संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन के दौरान संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन के दौरान 

विश्वास में परिवर्तन की शक्ति

संत पापा फ्रांसिस ने विश्व और चीन की कलीसिया हेतु अपना संदेश पत्र प्रेषित करते हुए चीनी सरकार और चीन की कलीसिया के मध्य अस्थायी समझौते के बारे में जिक्र किया, जो कि सुसमाचार के प्रचार और चीन की कलीसिया संग एकता स्थापित करना है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने संदेश की शुरूआत में चीन की कलीसिया को प्रोत्साहित करते हुए कहा, “चीन के विश्वासियों, मैं आप को अपने रोज दिन की प्रार्थना में याद करता हूँ।” उन्होंने संत पापा बेनेदिक्त 16वें द्वारा येसु के उद्धृत वचनों के अपने पत्र में लिखा, “छोटे झुण्ड, डरो मत।” (लूका. 12.32)

सुझाव से हचलच

संत पापा ने अपने प्रश्न के केन्द्रविन्दु की ओर ध्यान केन्द्रित करते हुए कहा कि वर्तमान में, बहुत सारे विवादास्पद लेख प्रकाशित किये गये हैं जो तत्काल और विशेषकर भविष्य में चीन की काथलिक समुदायों के बारे में है। मैं इस बात से अवगत हूँ कि ये सारे सोच-विचार अपने में बहुत ही असमजंस की स्थिति को जन्म दिया है और बहुतों के हृदय में कई विरोधाभास सवाल उत्पन्न हुए हैं। कुछ अपने में आश्चर्य और कुछेक अपने में शांका का अनुभव करते हैं वही दूसरे अपने में यह अनुभव करते हैं कि वे विश्व काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरू द्वारा नकार दिये गये हैं। वे अपने दुःखों के परिणाम स्वरुप उनकी निष्ठा पर सवाल तक उठाते हैं। वहीं दूसरे हैं जो इसे चीनी विश्वासियों के लिए आने वाले समय में एक बेहतर भविष्य के रुप में देखते हैं। संत पापा ने जोर देते हुए कहा कि इस परिस्थिति में “यह और भी गहरी हो गई है” जब सरकार और कलीसिया के मध्य बेजिंग अस्थायी समझौता ने धर्माध्यक्षों की नियुक्ति के संबंध में एक नई पहल की शुरूआत की है।

चीनी कलीसिया द्वारा प्रंशसा, सुसमाचार का साक्ष्य

संत पापा ने अपने विचारों को खुले रुप में व्यक्त करते हुए कहा कि यह सम्पूर्ण काथलिक कलीसिया द्वारा प्रंशसा की विषयवस्तु रही है, जो आपकी निष्ठा का एक उपहार है, जहाँ आप ने अपने को ईश्वरीय विश्वास में सुदृढ़ बनाये रखा, उन परिस्थितियों में भी जब आप का जीवन कठिन और मुश्किल हो गया था। “जीवन के दर्द भरे ये अनुभव, संत पापा ने कहा, हमारे जीवन  और चीनी कलीसिया के विश्वासियों हेतु ईश्वर की ओर से अनमोल निधि स्वरुप हैं।” संत पापा ने उन्होंने अपने सांत्वना के शब्दों कहते हुए लिखा, “ईश्वर हमें जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी  अपनी सांत्वना का उपहार देने से नहीं चूकते जो हमें एक वृहृद खुशी की ओर अग्रसर करती है।”

वार्ता की शुरूआत पापा जोन पौल द्वारा

अस्थायी समझौते के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए संत पापा ने कहा, “यह वाटिकन और चीनी सरकार द्वारा एक लम्बी और जटिल प्रक्रिया का प्रतिफल है जिसकी पहल संत पापा जोन पौल द्वितीय ने की जिसे संत पापा बेनेदिक्त 16वें ने आगे बढ़ाया। इस प्रक्रिया के फलस्वरुप वाटिकन की आशा यही है कि चीन में विश्वासियों के मध्य सुसमाचार की घोषणा हो तथा उनके आध्यात्मिक और प्रेरितिक जरुरतों की पूर्ति हो, साथ ही उन्हें देश में ख्रीस्तीय समुदाय के रुप में एक उचित पहचान मिले।

