लिथुआनिया में उत्पीड़न के शिकार बने लोगों के प्रति सन्त पापा फ्राँसिस की श्रद्धान्जलि लिथुआनिया में उत्पीड़न के शिकार बने लोगों के प्रति सन्त पापा फ्राँसिस की श्रद्धान्जलि  

उत्पीड़ितों की याद कर सन्त पापा फ्राँसिस ने लिथुआनिया से ली विदा

सन्त पापा फ्राँसिस ने विलनियुस स्थित अधिकरण एवं स्वतंत्रता संघर्ष को समर्पित के.जी.बी. संग्रहालय में उन सब लोगों के लिये प्रार्थना की जिन्होंने उत्पीड़न काल में दमनचक्र का विरोध किया था। उन्होंने अनियंत्रित महत्वाकांक्षा के द्वारा लाए गए तीन अधिकरणों के दौरान लोगों को पहुँचाई गई पीड़ा के प्रति गहन दुख व्यक्त किया तथा उन लोगों को याद किया जो प्राणों का ख़तरा उठाते हुए भी मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु संघर्ष करते रहे थे।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी


विलनियुस, सोमवार, 24 सितम्बर 2018 (रेई, वाटिकन रेडियो): विलनियुस में, रविवार को अधिकरण एवं स्वतंत्रता संघर्ष को समर्पित के.जी.बी. संग्रहालय की भेंट कर सन्त पापा फ्राँसिस ने लिथुआनिया में अपनी दो दिवसीय प्रेरितिक यात्रा समाप्त की.

शनिवार, 22 सितम्बर को काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा फ्राँसिस रोम से बाल्कन के लिथुआनिया, लातविया एवं एस्तोनिया के लिये रवाना हुए थे. लिथुआनिया में दो दिन व्यतीत कर वे सोमवार को लातविया तथा मंगलवार को एस्तोनिया का दौरा कर मंगलवार देर सन्ध्या पुनःरोम लौट रहे हैं. इटली से बाहर सन्त पापा फ्राँसिस की यह 25 वीं तथा बालकन देशों में पहली प्रेरितिक यात्रा है.

विलनियुस में अधिकरण से पीड़ित लोगों को समर्पित संग्रहालय की भेंट

रविवार को, सन्त पापा फ्राँसिस ने विलनियुस स्थित अधिकरण एवं स्वतंत्रता संघर्ष को समर्पित के.जी.बी. संग्रहालय में उन सब लोगों के लिये प्रार्थना की जिन्होंने उत्पीड़न काल में दमनचक्र का विरोध किया था. उन्होंने अनियंत्रित महत्वाकांक्षा के द्वारा लाए गए तीन अधिकरणों के दौरान लोगों को पहुँचाई गई पीड़ा के प्रति गहन दुख व्यक्त किया तथा उन लोगों को याद किया जो प्राणों का ख़तरा उठाते हुए भी मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु संघर्ष करते रहे थे.   

प्रथम विश्व युद्ध के अंत में रूसी और प्रशियाई राजतंत्रों के पतन के बाद लिथुआनिया, लातविया और एस्तोनिया ने 1918 ई. में स्वतंत्रता की घोषणा की थी. हालांकि, सन् 1940 में, सोवियत रूसी लाल सेना ने बाल्कन देशों को अपने अधिकरण में लेकर सोवियत गणतंत्र घोषित कर दिया था. इसके एक साल बाद ही मर्मनी की नाज़ी सेना ने सन् 1944 तक बाल्कन देशों को अपने कब्ज़े में रखा जिसके उपरान्त पुनः सोवियत रूस ने इन देशों पर कब्ज़ा कर लिया. अन्ततः, 1990 में सोवियत संघ के पतन के बाद उक्त तीनों देशों ने पुनः स्वतंत्रता प्राप्त की. वस वर्ष बाल्कन के देश अपनी स्वतंत्रता का शतवर्ष मना रहे हैं और इसी के उपलक्ष्य में सन्त पापा फ्राँसिस की इन देशों में प्रेरितिक यात्रा का आयोजन किया गया था.   

सन्त पापा की प्रार्थना

सन्त पापा प्राँसिस ने, रविवार को, उस दीवार के समक्ष प्रार्थनाएँ अर्पित कीं जो लिथुआनिया के असंख्य लोगों के उत्पीड़न की याद दिलाती है. उन्होंने प्रभु ईश्वर से आर्त याचना की कि प्रभु लिथुआनिया को बनाये रखें ताकि लिथुआनिया "आशा का दीपस्तम्भ" तथा "अन्याय के सभी रूपों से लड़ने के लिए अनवरत प्रतिबद्ध "स्मृति और कार्य की भूमि" बन सके.

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24 September 2018, 11:36