खोज कर रहे थे बल्कि वे केवल लोगों की भलाई चाहते थे। इस मनोभाव के द्वारा वे हमें शिक्षा देते हैं कि अच्छाई को बिना शोर मचाये, डींग हाँके अथवा तुरही बजाये, शांत भाव से पूरा करना चाहिए।

येसु द्वारा एक बहरे-गूँगे की चंगाई

जब वह बहरा गूंगा एक किनारे खड़ा हो गया तब येसु ने उसके कानों में अपनी उँगलियाँ डाल दीं और उसकी जीभ पर अपना थूक लगाया। संत पापा ने कहा, "यह शरीरधारण को दर्शाता है कि ईश पुत्र ने मानवीय सच्चाई को पूरी तरह अपनाया। वे मनुष्य बन गये ताकि दूसरों की दुःखद परिस्थिति को समझ सकें और मानवीय स्वभाव के अनुसार उनके साथ व्यवहार कर सकें। येसु यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि चमत्कार पिता के साथ उनके संबंध के कारण हुआ है, जिसके लिए वे "आकाश की ओर आँखें उठाते और आह भरते तथा कहते हैं, ''एफ़ेता'', अर्थात् ''खुल जा''। उसी क्षण उसके कान खुल गये और उसकी जीभ का बन्धन छूट गया, जिससे वह अच्छी तरह बोला। इस तरह चंगाई उसके लिए दूसरों के प्रति एवं दुनिया के प्रति एक खुलापन था।

जरूरतमंदों को दरकिनार करना हमें बहरे-गूँगे बनता 

संत पापा ने सुसमाचार पाठ पर गौर करते हुए कहा कि उसे दोहरी चंगाई की आवश्यकता थी। पहले में बीमारी एवं शारीरिक पीड़ा से चंगाई की ताकि शरीर के स्वास्थ्य की रक्षा हो सके। जिसको धरती पर विज्ञान एवं औषधियों के काफी प्रयास के बाद भी पूरी तरह प्राप्त नहीं किया जा सकता है। दूसरी चंगाई जो शायद अधिक कठिन है और वह है डर से चंगाई। उस डर से चंगाई जो हमें रोगियों, पीड़ितों एवं विकलांग लोगों को दरकिनार करने के लिए बाध्य करता है। लोगों को दरकिनार कर देने के कई रास्ते हैं, कई बार बीमार और पीड़ित हमारे लिए समस्या बन जाते हैं जब कि यह हमारे लिए समाज के कमजोर लोगों के प्रति सहानुभूति एवं एकात्मकता प्रकट करने का अवसर होना चाहिए।

आंतरिक रूप से बहरा और गूँगा हो जाने का कारण

येसु ने चमत्कार के एक रहस्य को हमारे सामने रख छोड़ा है जिसको हम अपने आप के लिए दुहरा सकते हैं। ''एफ़ेता'', अर्थात् ''खुल जा'' इस शब्द का प्रयोग हम भी कर सकते हैं जिसको येसु ने बहरे-गूंगे को चंगाई प्रदान करने के लिए किया था। यह हमें पीड़ित एवं जरूरतमंद भाई-बहनों के प्रति उदार बनने तथा स्वार्थ एवं बंद हृदय का त्याग करने हेतु प्रेरित करता है। हृदय या व्यक्ति का अंतःस्थल, जिसमें येसु हमें ईश्वर एवं पड़ोसियों के साथ संबंध बनाने हेतु खोलने, मुक्त करने तथा पूर्णता से जीने हेतु मदद करने आते हैं। येसु मनुष्य बन गये क्योंकि मनुष्य पाप के कारण आंतरिक रूप से बहरा और गूँगा हो चुका था। वे उन्हें ईश्वर की आवाज सुनना और प्रेम की बातों को बतलाना चाहते थे ताकि वह भी अपनी ओर से प्रेम की भाषा बोल सके तथा उसे उदारता एवं आत्मत्याग की भावना में बदल सके।

माता मरियम से प्रार्थना

संत पापा ने माता मरियम से विन्ती करते हुए कहा, मरियम जो ईश्वर के प्रेम के लिए पूर्ण रूप से उदार थीं हमें सहायता दे कि हम भी ईश्वर एवं पड़ोसियों के बीच उदार रहकर जी सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

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10 September 2018, 15:01