अज्ञान राह के बावजूद विश्वास में चलना

संत पापा अपने चिंतन साक्षा करते हुए लिखते हैं, “विश्वास की यह यात्रा जिसकी शुरूआत हम कर रहे हैं अपने में एक नये दौर पर है।” संत पापा बेनेदिक्त 16वें के शब्दों का उपयोग करते हुए उन्होंने लिखा,“यह यात्रा दोनों पक्षों की ओर से ख्याति और समय की मांग करती है।” विश्वास के पिता आब्रहम का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं, “ईश्वर के द्वारा बुलाये जाने पर वह अपना सब कुछ छोड़कर अज्ञात देश को निकल पड़ा जिसके ईश्वर उसे देने वाले थे। उसे राह पता नहीं था। यदि उसने ईश्वर से एक आदर्श सामाजिक और राजनैतिक स्थिति की मांग की होती तो वह अपनी यात्रा में कभी नहीं निकलता। उसने ईश्वर पर विश्वास किया और सब कुछ छोड़ कर निकल पड़ा। यह उसका परिशुद्ध विश्वास था जिसके कारण वह इतिहास को बदल देता है।” संत पापा ने चीनी विश्वासियों के समर्थन में कहा, “मैं आप को विश्वास में सुदृढ़ करना चाहता हूँ... और आग्रह करता हूँ कि आप अपने विश्वास को ईश्वर में और कलीसिया के आत्मपरिक्षण में और भी प्रगाढ़ बनाये।”

मेल-मिलाप और एकता की जरूरत

संत पापा ने कहा कि उसे इस बात की खुशी है कि चीनी काथलिक अपने विश्वास में वैश्विक कलीसिया और संत पापा के साथ अपने को संयुक्त करते हुए अपना जीवन जीना चाहते हैं। धर्माध्यक्षों के संबंध में भी यह बात उचित है जिन्होंने अपनी कमजोरियों और गलतियों के कारण कलीसियाई एकता को विकृत कर दिया। संत पापा इस तरह विश्वासियों को यह विश्वास दिलाते हैं कि वे बहुत सतर्कतापूर्वक हर व्यक्तिगत स्थिति की जांच करते हुए, विभिन्न बिन्दुओं को सुनते और उन पर लम्बें समय तक गहराई से प्रार्थना एवं चिंतन करते हुए चीनी कलीसिया की भलाई हेतु कदम उठाया है। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि वे सात “अधिकारिक” धर्माध्यक्षों को दोषमुक्त करते हैं जो वाटिकन की विधिवत आध्यदेश के बिना अभिषिक्त किये गये थे। वे उनसे आग्रह करते हैं कि वे ठोस रुप में वाटिकन और विश्व काथलिक कलीसिया के साथ अपनी एकात्मकता को घोषित करें तथा अपने वाले दिनों में कठिनाइयों के बावजूद विश्वासभजन बने रहें।

भटके हुओं का आलिंगन

अपने संदेश पत्र में संत पापा ने कहा,“वे चीनी कलीसिया को मेल-मिलाप के कार्य हेतु निमंत्रण देते हैं।” करुणा की जयंती वर्ष में अपने कहे गये वचनों को दुहराते हुए वे कहते हैं,“कोई नियम या कोई कानून उस व्यक्ति को रोक नहीं सकता जो अपनी गलतियों को स्वीकारते हुए ईश्वर की ओर पुनः लौट आता और अपने में नये जीवन की शुरूआत करना चाहता है।” उन्होंने कहा कि इस परिपेक्ष में हम एक विशेष प्रक्रिया की शुरूआत कर सकते हैं जो अतीत के घावों की चंगाई में हमारी मदद करेगा साथ ही चीनी काथलिक कलीसियाई विश्वासियों की एकता को सुव्यवस्थित करने में सहायक सिद्ध होगा।

उचित पुरोहितों का चुनाव

संत पापा ने कहा कि अस्थायी समझौता कलीसियाई जीवन के संदर्भ में सीमित है जो विस्तार करने के योग्य है, यद्यपि यह चीनी कलीसिया के इतिहास में एक नये अध्याय की शुरूआत कर सकता है। समझौते में पहली बार यह सुनिश्चित किया गया है कि सरकार और वाटिकन के बीच अच्छे चरवाहे की नियुक्ति हेतु वे एक दूसरी की सहायता करेंगे। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि वाटिकन इस मुद्दे पर अपने उत्तरदायित्व का निर्वाहन पूरी तरह करेगा। फिर भी यह जरूरी और महत्वपूर्ण है कि आप धर्माध्यक्षण, पुरोहितों, समर्पित जनों और लोकधर्मियों आप अपनी तरफ से अच्छे चरवाहे का चुनाव करने में सहायता करें जिससे वे कलीसिया में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहण उचित रुप से कर सकें। येसु के हृदय के समान एक भले चरवाहे का चुनाव हमारे लिए जरुरी है जिससे वह उदारतापूर्वक अपनी रेवड़ की सेवा विशेष कर गरीबों और अति संवेदनशील लोगों की सहायता कर सके।

चीनी काथलिकों का समाज में दायित्व

इस मुद्दे पर संत पापा ने कहा कि सामाजिक और राजनैतिक तौर पर चीनी काथलिक अपने में अच्छे नागरिक हैं जो अपनी जमीर से प्रेम करते और जहाँ तक बन पड़े ईमानदारी पूर्वक अपने देश की सेवा हेतु तत्पर रहते हैं। नौतिक रुप में उन्हें इस बात के प्रति सजग रहने की जरूरत है कि उनके सह-नागरिक उनसे एक बड़ी निष्ठा की कामना करते हैं जिससे पूरे समाज का विकास और सभों की भलाई हो सके। विशेषकर काथलिकों की चाहिए कि वे ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु  नबीवत कार्य करें। यह उनसे बहुधा इस बात की मांग कर सकती है कि उन्हें दूसरों की टिप्पणी करना पड़े लेकिन यह शुष्क विरोध न हो वरन यह एक न्यायपूर्ण, मानव समाज का निर्माण करें जहाँ सभों के लिए सम्मान और आदर हो।

