देवदूत प्रार्थना के उपरांत आशीष देते संत पापा देवदूत प्रार्थना के उपरांत आशीष देते संत पापा 

मसीह का मिशन सफलता की चौड़ी राह पर नहीं

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 16 सितम्बर को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासयों को सम्बोधित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 17 सितम्बर 2018 (रेई)˸ संत पापा ने कहा कि आज के सुसमाचार पाठ में (मार.8:27-35), वही सवाल पुनः लौटता है जो संत मारकुस रचित सुसमाचार के पूरे पाठ में पाया जाता है कि येसु कौन हैं? इस बार स्वयं येसु अपने शिष्यों से यह सवाल कर रहे हैं। इस तरह वे धीरे-धीर अपनी पहचान के मौलिक सवालों को उनके सामने रख रहे हैं। बारहों को सीधे पूछने के पहले येसु उनसे पूछते हैं कि लोग उनके बारे क्या सोचते हैं। वे अच्छी तरह जानते थे कि शिष्य अपने गुरू की लोकप्रियता के लिए अत्यन्त संवेदनशील थे, अतः उन्होंने पूछा, ''मैं कौन हूँ, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?'' (पद.27) ऐसा पूछने से पता चला कि लोग येसु को एक महान नबी मानते थे, पर येसु लोगों के विचारों एवं उनके गपशप के अधिक इच्छुक नहीं थे। वे अपने शिष्यों द्वारा प्रसिद्ध लोगों का नाम लेने पर जरा भी रूचि नहीं लिये, क्योंकि औपचारिकता तक सीमित विश्वास एक लघु दृष्टि वाला विश्वास है।

येसु अपने शिष्यों से क्या चाहते हैं

संत पापा ने कहा कि येसु चाहते हैं कि कल और आज के उनके शिष्य उनके साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित करें तथा उन्हें अपने जीवन के केंद्र में रखें। यही कारण है कि वे उन्हें अपने आपको झांककर देखने के लिए प्रेरित करते हुए पूछते हैं, "और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ।" (पद. 29) येसु आज हम प्रत्येक से यही सवाल कर रहे हैं, "और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?" मैं तुम्हारे लिए क्या हूँ? प्रत्येक को अपने हृदय में इसका जवाब देना है, उस ज्योति से आलोकित होकर जिसको पिता अपने पुत्र येसु को जानने हेतु हमें प्रदान करते हैं। इस तरह हम भी पेत्रुस के समान कह सकते हैं, "आप मसीह हैं" किन्तु शिष्यों की तरह येसु हमें भी स्पष्ट रूप से प्रकट करते हैं, कि उनका मिशन सफलता की चौड़ी राह पर नहीं बल्कि पीड़ित, अपमानित, बहिष्कृत एवं क्रूसित सेवक के कठिन रास्ते पर है, तब हम भी पेत्रुस की तरह प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं, जिन्होंने येसु के कथन को अस्वीकार किया क्योंकि यह दुनिया की सोच के विपरीत था। ऐसे क्षणों में हमें भी येसु के उचित डांट की आवश्यकता है, ''हट जाओ, शैतान! तुम ईश्वर की बातें नहीं, बल्कि मनुष्यों की बातें सोचते हो'।"(पद. 33).

विश्वास की अभिव्यक्ति केवल शब्दों से नहीं

संत पापा ने कहा, "येसु ख्रीस्त में विश्वास की अभिव्यक्ति केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहती बल्कि हमारे सही चुनावों, ठोस व्यवहारों, ईश्वर के प्रेम से पोषित जीवन एवं पड़ोसियों के प्रति प्रेम दिखाने वाले जीवन के द्वारा प्रकट होती है। येसु हमें बतलाते हैं कि उनका अनुसरण करने और उनका शिष्य बनने के लिए हमें अपने आपका त्याग करना है, अपना क्रूस उठाकर उनके पीछे चलना है। तब यह हमें मौलिक नियम प्रदान करता है। वह नियम है, "क्योंकि जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे तथा सुसमाचार के कारण अपना जीवन खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा।"(पद. 35) इस विरोधाभास को समझने के लिए हमें याद रखना चाहिए कि हमारी सबसे बड़ी बुलाहट है, प्रेम क्योंकि हम ईश्वर के प्रतिरूप में बनाये गये हैं जो प्रेम है। जीवन में बहुधा, कई कारणों से हम गलत रास्ता अपना लेते, चीजों में आनन्द की खोज करते अथवा लोगों के साथ वस्तुओं जैसा व्यवहार करते हैं किन्तु वास्तविक खुशी हमें तभी मिलती है जब हम उस सच्चे प्रेम को प्राप्त करते हैं जो हमें विस्मित एवं परिवर्तित कर देता है। प्रेम सबकुछ बदल सकता है वह हमें भी बदल देता है जिसे हम संतों के उदाहरणों में इस देख सकते हैं।"

माता मरियम से प्रार्थना

संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना करते हुए कहा, कुँवारी मरियम, जिन्होंने अपने विश्वास को, अपने पुत्र येसु के साथ ईमानदारी पूर्वक जीया, हमारे जीवन को येसु तथा लोगों के लिए व्यतीत करते हुए उसी रास्ते पर चलने हेतु मदद करे। हमें भी उस रास्ता में चल सकें जो कि प्रेम है।  

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

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17 September 2018, 15:17