सुसमचार प्रचार हेतु विरोध का सामना

संत पापा ने धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, समर्पित लोगों को अपने संबोधन में कहा कि वे अपने पुरानी गलतियों, नसमझी और व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना से ऊपर उठें जिससे वे विश्वासियों की सेवा कर सकें। “आप नम्रतापूर्वक मेल-मिलाप और एकता हेतु कार्य करें। आप उत्साह और जोश के साथ सुसमाचार के प्रचार में कार्य करें जैसा कि द्वितीय महासभा निर्देशित देती है।”

युवा से आहृवान

संत पापा ने चीन के काथलिक युवाओं का आहृवान करते हुए कहा कि वे देश, भविष्य के निर्माण हेतु अपना हाथ बंटायें। “आप अपने उत्साह और जोश से सुसमाचार की खुशी को दूसरों के साथ साझा करें जिनसे आप मिलते हैं।” उन्होंने उन्हें अपने हृदय और मन को खुला रखने का आहृवान किया जिससे वे अपने जीवन में ईश्वर की योजना को पहचान सकें जो हमें अपने व्यक्तिगत पूर्वग्रहों से ऊपर उठने, अपने समुदायों के मध्य लड़ाई झगड़ा को समाप्त करते हुए साहसपूर्वक भ्रातृत्व में एक सच्ची संस्कृति की स्थापना कर सकें।

चीनी अधिकारियों से वार्ता

संत पापा ने गंणतत्र चीन के नेताओं का सम्मान करने के संबंध में कहा कि अतीत की विभिन्नतओं और यहां तक की वर्तमान परिवेश की कठिनाइयों को दूर करते हुए हमें एक नये अध्याय की शुरूआत हेतु वार्ता की जरुरत है जिसकी पहल संत पापा बेनेदिक्त 16वें ने की थी। ऐसा करने के द्वारा ही चीन और वाटिकन मानव समाज का आंतरिक विकास कर सकेंगे और सभी धर्मों के लोगों की मानव गरिमा को सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे। “स्थानीय अधिकारियों और कलीसिया के अधिकारियों, धर्माध्यक्षों, पुरोहितों और समुदाय के बुजूर्गों के बीच विकास को लेकर स्पष्टवादी शैली का विकास होना जरूरी है जो प्रेरितिक कार्यों को विश्वासियों की न्यायपूर्ण आशा के मुताबिक सुव्यवस्थित ढ़ंग से संचालित करने में मदद करेगा।” उन्होंने इस बात को दुहराते हुए कहा,“चीन की कलीसिया को चीन के इतिहास में भूलाया नहीं जा सकता है और न ही यह कोई विशेषाधिकार की मांग करती है।”

माता मरियम से प्रार्थना

अपने पत्र के अंत में संत पापा फ्रांसिस ने ईश्वर से शांति के उपहार हेतु माता मरियम के पास निवेदन करते हुए प्रार्थना की-

हे स्वर्गीय माता, अपने बच्चों की पुकार सुन जो नम्रता और दीनता में तुझे पुकारते हैं, हे आशा की कुंवारी, हम चीन के ख्रीस्त विश्वासियों को तेरे चरणों में अर्पित करते हैं, हे स्वर्ग की रानी, हमारी विनय-प्रार्थनाओं को, हमारी आशाओं, हमारे जीवन की कठिनाइयों को ईश्वर के पास ले जाइए, हे कलीसिया की माता, हमें वर्तमान और भविष्य के अपने परिवारों, समुदायों को तुझे अर्पित करते हैं, भ्रातृत्व में मेल-मिलाप हेतु उनकी सहायता और रक्षा कर जो तेरी महिमा गाते हुए अपने को सेवाकार्यों में समर्पित करते हैं, हे स्वर्गीय माता। हे दुःखियों का दिलासा, हम तेरे पास आते हैं, तू उन सभों का सहारा है जो संकट में पड़े विलाप करते हैं। अपने पुत्र-पुत्रियों पर दया दृष्टि फेर जो तेरे नाम की महिमा गाते हैं, उन्हें सुसमाचार के प्रचार हेतु एक बना। उनके प्रयासों में उनका साथ दे जिससे वे भातृत्व की दुनिया स्थापित कर सकें। उन्हें ऐसी कृपा प्रदान कर कि वे अपने मिलने वालों को क्षमा का आनंद प्रदान कर सकें, हे स्वर्गीय रानी।

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27 September 2018, 11:36